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ज्योतिष क्या है ??

ज्योतिष क्या है ??

सदियों से मनुष्य खुद को मार्गदर्शन करने में सक्षम हैं। ज्योतिष, पृथ्वी पर होने वाले ग्रहों और घटनाओं के खगोलीय स्थितियों के बीच के संबंधों के अध्ययन को सरल रूप से प्रस्तुत करते हैं। ज्योतिषी मानते हैं कि किसी व्यक्ति के जन्म के समय सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों की स्थिति का उस व्यक्ति के चरित्र पर सीधा असर होता है। ये पद एक व्यक्ति के भाग्य को प्रभावित करने के लिए लगाए जाते हैं, हालांकि कई ज्योतिषी स्वतंत्र महसूस करते हैं, किसी भी व्यक्ति की ज़िन्दगी एक बड़ी भूमिका निभाते हैं।

ज्योतिष का मतलब इनसाइट्स। ईश यानी डिवाइन। ज्योतिष का अर्थ ही है, डिवाइन इनसाइट्स। दैवीय प्रज्ञा। वह दैवीय स्फूर्त विचार, जो ऊर्जा से भर दे। जो स्पष्टता दे। दे स्पष्टता दे। वह विधा जो मुझे एक ऐसा विचार दे, जो मेरे जीवन को समृद्ध कर दे। जो मुझे यथार्थ का अहसास कराए। यह है ज्योतिष।

ज्योतिष” एक ऎसा शब्द है जिससे वर्तमान समय में सभी लोग भली-भाँति परिचित हैं. यह एक ऎसी विद्या है जो अति प्राचीन विद्याओं में से एक मानी गई है. लेकिन प्राचीन समय और आधुनिक समय में इस विद्या के उपयोग में अच्छा खासा अंतर आ चुका है. पहले इसका उपयोग ऋषि-मुनियों अथवा रा जज्योतिषियों द्वारा किया जाता था.

इस विद्या के सही उपयोग से परेशानी व्यक्ति को तिनके का सहारा मिल सकता है. हम ज्योतिष से अपना भाग्य नहीं बदल सकते लेकिन परेशानियों का सामना करने का बल अवश्य प्राप्त कर सकते हैं. जब आदमी चारों ओर से परेशानियों से घिर जाता है तब उसे ज्योतिषी की याद आती है. ऎसे व्यक्तियों को परामर्श की आवश्यकता होती है. ऎसे समय में ज्योतिषी का कर्तव्य है कि डराने की बजाय वह उचित मार्गदर्शन करें.

ज्योतिष सवाल प्रस्तुत करने की कला है तभी आप अपने सवालों का जवाब पा सकते हैं। अगर सवाल नहीं है, तो जवाब भी नहीं हैं। अगर सवाल है तो जवाब भी है। ज्योतिष जवाबों का विज्ञान है, जो आपके ग्रह, नक्षत्रों के आधार पर सटीक समाधान करता है। पांच अंग हैं ज्योतिष के। लेकिन मूल रूप से तीन ही हैं- ग्रह, लक्षण और घर।

ज्योतिष पांच कॉन्टेक्स्टस में सोचने का ढंग है। ज्योतिष अपनी इंटेंशन अपनी धारणाओं को करेक्ट करने का विषय है। ज्योतिष में धारणा केतु बताता है। सबसे महत्वपूर्ण प्लानेट कौन सा है? धारणा कैसी है? अटेंशन वैसी ही होगी तुम्हारी। उसे राहू कहते हैं। जैसी धारणा है तुम्हारा ध्यान वहीं जाएगा। योगी राहू और केतु, इन दो को पकड़ लेता है। फिर वो पूरे चार्ट के साथ खेलता है। यहां से योग रहस्यों की शुरूआत होती है। इसलिए केतु को मिस्टिक प्लानेट कहा जाता है।

हम, ज्योतिष में, महसूस करते हैं कि ज्योतिष स्वयं को, दूसरों को और हमारे चारों ओर की दुनिया को समझने के लिए एक शक्तिशाली और मज़ेदार उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। हमारी दुनिया को परिभाषित करने और समझने के लिए हम कई विभिन्न उपकरणों या भाषाओं का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, हम मानवीय व्यवहार का पता लगाने के लिए मनोवैज्ञानिक उपकरण और शब्दावली का उपयोग कर सकते हैं। इसी तरह, ज्योतिष शास्त्र हमें मानव चरित्र को समझने के लिए समृद्ध उपकरण देता है, और हमें दूसरों के साथ हमारे टिप्पणियों के संचार के लिए एक भाषा प्रदान करता है।

जन्म पत्र या कुंडली
जब भी हम किसी व्यक्ति या घटना के रूप में “खिड़की” के रूप में प्रसव चार्ट (जन्म पत्र या कुंडली भी कहते हैं) का इस्तेमाल कर सकते हैं, तो हमें निर्णय का पालन करने या लोगों को लेबल करने के लिए कभी इसका उपयोग नहीं करना चाहिए, न तो हमें इसे हमारे व्यवहार के रूप में प्रयोग करना चाहिए! हम कभी भी एक अपूर्ण भाषा के रूप में ज्योतिष को नहीं जानना चाहते थे, भले ही यह सही था, हम भी नहीं हैं, इसलिए हमारी व्याख्याएं कभी भी नहीं मानी जा सकतीं यह भी ज्योतिष का विषय है जो “सभी को जानना”, या सख्त भविष्यवाणी करता है। इस प्रकार का व्यवहार न केवल बेजान और भ्रामक है, यह उन लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकता है जो प्रतिकूल तरीके से उन पर विश्वास करते हैं।
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क्या बताती है जन्म कुंडली –

१.जन्म कुंडली का परिचय :
जन्म कुंडली को पढ़ने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखा जाता है. आइए सबसे पहले उन बातो को आपके सामने रखने का प्रयास करें. जन्मकुंडली बच्चे के जन्म के समय विशेष पर आकाश का एक नक्शा है.
जन्म कुंडली में एक समय विशेष पर ग्रहो की स्थिति तथा चाल का पता चलता है. जन्म कुंडली में बारह खाने बने होते हैं जिन्हें भाव कहा जाता है. जन्म कुण्डली अलग – अलग स्थानो पर अलग-अलग तरह से बनती है. जैसे भारतीय पद्धति तथा पाश्चात्य पद्धति. भारतीय पद्धति में भी उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय तथा पूर्वी भारत में बनी कुंडली भिन्न होती है.
जन्म कुंडली बनाने के लिए बारह राशियों का उपयोग होता है, जो मेष से मीन राशि तक होती हैं. बारह अलग भावों में बारह अलग-अलग राशियाँ आती है. एक भाव में एक राशि ही आती है. जन्म के समय भचक्र पर जो राशि उदय होती है वह कुंडली के पहले भाव में आती है.
अन्य राशियाँ फिर क्रम से विपरीत दिशा(एंटी क्लॉक वाइज) में चलती है. माना पहले भाव में मिथुन राशि आती है तो दूसरे भाव में कर्क राशि आएगी और इसी तरह से बाकी राशियाँ भी चलेगी. अंतिम और बारहवें भाव में वृष राशि आती है!
२.भाव का परिचय
जन्म कुंडली में भाव क्या होते हैं आइए उन्हेँ जानने का प्रयास करें. जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं और हर भाव में एक राशि होती है. कुँडली के सभी भाव जीवन के किसी ना किसी क्षेत्र से संबंधित होते हैं. इन भावों के शास्त्रो में जो नाम दिए गए हैं वैसे ही इनका काम भी होता है. पहला भाव तन, दूसरा धन, तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ, पंचम पुत्र, छठा अरि, सप्तम रिपु, आठवाँ आयु, नवम धर्म, दशम कर्म, एकादश आय तो द्वादश व्यय भाव कहलाता है़.
सभी बारह भावों को भिन्न काम मिले होते हैं. कुछ भाव अच्छे तो कुछ भाव बुरे भी होते हैं. जिस भाव में जो राशि होती है उसका स्वामी उस भाव का भावेश कहलाता है. हर भाव में भिन्न राशि आती है लेकिन हर भाव का कारक निश्चित होता है.
बुरे भाव के स्वामी अच्छे भावों से संबंध बनाए तो अशुभ होते हैं और यह शुभ भावों को खराब भी कर देते हैं. अच्छे भाव के स्वामी अच्छे भाव से संबंध बनाए तो शुभ माने जाते हैं और व्यक्ति को जीवन में बहुत कुछ देने की क्षमता रखते हैं. किसी भाव के स्वामी का अपने भाव से पीछे जाना अच्छा नहीं होता है, इससे भाव के गुणो का ह्रास होता है. भाव स्वामी का अपने भाव से आगे जाना अच्छा होता है. इससे भाव के गुणो में वृद्धि होती है.
३. ग्रहो की स्थिति
जन्म कुंडली मैं सबसे आवश्यक ग्रहों की स्थिति है, आइए उसे जाने़. ग्रह स्थिति का अध्ययन करना जन्म कुंडली का बहुत महत्वपूर्ण पहलू है. इनके अध्ययन के बिना कुंडली का कोई आधार ही नहीं है.
पहले यह देखें कि किस भाव में कौन सा ग्रह गया है, उसे नोट कर लें. फिर देखें कि ग्रह जिस राशि में स्थित है उसके साथ ग्रह का कैसा व्यवहार है. जन्म कुंडली में ग्रह मित्र राशि में है या शत्रु राशि में स्थित है, यह एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है इसे नोट करें. ग्रह उच्च, नीच, मूल त्रिकोण या स्वराशि में है, यह देखें और नोट करें.
जन्म कुंडली के अन्य कौन से ग्रहों से संबंध बन रहे है इसे भी देखें. जिनसे ग्रह का संबंध बन रहा है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, यह जांचे. जन्म कुंडली में ग्रह किसी तरह के योग में शामिल है या नहीं, जैसे राजयोग, धनयोग, अरिष्ट योग आदि अन्य बहुत से योग है.
४. कुंडली का फलकथन
फलकथन की चर्चा करते हैं, भाव तथा ग्रह के अध्ययन के बाद जन्म् कुंडली के फलित करने का प्रयास करें. पहले भाव से लेकर बारहवें भाव तक के फलों को देखें कि कौन सा भाव क्या देने में सक्षम है. कौन सा भाव क्या देता है और वह कब अपना फल देगा यह जानने का प्रयास गौर से करें. भाव, भावेश तथा कारक तीनो की कुंडली में स्थिति का अवलोकन करना आवश्यक होता है. जन्म कुंडली में तीनो बली हैं तो जीवन में चीजें बहुत अच्छी होगी.
तीन में से दो बली हैं तब कुछ कम मिलने की संभावना बनती है लेकिन फिर भी अच्छी होगी. यदि तीनो ही कमजोर हैं तब शुभ फल नहीं मिलते हैं और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है
५. दशा का अध्ययन
अभी तक बताई सभी बातों के बाद दशा की भूमिका आती है, बिना अनुकूल दशा कै कुछ् नहीं मिलता है. आइए इसे समझने का प्रयास करें. सबसे पहले यह देखें कि जन्म कुंडली में किस ग्रह की दशा चल रही है और वह ग्रह किसी तरह का कोई योग तो नहीं बना रहा है.
जिस ग्रह की दशा चल रही है वह किस भाव का स्वामी है और कहाँ स्थित है, यह जांचे. कुंडली में महादशा नाथ और अन्तर्दशानाथ आपस में मित्रता का भाव रखते है या शत्रुता का भाव रखते हैं यह देखें.
कुंडली के अध्ययन के समय महादशानाथ से अन्तर्दशानाथ किस भाव में स्थित है अर्थात जिस भाव में महादशानाथ स्थित है उससे कितने भाव अन्तर्दशानाथ स्थित है, यह देखें. महादशानाथ बली है या निर्बल है इसे देखें. महादशानाथ का जन्म और नवांश कुंडली दोनो में अध्ययन करें कि दोनो में ही बली है या एक मे बली तो दूसरे में निर्बल तो नहीं है यह देखे।
६. गोचर का अध्ययन
सभी बातो के बाद आइए अब ग्रहो के गोचर की बात करें. दशा के अध्ययन के साथ गोचर महत्वपूर्ण होता है. कुंडली की अनुकूल दशा के साथ ग्रहों का अनुकूल गोचर भी आवश्यक है तभी शुभ फल मिलते हैं.
किसी भी महत्वपूर्ण घटना के लिए शनि तथा गुरु का दोहरा गोचर जरुरी है. जन्म कुंडली में यदि दशा नहीं होगी और गोचर होगा तो अनुकूल फलों की प्राप्ति नहीं होती है क्योकि अकेला गोचर किसी तरह का फल देने में सक्षम नहीं होता है।
७. कैसे बनाएं कुंडली
कुंडली बनाने का कार्य मुख्य रूप से पंडित या ब्राह्ममण करते हैं लेकिन आज इंटरनेट ने अपना विस्तार इस तरह किया है कि ज्योतिष की इस अहम शाखा में भी उसकी पहुंच हो गई है। आज कई वेबसाइट्स और सॉफ़्टवेयर भी कुंडली बनाती हैं। इनमें से कई तो आपको पूर्ण हिन्दी या अंग्रेजी में भी कुंडली उपलब्ध कराते है।
८. सप्तम भाव बहुत ही महत्वपूर्ण होता है
ज्योतिषीय द्रष्टि से जातक की शादी के लिए उसकी कुंडली का सप्तम भाव बहुत ही महत्वपूर्ण होता है | सप्तम भाव के आदर पर ही विद्धवान ज्योतिषी जातक की शादी ओर पत्नी सुख के बारे में अपनी भविष्यवाणी कहते है | हम देखते है की कभी कभी सुन्दर स्वस्थ्य ओर धनवान होने के बाद भी किसी किसी जातक अथवा जातिका का विवाह नहीं होता है तो इसका कारण उसका सप्तम भाव अथवा सप्तमेश बिगड़ा हुआ है ओर यह भाव बिगड़ा हुवा कैसे है यह हम आगे कुछ ज्योतिषीय जानकारी के माध्यम से पता करेंगे | आगे जों भी कारण लिखा है उनको आप स्वयं देखे पढ़े ओर समझे ओर कुंडली देखकर विचार करेगे तो पाएंगे की ज्योतिषीय जानकारी कितनी स्टिक ओर स्पस्ट है |
सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही है वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान पर बैठ कर अपने भाव को देख रहा है।
सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की द्रिष्टि नही है।
कोई पाप ग्रह सप्तम में बैठा नही है।
यदि सप्तम भाव में सम राशि है।
सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है।
सप्तमेश बली है।
सप्तम में कोई ग्रह नही है।
किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि सप्तम भाव और सप्तमेश पर नही है।
दूसरे सातवें बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में हैं,और गुरु से द्रिष्ट है।
सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में कोई क्रूर ग्रह नही है।
९. विवाह नही होगा अगर
सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है।
सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है।
सप्तमेश नीच राशि में है।
सप्तमेश बारहवें भाव में है,और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा है।
चन्द्र शुक्र साथ हों,उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान हों।
शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों।
शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों।
शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो।
शुक्र बुध शनि तीनो ही नीच हों।
पंचम में चन्द्र हो,सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक पापग्रह हों।
सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो.
१०. विवाह में देरी
सप्तम में बुध और शुक्र दोनो के होने पर विवाह वादे चलते रहते है,विवाह आधी उम्र में होता है।
चौथा या लगन भाव मंगल (बाल्यावस्था) से युक्त हो,सप्तम में शनि हो तो कन्या की रुचि शादी में नही होती है।
सप्तम में शनि और गुरु शादी देर से करवाते हैं।
चन्द्रमा से सप्तम में गुरु शादी देर से करवाता है,यही बात चन्द्रमा की राशि कर्क से भी माना जाता है।
सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो,कोई शुभ ग्रह योगकारक नही हो,तो पुरुष विवाह में देरी होती है।
सूर्य मंगल बुध लगन या राशिपति को देखता हो,और गुरु बारहवें भाव में बैठा हो तो आध्यात्मिकता अधिक होने से विवाह में देरी होती है।
लगन में सप्तम में और बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योग कारक नही हों,परिवार भाव में चन्द्रमा कमजोर हो तो विवाह नही होता है,अगर हो भी जावे तो संतान नही होती है।
महिला की कुन्डली में सप्तमेश या सप्तम शनि से पीडित हो तो विवाह देर से होता है।
राहु की दशा में शादी हो,या राहु सप्तम को पीडित कर रहा हो,तो शादी होकर टूट जाती है,यह सब दिमागी भ्रम के कारण होता है.
११.विवाह का समय
सप्तम या सप्तम से सम्बन्ध रखने वाले ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा में विवाह होता है।
कन्या की कुन्डली में शुक्र से सप्तम और पुरुष की कुन्डली में गुरु से सप्तम की दशा में या अन्तर्दशा में विवाह होता है।
सप्तमेश की महादशा में पुरुष के प्रति शुक्र या चन्द्र की अन्तर्दशा में और स्त्री के प्रति गुरु या मंगल की अन्तर्दशा में विवाह होता है।
सप्तमेश जिस राशि में हो,उस राशि के स्वामी के त्रिकोण में गुरु के आने पर विवाह होता है।
गुरु गोचर से सप्तम में या लगन में या चन्द्र राशि में या चन्द्र राशि के सप्तम में आये तो विवाह होता है।
गुरु का गोचर जब सप्तमेश और लगनेश की स्पष्ट राशि के जोड में आये तो विवाह होता है।
सप्तमेश जब गोचर से शुक्र की राशि में आये और गुरु से सम्बन्ध बना ले तो विवाह या शारीरिक सम्बन्ध बनता है।
सप्तमेश और गुरु का त्रिकोणात्मक सम्पर्क गोचर से शादी करवा देता है,या प्यार प्रेम चालू हो जाता है।
चन्द्रमा मन का कारक है,और वह जब बलवान होकर सप्तम भाव या सप्तमेश से सम्बन्ध रखता हो तो चौबीसवें साल तक विवाह करवा ही देता है.
१२.
परिचय
काल पुरुख जिसकी कल्पना हम ज्योतिष शास्त्र में करते हैं और जिसके रचयता ब्रह्माजी हैं और जो सम्पूरण जातकों का प्रतिनिधितव भी करता है वह असल में किस प्रकार से कार्य करता है ! यहाँ पर विचारणीय बात ये भी है की जिस लाल किताब का आज इतना प्रचार किया जा रहा है वो भी इसी काल पुरुख लगन से प्रेरित है और उसका महत्व उपचार पर ज्यादा है , इसी प्रकार से अंक विद्या , केपी सिस्टम जो की बहुत ही सटीकता से फोरकास्टिंग करता है और न जाने कितने सिस्टम हैं ज्योतिष विद्या में वे सब के सब अपने आप में महत्व पूरण माने जाते हैं पर उन सब का आधार यही काल पुरुख कुंडली माना जाता है , इसके बाहर तो ज्योतिष शास्त्र की कल्पना करना भी बेकार है
१३. प्रथम भाव
उसमें काल पुरुख की मेष राशि यानी एरीज जोडिएक पड़ता है और जिसका के स्वामित्व हम मंगल गृह को मानते हैं , वह मंगल फिर अष्टम भाव का भी स्वामी मन जाता है क्यों की उसकी दूसरी राशि वृश्चिक वहां पड़ती है और दोनों राशियों का अपना अलग प्रभाव मन जाएगा , तो हम बात कर रहे थे पहले भाव की की वहां मेष राशी जिसका स्वामी मंगल को माना जाता है व रुधिर जिसे हम खून भी कहते है का शरीर में प्रतिनिधितव करता करता है और मंगल को हम उत्साह व उर्जा का कारक भी मानते हैं दुसरे वहां पर सूर्य उच्च का मन जाता है वह भी उर्जा का प्रकार मन जाता है तो दोनों मंगल और सूर्य उर्जा के कारक होने के साथ साथ अग्नि के कारक भी है इसलिए ये जीवन के संचालक गृह प्रथम भाव के कारक बनाये गए जो की पूरण तया तर्कसंगत मन जाएगा , अब मेडिकल साइंस के मुताविक भी इनका यही मतलव निकलता है क्यों को विज्ञान भी यही मानता आया है की ये सारा ब्रह्माण्ड एक उर्जा के आधीन है और प्रमाणित व प्रतक्ष रूप से सूर्य तो इसका प्रमाण है ही , अब विचारनिए बात यह है की जीवन जीने के लिए वो भी सही जीवन जीने के लिए हमें इस उर्जा का सही समन्वय करना पड़ता है नहीं तो हम कहीं न कहीं पिछड़ना शुरू हो जाते हैं सो हमें उर्जा का नेगेटिव या पॉजिटिव प्रयोग करना आना चाहिए , अपनी अपनी पर्सनल होरोस्कोप में देखने पर इन दोनों उर्जा युक्त ग्रहों का किस प्रकार से बैठे हैं , किन किन नक्षत्रों में , उप नक्षत्रों में और आगे उप उप नक्षत्रों में, नव्मंषा कुंडली में, षोडस वर्गों में, अष्टक वर्गों में , पराशर शास्त्र अनुसार की प्लेनेट और न जाने और कितनी विधियों अनुसार देखने के वाद ही ये पता चलता है के वे गृह कितने बलवान हैं , मात्र एक आधी विधि अपूरण मानी जाती गयी है , और विचारनिए बात ये भी है के आज के वक्त में इस पवित्र शास्त्र का मज़ाक बना कर रख दिया गया है मात्र सिर्फ भौतिकता के चलते ऐसा हो रहा है , क्यों के हर आदमी दो चार किताबें पढ़ कर अपने आप को ज्ञानी मानने लगता है और आज जब सब कुछ कोमर्शिअल यानी व्यावसायिक सोच सब पर हावी हो चुकी है तो हर चीज की सैंक्टिटी यानी पवित्रता ख़तम हो रही है , जब स्वार्थ हावी हो जाए तो अक्ल पर पर्दा पड़ना शुरू हो जाता है, तो हम यहाँ देखते हैं के इन दोनों ऊर्जायों का हम कैसे सही इस्तेमाल करते हैं और जैसे के अगर कहीं न कहीं कोई ग्रहों में कमी पूर्व जनित कर्मो के कारण आ गयी हो तो हम उसमे काफी हद तक सुधार भी ला सकते हैं , हालांकि वह सुधार अपनी अपनी बिल्पावेर यानि इच्छा शक्ति , करम और प्रभु पर पूरण भरोसा इसी के चलते पूरण हो पाती
१४. कुटुम्भ व धन भाव
बात करते हैं दुसरे भाव की यानि कुटुम्भ व धन भाव की तो वहां का स्वामित्व शुक्र व् चन्द्र को दिया है और कारक गुरु को माना गया है , एशिया क्यों इसलिए की शुक्र भौतिक गृह है और भौतिक सुखों को प्राप्त करने के लिए धन की ज़रुरत पड़ती ही है , विचारनिए बात यहाँ ये भी है के गुरु को दुसरे, पांचवे , नवं और एकादस का कारक भी माना गया है क्यों की सब असली निधियों का स्वामी गुरु ही होता है जो के किसी के साथ कभी पक्षपात नहीं करता और अगर ये ही अधिकार दुसरे गृह को दिया गया होता तो व ज़रूरी पक्षपात करता , तो यही वृहस्पति का बढ़प्पन माना जाता है जो की किसी के साथ कभी अन्याय नहीं करते हैं और सबको सद्बुधि देने वाले गृह माने जाते हैं ! हम यह भी देखते हैं के दूसरा भाव मारकेश का भी मन जाता है वजह चाहे जो भी रही हो मसलन के अष्टम जो के आयु का भाव माना गया है उससे अष्टम यानी तृत भाव से दवाद्ष भाव यानी दूसरा भाव इसलिए इसे मारकेश माना जाएगा परन्तु दर्शन के रूप में देखें तो यही पता चलता है के शुक्र और चन्द्र के रूप में जो हम भौतिकता जब वृहस्पति रुपी प्यूरिटी को हम एक्सक्लूड यानि बाहर करना शुरू करते हैं तो वह मारक का काम करना शुरू कर देती है , जैसा के मैंने बोला के हम यहाँ इसको लॉजिकल एंगल से देखें तो यही निष्कर्ष निकलता है के बिना मतलब का, बिना मेहनत और गलत तरीकों से कमाया भौतिक सुख आखिरकार हमारे लिए मारकेश का ही काम करेगा
१४. तीसरा और आगे छठा भाव
तीसरा और आगे छठा भाव दोनों का स्वामी और कारक बुध व मंगल को माना जाएगा , यहाँ पर बुध भाई बहनों का और छठे भ्हाव में बंधू बांधवों का जो इए वे भी भाई बहनों के रूप में हमारे सामने आते हैं का कारक बन जाता है दूसरा है मंगल तो इन दोनों ग्रहों की इसलिए स्वामित्व मिला के बुध रुपी लचकता व जुबान से और पराक्रम से ही हम बंधुयों के साथ इंटरैक्ट करते हैं , बुध यानी जुबान का उचित प्रयोग ही हमें सबका मित्र या शत्रु बनाता है और सही व पॉजिटिव मंगल रुपी साहस और पराक्रम हमें विजयी बनाता है ! इस के साथ हम इनके दुसरे भाव यानि छठे भाव को भी देखें के जो की शत्रुता व रोग और ऋण का स्वामी होता है उस संधर्भ में हम देखते हैं के दोनों ग्रहों का सही तालमेल हमें विजेता बनाता है , शत्रु का यहाँ लॉजिकल मतलव जीवन रुपी संघर्ष से है तो यहाँ हम देखते हैं के कैसे वही दोनों गृह उन चीजों का सही रूप में निपटारा करते नज़र आते हैं, और कैसे दो धारी तलवार की तरह बन जाते है।
१५. चतुर्थ भाव
चतुर्थ भाव की बात करें तो यह भाव सुख का मन जाता है और इस भाव का स्वामी चन्द्र और कारक वृहस्पति को माना जाता है , ये दोनों गृह जब आपस में मिलते हैं तो कुंडली में एक प्रकार का गजकेसरी योग बना देते हैं , यानी गज का यहाँ मतलब हाथी से है तो केसरी शेर को कहते हैं जब दोनों ताक़तवर मिल जाएँ तो क्या कहना , ठीक इसी प्रकार से इन दोनों ग्रहों की कल्पना की गयी और उन्हें सुख स्थान का स्वामी बनाया गया , वैसे भी हम देखें तो सिर्फ वृहस्पति ही ऐसा गृह नज़र आता है जो सौर मंडल में सबसे बड़ा और ज्ञान का दाता माना गया है अगर और किसी गृह को ये अधिकार दे दिया होता जैसे शुक्राचार्य को तो जो के सिर्फ वाहरी भौतिक सुखों का कारक है तो क्या होता ! चतुर्थ स्थान माँ का भी माना गया है और ज्योतिष में चन्द्र को माँ का कारक माना जाता है , माँ के आँचल में ही संतान को सुख मिलता है ।
१६. पंचम भाव
पंचम भाव का स्वामी सूर्य और कारक वही गुरु को बनाया गया क्यों की सूर्य रुपी प्रकाश द्वारा ही हम पंचम रुपी विद्या ग्रहण करते हैं और इसके संतान कारक होने का कारण भी यही है के संतान ही अपने माता पिता का नाम रौशन करती है , इसी पंचम से हर व्यक्ति की मानसिकता भी देखी जाती है तो उन कारकों की पोजीशन के अनुसार ही हम कोई निर्णय ले सकते हैं ।
१७. सातवाँ भाव
सातवाँ भाव पति या पत्नी और काम का माना जाता है और इसका स्वामी फिर शुक्र बन जाता है , शुक्र जिसे हम इस दुनिया में भौतिक सुखों का कारक मानते हैं वही नर यानी मंगल यानि रुधिर और मादा यानी शुक्र यानी वरीय रूप से श्रृष्टि का कारण बनता है वैसे भी लॉजिक एंगल से देखें तो शरीर में इन दोनों तत्वों का होना ही जीवन का कारण बनता है ! अब यही सप्तम भाव फिर मारक बन जाता है क्यों की जब हम भौतिकता की अधिकता या कह सकते हैं के भौतिक सुख को प्राप्त करने के एवज में मारकता सहन करनी ही पड़ती है ।
१८. अष्टम भाव
अष्टम भाव जिसे आयु और कष्टों का भाव माना जाता है उसका स्वामी फिर वही मंगल और कारक शनि बन जाता है तो अगर मंगल उर्जा के रूप में हमें जीवन देता है तो वही उर्जा दिए और वाती की तरह जब धीमी पड़नी शुरू हो जाती है तो जीवन ख़तम हो जाता है , जैसे जितना तेल हम दीपक में डालेंगे उतनी ही देर तक वह जलता रहेगा और उसके बाद उसे बुझना ही पड़ेगा इसी प्रक्कर से अष्टम भाव कार्य करता है ।
१९. नवम भाव
नवम भाव के बारे में चर्चा करेंगे के यह भाव धरम का और भाग्य का माना जाता है और इसका स्वामी और कारक सिर्फ एक की गृह बनता है वो है देव गुरु वृहस्पति जो के समस्त सुखों का कारक है और हमें यही सन्देश देता है के हमें मानवता का धर्म अपनाते हुए ही करमरत रहना चाहिए क्यों की चाहे इस संसार में आदमी ने कितने धरम बनाये हैं वो अपनी व्यक्तिगत सोच और परम्परा के अनुसार बनाये जाते हैं पर कल्पुरुख लग्न के रूप में ईश्वर ने सिर्फ एक ही धरम बनाया जो की सिर्फ मानवता ही है वैसे भी धरम का मतलब होता है धारण करना यानी आप किसी विचार को धारण करते हैं और उसके बनाये नियम में चलते हैं ये सब कुछ तभी बनाये गए क्यों की यह संसार विविद्ध संस्कृतियों के मेल जोल से बनता है और हम एक दुसरे का आदर करते हुए सबसे कुछ न कुछ सीखते रहते हैं पर इस चीज़ को न भूलते हुए के इश्वर को सिर्फ और सिर्फ मानवता का ही धरम अच्छा लगता है तभी जब काल्पुरुख कुंडली की ब्रह्मा ने कल्पना की होगी तो शुक्र रुपी भौतिकता का ख्याल ना आते हुए आध्यात्मिक देव गुरु वृहस्पति को ही इस पदवी का हक़दार बनाया गया क्यों की तमाम धरम ग्रंथों व गीता का भी अंत का सन्देश सिर्फ मोक्ष को ही माना गया जिसका सन्देश योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था और इस पर निरर्थक वादविवाद से कोई फायदा नहीं क्यों की मोक्ष का कांसेप्ट बहुत गहरा है, जो हर किसी के बस की बात नहीं.

by Dayanand Shastri

शेयर और सट्टे से लाभ

जानिए किन लोगों को मिलता हैं शेयर और सट्टे से लाभ और होते हैं मालामाल….

प्रिय पाठकों/मित्रों, वर्तमान में शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात अक्सर युवाओं के मन में यह दुविधा रहती है कि नौकरी या व्यवसाय में से उनके लिए उचित क्या होगा। इस संबंध में जन्मकुंडली का सटीक अध्ययन सही दिशा चुनने में सहायक हो सकता है।

कैसे जाने की जातक क्या करेगा या क्या करना उचित रहेगा ??

किसी भी जातक की नौकरी या व्यवसाय देखने के लिए सर्वप्रथम कुंडली में दशम, लग्न और सप्तम स्थान के अधिपति तथा उन भावों में स्थित ग्रहों को देखा जाता है।
लग्न या सप्तम स्थान बलवान होने पर स्वतंत्र व्यवसाय में सफलता का योग बनता है।

प्रायः लग्न राशि, चंद्र राशि और दशम भाव में स्थित ग्रहों के बल के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा व्यवसाय का निर्धारण करना उचित रहता है।
—- अग्नि तत्व वाली राशि (मेष, सिंह, धनु) के जातकों को बुद्धि और मानसिक कौशल संबंधी व्यवसाय जैसे कोचिंग कक्षाएँ, कन्सल्टेंसी, लेखन, ज्योतिष आदि में सफलता मिलती है।
—- पृथ्वी तत्व वाली राशि (वृष, कन्या, मकर) के जातकों को शारीरिक क्षमता वाले व्यवसाय जैसे कृषि, भवन निर्माण, राजनीति आदि में सफलता मिलती है।
—- जल तत्व वाली राशि (कर्क, वृश्चिक, मीन) के जातक प्रायः व्यवसाय बदलते रहते हैं। इन्हें द्रव, स्प्रिट, तेल, जहाज से भ्रमण, दुग्ध व्यवसाय आदि में सफलता मिल सकती है।
—- वायु तत्व (मिथुन, तुला, कुंभ) प्रधान व्यक्ति साहित्य, परामर्शदाता, कलाविद, प्रकाशन, लेखन, रिपोर्टर, मार्केटिंग आदि के कामों में अपना हुनर दिखा सकते हैं।

बहरहाल हम बात कर रहे हैं व्यक्ति के रोजगार(Profession) की. चाहे लाल-किताब हो अथवा वैदिक ज्योतिष, अधिकतर ज्योतिषी व्यक्ति के कार्यक्षेत्र, रोजगार के प्रश्न पर विचार करने के लिए जन्मकुंडली के दशम भाव (कर्म भाव) को महत्व देते हैं. वो समझते हैं कि जो ग्रह दशम स्थान में स्थित हो या जो दशम स्थान का अधिपति हो, वो इन्सान की आजीविका को बतलाता है ||

अब उनके अनुसार यह दशम स्थान सभी लग्नों से हो सकता है——

जन्मलग्न से, सूर्यलग्न से या फिर चन्द्रलग्न से, जिसके दशम में स्थित ग्रहों के स्वभाव-गुण आदि से मनुष्य की आजीविका का पता चलता है. जबकि ऎसा बिल्कुल भी नहीं होता. ये पूरी तरह से गलत थ्योरी है||

दशम स्थान को ज्योतिष में कर्म भाव कहा जाता है, जो कि दैवी विकासात्मक योजना (Evolutionary Plan) का एक अंग है.यहाँ कर्म से तात्पर्य इन्सान के नैतिक अथवा अनैतिक, अच्छे-बुरे, पाप-पुण्य आदि कर्मों से है. दूसरे शब्दों में इन कर्मों का सम्बन्ध धर्म से, भावना से तथा उनकी सही अथवा गलत प्रकृति से है न कि पैसा कमाने के निमित किए जाने वाले कर्म(रोजगार) से ||
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प्रिय पाठकों/मित्रों, शेयर, सट्टा, प्रत‌ियोग‌िता में धन की प्राप्त‌ि अचानक म‌िलने वाले लाभ की श्रेणी में आता है।

ज‌िनकी कुंडली में ग्रहों की यह कुछ खास स्‍थ‌ित‌ि होती है उन्हें इस तरह से लाभ म‌िलता है। तो देख‌िए आपकी जन्मपत्री में भी ऐसे योग तो नहीं बन रहे।
यदि किसी जन्मपत्री में पांचवें घर में गुरू के साथ पहले घर यानी लग्न के स्वामी ग्रह बैठे हों तब व्यक्त‌ि को अचानक से धन लाभ म‌िलता रहता है। उदाहरण के तौर पर आप देख सकते हैं क‌ि इस तस्वीर में मेष लग्न के स्वामी मंगल गुरू के साथ पांचवें घर में बैठे हैं।

यदि किसी कुंडली के पांचवें घर में चंद्र है और उस पर शुक्र की दृष्ट‌ि है तो यह भी अचानक धन प्राप्त होने का योग है।

यदि किसी जन्मपत्री में दूसरे घ्‍ार यानी ध्‍ान भाव और ग्यारहवें घर यानी लाभ स्थ्‍ाान के स्वामी चौथे घर में साथ बैठे हों और उन पर क‌िसी शुभ ग्रह की दृष्ट‌ि है तो आपको अचानक धन म‌िल सकता है।
यदि जन्मपत्री के केन्द्र स्‍थान यानी पहले, चौथे, सातवें और दसवें घर में कोई शुभ ग्रह हैं मजबूत स्‍थ‌ित‌ि में हों तो यह व्यक्त‌ि को अचानक लाभ द‌िलाते हैं।
यदि आपका आपका जन्म मीन लग्न में हुआ है और आपकी कुंडली में पांचवें घर में बुध है और ग्यारहवें घर यानी आय स्‍थान में शन‌ि है तो यह शेयर सट्टे में अचानक लाभ का योग बनाता है।
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आइये जाने की किसी जन्म कुंडली में दशन स्थान में क्या होने पर क्या करना चाहिए—

सूर्य होने पर : पैतृक व्यवसाय (औषधि, ठेकेदारी, सोने का व्यवसाय, वस्त्रों का क्रय-विक्रय आदि) से उन्नति होती है। ये जातक प्रायः सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर जाते हैं।
चन्द्र होने पर : जातक मातृ कुल का व्यवसाय या माता के धन से (आभूषण, मोती, खेती, वस्त्र आदि) व्यवसाय करता है।
मंगल होने पर : भाइयों के साथ पार्टनरशिप (बिजली के उपकरण, अस्त्र-शस्त्र, आतिशबाजी, वकालत, फौजदारी) में व्यवसाय लाभ देता है। ये व्यक्ति सेना, पुलिस में भी सफल होते हैं।
बुध होने पर : मित्रों के साथ व्यवसाय लाभ देता है। लेखक, कवि, ज्योतिषी, पुरोहित, चित्रकला, भाषणकला संबंधी कार्य में लाभ होता है।
बृहस्पति होने पर : भाई-बहनों के साथ व्यवसाय में लाभ, इतिहासकार, प्रोफेसर, धर्मोपदेशक, जज, व्याख्यानकर्ता आदि कार्यों में लाभ होता है।
शुक्र होने पर : पत्नी से धन लाभ, व्यवसाय में सहयोग। जौहरी का कार्य, भोजन, होटल संबंधी कार्य, आभूषण, पुष्प विक्रय आदि कामों में लाभ होता है।
शनि :- शनि अगर दसवें भाव में स्वग्रही यानी अपनी ही राशि का हो तो 36वें साल के बाद फायदा होता है। ऐसे जातक अधिकांश नौकरी ही करते हैं। अधिकतर सिविल या मैकेनिकल इंजीनियरिंग में जाते है। लेकिन अगर दूसरी राशि या शत्रु राशि का हो तो बेहद तकलीफों के बाद सफलता मिलती है। अधिकांश मामलों में कम स्तर के मशीनरी कामकाज से व्यक्ति जुदा हो जाता है।
राहू :- अचानक लॉटरी से, सट्‍टे से या शेयर से व्यक्ति को लाभ मिलता है। ऐसे जातक राजनीति में विशेष रूप सफल रहते हैं।
केतु :- केतु की दशम में स्थिति संदिग्ध मानी जाती है किंतु अगर साथ में अच्छे ग्रह हो तो उसी ग्रह के अनुसार फल मिलता है लेकिन अकेला होने या पाप प्रभाव में होने पर के‍तु व्यक्ति को करियर के क्षेत्र में डूबो देता है।

जन्‍मकुंडली में पंच महापुरुष योग

जानिए क्‍या होता है पंच महापुरुष योग और कैसे बनता हैं पांच महापुरुष योग ?
क्या आपकी जन्‍मकुंडली में पंच महापुरुष योग है?

प्रिय पाठकों/मित्रों, पंच महापुरुष योग एक ऐसा योग है जिसमें जातक को सभी प्रकार के सुख मिलते हैं। यह योग अपनी राशि में पांच ग्रहों के स्थित होने एवं उच्च होकर केन्द्र में स्थित हाने पर बनता है। पांच ग्रहों मंगल,बृहस्पति, शुक्र, बुध व शनि में से किसी एक ग्रह अथवा एकाधिक ग्रहों की किसी विशिष्ट स्थिति में होने पर यह योग बनता है। वैदिक ज्योतिष में योग बहुत महत्वपूर्ण हैं , योग एक व्यक्ति के पूरे जीवन को प्रभावित करते है ।

जन्म कुंडली में योग एक खास जगह में ग्रहों के युति / संयोजन से बनते हैं। ज्योतिष में बहुत महत्वपूर्ण योग है जैसे कालसर्प योग, पंच महापुरुष योग, राज योग… ऐसे कई योग होते है जो हमारे जीवनपर अच्छा, बुरा असर करते है । जीवन को समझने के लिए अपने कुंडली में कोन कोन से योग बहुत महत्वपूर्ण हैं, उन योगोका हमारे जीवनपर कैसा असर पड़ेगा यह कसीस भी जातक की जन्म कुंडली से मालूम होता हैं |

ज्योतिष शास्त्र में ऐसे अनेक योगों का उल्लेख है जो व्यक्ति की कुंडली में यदि उपस्थित हों तो उसे सम्पन्नता,प्रतिष्ठा,उच्च-पद आदि देते हैं, किंतु एक तो ऐसे योगों की संख्या बहुत अधिक है दूसरे उनको कुंडली में ढूंढ़ पाना बिना किसी विज्ञ ज्योतिष की सहायता के टेढ़ी खीर है। अतः यहाँ पर हम एक ऐसे योग की चर्चा करना उचित समझते हैं जिसको पाठकगण अपनी कुंडली में सरलता से पहचान सकते हैं। इस योग को ‘पंचमहापुरुष योग’ के नाम से जाना जाता है। इस योग की उपस्थिति जातक को उसके लक्ष्य को प्राप्त करने में अत्यंत सहायता देती है। वह धनी-मानी,समाज में प्रतिष्ठित,संस्कारवान,महापुरूष के समान ही होता है,उसकी यशकीर्ति दूर तक फैली होती है।

इस योग में ‘पंच’ शब्द का उपयोग इसलिए हुआ है क्योंकि पांच ग्रहों शुक्र, बुध, मंगल,बृहस्पति व शनि में से किसी एक ग्रह या एकाधिक ग्रहों के एक विशिष्ट स्थिति में उपस्थिति से यह योग उत्पन्न हो सकता है।जैसे उपरोक्त चक्र/कुंडली में बृहस्पति लग्न में,शनि चतुर्थ में व मंगल सप्तम स्थान में उच्च हो कर स्थित हैं। जहाँ 4 का का अंक है वह लग्न स्थान कहलाता है।जन्म कुंडली में बारह भाव (खाने) होते हैं, जिनमें से चार भाव (खाने) ‘केंद्र स्थान’ कहे जाते हैं।

इसे निम्न द्वारा सहजता से समझा जा सकता है:—

प्रथम भाव (जो एक केंद्र स्थान है) को ‘लग्न स्थान’ भी कहते हैं। यहां जो भी राशि या अंक पड़ा होता है वह उस जातक का ‘जन्म लग्न’ होता है। जैसे 1 का अंक तो मेष लग्न, 2 का अंक तो वृष लग्न आदि आदि। यदि उपरोक्त वर्णित पांच ग्रह केंद्र स्थान में एक साथ या अलग-अलग अपनी राशियों या उच्च राशियों में स्थित हों तो वह पंचमहापुरूष योग का निर्माण करते हैं,यह पांच ग्रह किन-किन राशियों में पंचमहापुरुष योग की स्थिति उत्पन्न करते हैं |

पँच महापुरुष योग में – रूचक, भद्र, हंस, मालवय और शश योग आते हैं मंगल से “रूचक” योग बनता है बुध से “भद्र” बृहस्पति से “हंस ” शुक्र से “मालवय” और शनि से “शश” योग बनता है इन पांच योगो का किसी कुंडली में एक साथ बनना तो दुर्लभ है परन्तु यदि पँच महापुरुष योग में से कोई एक भी कुंडली में बने तो बहुत से शुभ फलों को बढ़ाता है –

ऐसे बनता हैं पंच महापुरुष योग—-

1. रुचक योग—
जब जन्म कुंडली में मंगल यदि स्व राशि (मेष, वृश्चिक) या उच्च राशि (मकर) में होकर केंद्र (1, 4, 7, 10) भाव में बैठा हो तो इसे रूचक योग कहते हैं। अथवा जब कुंडली में मंगल उच्च स्‍थान में, स्वग्रही, मूल त्रिकोण में बैठकर केंद्र स्‍थान में हो तो मंगल ग्रह की यह स्थिति रुचक योग कहलाती है। इस योग में जन्‍मे जातकों का शरीर मजबूत होता है एवं इनमें विशेष कान्ति होती है। ये व्‍यक्‍ति धनी, शस्त्र व शास्त्र क ज्ञानी होते हैं। मंत्र और अभिचार क्रिया में भी ये कुशल होते हैं। इन्‍हें राजा से सम्मान मिलता है। जिसके जन्म कुण्डली में रुचक योग बन रहा हो, वह व्यक्ति दीर्घायु वाला होता है. उसकी त्वचा साफ और सुनदर होती है. शरीर में रक्त की मात्रा अधिक होती है. वह बली, और साहसी होता है | इसके साथ ही उसे सिद्धियां प्राप्त करने में विशेष रुचि हो सकती है | इस योग से युक्त व्यक्ति सुन्दर, भृ्कुटी, घने केश, हाथ-पैर सुडौल, मंत्रज्ञ, रक्तश्याम वर्ण, बडा शूर, शत्रुजित, शंख समान कण्ठ, बडा पराक्रमी, दुष्ट, ब्राह्माण, गुरु के सामने विनयशील, जनता से प्रेम करने वाला होता है | व्यक्ति में इन सभी गुणों के साथ साथ यह योग व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों से लडने की शक्ति देता है. इस योग से युक्त व्यकि अपने शत्रुओं को परास्त करनें में कुशल होता है. यदि कुंडली में रूचक योग बना हो तो ऐसा व्यक्ति हिम्मत, शक्ति, प्रक्रम से परिपूर्ण एक निडर व्यक्ति होता है। प्रतिस्पर्द्धा और साहसी कार्यों में हमेशा आगे रहता है ऐसे व्यक्ति को कभी शत्रु दबा नहीं पाते। रूचक योग वाला व्यक्ति जिस बात को ठान ले उसे अवश्य पूरा करता है। इस योग के बनने पर व्यक्ति की मांसपेशियां बहुत अच्छी होती हैं और व्यक्ति उम्र बढ़ने पर भी तरुण अवस्था का प्रतीत होता है। रूचक योग वाला व्यक्ति कर्मप्रधान होता है और मेहनत करने में कभी नहीं घबराता। यह शत्रुजित, कोमल मन वाले, त्यागी, धनी सुखी, सेनापति और वाहन प्रेमी होते हैं। इस योग से प्रभावित जातक पुलिस, राजनीति, सेना, शारिरिक शक्ति युक्त कार्य में अग्रणी, मशीन विभाग तथा उर्जा से जुड़े क्षेत्र में काम करते हैं। Saniya Mirza और Rahul Dravid इस योग के उदहारण है। अधिक जानकारी हेतु आप पंडित दयानन्द शास्त्री से 09039390067 पर संपर्क कर सकते हैं |

2. भद्र योग—-
यदि बुध स्व या उच्च राशि (मिथुन, कन्या) में होकर केंद्र (1,4,7,10) भाव में बैठा हो तो इसे भद्र योग कहते हैं। अथवा यह योग तब बनता है जब बुध गृह केंद्र में स्वराशी में हो अर्थात मिथुन अथवा कन्या में हो। इस योग से प्रभावित जातकों के हाथ ज्यादा लम्बे होते हैं एवं वह विद्वान् होने के साथ-साथ बातों की कला में निपुण होते हैं। बातों में उनके सामने कोई भी नहीं ठहर सकता। इनके चेहरे पर शेर जैसा तेज और गति हाथी की तरह होती है। जब कुंडली में भद्र योग बना हो तो ऐसा व्यक्ति बहुत बुद्धिमान, तर्कशील, दूरद्रष्टा और वाक्पटु होता है ऐसा व्यक्ति गणनात्मक विषयों में हमेशा आगे रहता है। ऐसे व्यक्ति की कैचिंग पावर बहुत तेज होती है और अच्छे निर्णय लेने में माहिर होता है भद्र योग वाला व्यक्ति बहुत व्यवहारकुशल होता है किसी भी व्यक्ति को अपनी बातों से जल्दी ही प्रभावित कर देता है अपनी बुद्धि और व्यव्हार से ऐसा व्यक्ति सपफलता पाता है। इसके अतिरिक्त जिसका जन्म भद्र नामक योग में हुआ हो, उसके हाथ-पैर में शंख, तलवार, हाथी, गदा, फूल, बाण, पताका, चक्र, कमल आदि चिन्ह हो सकते है. उसकी वाणी सुन्दर होती है. इस योग वाले व्यक्ति की दोनों भृ्कुटी सुन्दर, बुद्धिमान, शास्त्रवेता, मान सहित भोग भोगने वाला, बातों को छिपाने वाला, धार्मिक, सुन्दर ललाट, धैर्यवान, काले घुंघराले बाल युक्त होता है | ये जातक श्रेष्ठ प्रसाशक, निपुण, विपुल सम्पदा, प्रज्ञावान, धनी, सम्माननीय और दयावान होते हैं। ऐसे जातक आंकडो से सम्बधित कार्य, बैंक, चार्टेड अकाउंट, क्‍लर्क, अध्ययन कार्यों से सम्बंधित तथा विदेश सम्बंधी कार्य करते हैं।Bill Gates के horoscope में ये योग है जिसने उन्हें IT के क्षेत्र का दिग्गज बनाया, इसके अलावा Lalbahadur Shastri और Dr Rajendra Prasad भी इसी योग के जन्मे महापुरुष है।

3. हंस योग—-
जब बृहस्पति स्व या उच्च राशि (धनु, मीन, कर्क) में होकर केंद्र (1,4,7,10) भाव में बैठा हो तो इसे हंस योग कहते है। अथवा यह योग जातक की कुंडली में तब बनता है जब गुरु ग्रह धनु, मीन और कर्क राशि में से किसी एक राशि में होकर केंद्र में बैठा हो। इस योग से प्रभावित जातक सुन्दर, सुमधुर वाणी के प्रयोग वाला, नदी या समुद्र के आसपास रहने वाला होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में हंस योग हो ऐसा व्यक्ति ज्ञानी और सूझ-बूझ से युक्त होता है। ऐसे व्यक्ति को बहुत सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है। हंस योग वाला व्यक्ति विवेकशील और परिपक्व स्वभाव वाला होता है, ऐसे व्यक्ति समस्याओं का समाधान बड़ी सरलता से ढूंढ लेते हैं और इनमे प्रबंधन अर्थात मैनेजमेंट की बहुत अच्छी कला छिपी होती है और ऐसे व्यक्ति बहुत अच्छे टीचर के गुण भी रखते हैं और अपने ज्ञान से बहुत नाम कमाते हैं। ऐसे व्‍यक्‍ति राजा के समान जीवन जीते हैं। इनको कफ़ की परेशानी रहती है। एवं इनकी पत्नी कोमलांगी होती है। ये व्‍यक्‍ति सुंदर, सुखी, शास्त्रों के ज्ञाता, निपुण, गुणी और सदाचारी एवं धार्मिक प्रवृति के होते हैं।अधिक जानकारी हेतु आप पंडित दयानन्द शास्त्री से 09039390067 पर संपर्क कर सकते हैं | jailalitha और madhuri dixit इस योग के जन्मे प्रतिभाशाली लोग है।

4. मालव्य योग—-
जब शुक्र स्व या उच्च राशि (वृष, तुला, मीन) में होकर केंद्र (पहला, चौथा, सातवा और दसवा भाव) भाव में बैठा हो तो इसे मालवय योग कहते हैं। अथवा पंच महापुरुष का मालव्‍य योग तब बनता है जब किसी जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह वृषभ, तुला या मीन राशि का होकर केंद्र में स्‍थित हो। इस योग से प्रभावित जातक के चेहरे पर चन्द्र के समान काँति होती है। ये युद्ध और राजनीति में निपुणता प्राप्त करते हैं। यदि कुंडली में मालवय योग हो तो ऐसे में व्यक्ति को धन ,संपत्ति , ऐश्वर्य और वैभव की प्राप्ति होती है भौतिक सुख- सुविधाएँ बहुत अच्छी मात्रा में प्राप्त होती हैं। ऐसा व्यक्ति बहुत महत्वकांशी होता है और हमेशा बड़ी योजनाओं के बारे में ही सोचता है। मालवय योग वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक होता है , ऐसे व्यक्ति में बहुतसे कलात्मक गुण होते हैं और रचनात्मक चीजों में उसकी बहुत रुचि होती है। मालवय योग वाले व्यक्ति को अच्छा संपत्ति और वाहन सुख प्राप्त होता है। यह व्‍यक्‍ति स्त्री, पुत्र, वाहन, भवन और अतुल संपदा का स्वामी होता है। इनका स्‍वभाव तेजस्वी, विद्वान, उत्साही, त्यागी,चतुर होता है। ये जातक फैशन, कलाकार, सौंदर्य प्रसाधन, कवि, नाटक कार, गुरु या सामाजिक कार्यो से संबंधित क्षेत्र में नाम व धन कमाते हैं । Pt. Jawaharlal Nehru इस योग के उदहारण है। अधिक जानकारी हेतु आप पंडित दयानन्द शास्त्री से 09039390067 पर संपर्क कर सकते हैं |

5. शश योग—-
जब शनि स्व या उच्च राशि (मकर, कुम्भ, तुला) में होकर केंद्र (1,4,7,10) भाव में हो तो इसे शश योग कहते हैं। इस योग से प्रभावित व्‍यक्‍ति का जीवन किसी राजा से कम नहीं होता। यह योग शनि के मकर, कुम्भ या तुला राशि का होकर केंद्र में उपस्थित होने पर बनता है। शश योग में जातक सेनापति, धातु कर्मी, विनोदी, क्रूर बुद्धि, जंगल–पर्वत में घूमने वाला होता है। उसकी आँखों में क्रोध की ज्वाला चमकती है। ये जातक तेजस्वी, भ्रातृ प्रेमी, सुखी, शूरवीर, श्यामवर्ण, तेज दिमाग और स्त्री के प्रति अनुरत रहते हैं।

शश योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति छोटे मुंह वाला, जिसकें छोटे छोटे दांत होते है. उसे घूमने-फिरने के शौक होता है \ वह भ्रमण उद्देश्य से अनेक यात्राएं करता है | शश योग वाला व्यक्ति क्रोधी, हठी, बडा वीर, वन-पर्वत,किलों में घूमने वाला होता है. उसे नदियों के निकट रहना रुचिकर लगता है. इसके अतिरिक्त उसे घर में मेहमान आने प्रिय लगते है. कद से मध्यम होता है. व उसे अपनी मेहनत के कार्यो से प्रसिद्धि प्राप्त होती है |
ऎसा व्यक्ति दूसरों के सेवा करने में परम सुख का अनुभव करता है | धातु वस्तु निर्माण में कुशल होता है. चंचल नेत्र होते है. विपरीत लिंग का भक्त होता है. दूसरे का धन का अपव्यय करता है | माता का भक्त होता है. सुन्दर पतली कमर वाला होता है. सुबुद्धिमान और दूसरों के दोष ढूंढने वाला होता है |

यदि कुंडली में शश योग बना हो ऐसा व्यक्ति ऊँचे पदों पर कार्यरत होता है यह योग आजीविका की दृष्टि से बहुत शुभ होता है ऐसा व्यक्ति अपने कार्य क्षेत्र में बहुत उन्नति करता है, दूरद्रष्टा और गूढ़ ज्ञान में रुचि रखने वाला होता है , ऐसे व्यक्ति को जनता की बहुत सपोर्ट मिलती है और जीवन में अच्छी सफलता को प्राप्त करता है, शश योग वाला व्यक्ति अनुशाशन प्रिय होता है और अपने कर्तव्यों का पूरी तरह निर्वाह करता है।ये व्‍यक्‍ति वैज्ञानिक, निर्माणकर्ता, भूमि सम्बंधित कार्यो में संलग्न, जासूस, वकील तथा विशाल भूमि खंड के स्‍वामी होते हैं। फिल्म अभिनेता शाहरुख़ खान की जन्म कुंडली शेष योग बनाहुआ हैं| perfect Example of Shash Yoga ..Shahrukh Khan ..अधिक जानकारी हेतु आप पंडित दयानन्द शास्त्री से 09039390067 पर संपर्क कर सकते हैं |

यदि पंच महापुरुष योग का निर्माण कर रहे ग्रह पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो उसके द्वारा फल में कमी के साथ-साथ उसके चरित्र में भी निम्नता आयेगी।

क्या आप जानते हैं इन अंधविश्वासों के वैज्ञानिक कारण

क्या आप जानते हैं इन अंधविश्वासों के वैज्ञानिक कारण—-

प्रिय पाठकों,हमारे पूर्वजो द्वारा बनाए गए इन रिवाजों पीछे विज्ञान काम करता है। जी हां हर अंधविश्वास के पीछे छुपा है एक वैज्ञानिक तथ्य। आएये जानते है | हमारे देश भारत में अधंविश्वास से जुड़ी बातों को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है आज के समय में भी लोग अंधविश्वासों को मानने में पीछे नहीं हैं। लोग अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए अंधविश्वास से जुड़ी वो हर चीजों को मानते है जिसमें वो अपना फायदे देखते है। उन्हें शुभ अशुभ मानते हुए उन सभी नियमों का पालन करते हैं जो काफी समय से चले आ रहें हैं। पर क्या आप जानते हैं कि इनके पीछे कुछ वैज्ञानिक तर्क छुपे हुए हैं। जाने उन सभी बातों को जिसे आप अंधविश्वास मान उसे शुभ अशुभ का नाम देते है |

भारत की हर परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारण रहे हैं | हमारे समाज में कुछ रिवाज ऐसे हैं जिन्हें अंधविश्वास की नजर से देखा जाता है। जैस घर के बाहर नींबू मिर्ची टांग देना, दही खा कर घर से बाहर ना निकलना वगैरहा वगैरहा। पर क्या आप जानते है कि हमारे पूर्वजो द्वारा बनाए गए इन रिवाजों पीछे विज्ञान काम करता है। जी हां हर अंधविश्वास के पीछे छुपा है एक वैज्ञानिक तथ्य। आइये जानते हैं उनके कारण —

गर्भवती महिला के बाहर जाने पर पाबंदी—–
बुरी आत्मा का साया मां और होने वाले बच्चे पर पड़ सकता है। ऐसा करने के पीछे लॉजिक है कि पहले के वक्त में आने-जाने के साधनों की कमी थी और गर्भवती महिलाओं को पैदल चलने की समस्या होती थी।

नदी में सिक्के फेंकना शुभ माना जाता है—-
अक्सर नदी में सिक्का फेंककर लोग भगवान से अपनी मनोकामना पूरी करने की दुआ मांगते हैं और ऐसा माना जाता है की नदी में सिक्का फेंकने से भाग्य मजबूत होता है ! लेकिन इसके पीछे के वैज्ञानिक कारण की बात करें तो पहले के समय में ताम्बे के सिक्के हुआ करते थे जो पानी को बैक्टिरिया मुक्त करते थे और इसी लिए पानी में सिक्के डाले जाते थे लेकिन धीरे धीरे लोगों ने इसे भाग्य चमकाने से जोड़ दिया !

रात में नाखून नहीं काटना —-
लोगों में रात में नाखून ना काटने को लेकर अंधविश्वास है कि रात में ऐसा करने से किस्मत पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जबकि पुराने वक्त में बिजली नहीं होने के कारण रात में नाखून नहीं काटे जाते थे। उस वक्त नाखून काटने के लिए भी औजारों का इस्तेमाल किया जाता था। इससे अंधेरे में उंगिलयों के कटने के कटने का डर भी होता था।

बिल्ली का रास्ता काटना—
पुराने समय में लोग जब व्यापार के लिए एक बैलगाड़ियों से एक शहर से दूसरे शहर जाया करते थे, रात के समय में बिल्ली की आंखे चमकती थी जिससे गाय, बैल और घोड़े डर जाया करते थे। इसलिए थोड़ी देर के लिए यात्रा रोक दी जाती थी। इसी आधार लोग आपस में कहने लगे कि जब बिल्ली गुजरे तो थोड़ी देर के लिए रुक जाना चाहिए और यही बाद में अंधविश्वास बन गया।

सांप को मारने के बाद सिर कुचलना —-
कहा जाता है सांप को मारने वाले की तस्वीर उसकी आंखों में छप जाती है। जबकि इस अंधविश्वासा के पीछे लॉजिक ये है कि सांप के मरने के बाद भी उसका जहर लोगों को मार सकता है। इसलिए उसके सिर को कुचल कर दबा दिया जाता है ।

ग्रहण के समय बाहर ना आना —-
हमारे बड़े अक्सर हमें ग्रहण के समय बाहर निकलने नहीं देते उनके मुताबिक इस दौरान बुरी ताकते हावी हो जाती हैं। जबकि इसके पीछे का असली लॉजिक है कि ग्रहण के वक्त सूर्य की किरणों से त्वचा के रोग हो सकते हैं। साथ ही नंगी आंखों से उसे देखने से लोग अंधे भी हो सकते हैं।

शव यात्रा से लौटने के बाद स्नान करना—
भारत में ऐसी मान्यता है की जब भी शव यात्रा में शामिल हों तो लौटने के बाद स्नान करना जरुरी है क्योंकि ऐसा ना करना अशुभ माना जाता है ! लेकिन इसके पीछे के वैज्ञानिक कारण की बात करें तो मौत के बाद शरीर में कई हानिकारक बैक्टीरिया जन्म लेते हैं और इनके संपर्क में आने से ये बैक्टीरिया दूसरों के शरीर में फ़ैल सकते हैं इससे बचने के लिए स्नान किया जाता है ताकि ये बैक्टीरिया दूर हो जाएं !

दही खा कर घर से बाहर ना निकलना —
किसी भी शुभ काम पर जाने से पहले घर से दही खाकर निकलना शुभ माना जाता है। लेकिन इसके पीछे लॉजिक है कि गर्म मौसम के कारण दही खाने से पेट ठंडा रहता है। साथ ही दही में चीनी मिलाकर खाने से शरीर में ग्लूकोज की मात्रा सही बनी रहती है।

जानिए क्यों तोडा जाता हैं नारियल —
कहते है की जब भी कुछ नया लिया जाता है उसका पूजा या भगवान का नाम ले कर ही शुरू किया जाता है। लोग जब भी नये घर या फिर नया गाडी लेते है तो उसके लिए पूजा करते है और उसके सामने नारियल तोडते है नारियल को बहुत जोड़ से नीचे फेकते है ताकि वह टुकडे टुकेडी हो जाये। लोगो का यह मानना है की ऐसा करने से वह उस चीज़ को आपने मानने लगते है।

क्यों दिया जाता हैं किसी भी आयोजन/अनुष्ठान/शुभ कार्य आदि के उपहार में एक रुपया देना जोड़ना शुभ —

भारत में किसी भी आयोजन/अनुष्ठान/शुभ कार्य आदि में एक रुपय देने का प्रचलन है। कुल में एक रुपया और देने को शुभ माना जाता है।
इसके कई कारण है। कुछ मानते है कि इसके कारण भाग्य/किस्मत चमकती है, कुछ के लिये यह बड़ों का प्यार और आशीर्वाद, और कुछ के लिये यह जिंदगी के नए पडाव की शुरुआत के बराबर है। कुछ एसा भी मानते है कि एक रुपय बढ़ाने से कुल का भाग करना कठिन हो जाएगा। अगर ना बढ़ाया जाये तो कुल के दो बराबर भाग किये जा सकते है और इसे अशुभ माना जाता है। इसलिए, खासकर व्याह के घरों में ये काफी प्रचलित है।

दरवाजे पर नींबू मिर्ची लटकाना—-

दरवाजे पर नींबू मिर्ची लटकाने पीछे लोगों का अंधविश्वास है कि ऐसा करने से बुरी ताकतो का साया दूर रहता है। इसके पीछे असली लॉजिक है कि नींबू मिर्ची में मौजूद सायटिक एसिड होता है जो कीड़े-मकौड़ों को घर में घुसने से रोकता है।

क्यों लगाया जाता हैं नज़र बट्टू–

उत्तर भारत और पाकिस्तान में नींबू को शुभ माना जाता है और अनेको अनुशठान मे इसका प्रयोग किया जाता है। नींबू और मिर्च के गाठ-बन्धन नए घरों और दुकानो के द्वार पर लगाया जाता है। माना जाता है कि ऐसे करने से बुरे आत्माओं और अपशगुन दूर करवाता है। इस गाठ-बन्धन का नाम नज़र-बट्टू है और इस्मे ७ मिर्च और १ नींबू का प्रयोग होता है। नज़र बट्टू को दैनिक, साप्ताहिक या पाक्षिक बदला जाता है।

क्यों माना जाता हैं शुभ पानी का गिरना—
जब कही पानी गिरता है तो कुछ अच्छा होने वाला है ऐसा लोग का मानना है या कह सकते है की वह उनका अंधविश्वास है। कहा जाता है की कोई व्यक्ति के जाने के बाद अगर पानी गिरते है या गिराया जाता है तो उस व्यक्ति का यात्रा अछा जाता है और अगर वह व्यक्ति कोई काम के लिए बहार निकला है तो उसका काम किस्मत उसका साथ देगी। यह तब भी किया जाता है जब कोई बच्चा परीक्षा देने के लिए जाता है या फिर कोई व्यक्ति जब नौकरी ढूँढने जाता है। यह माना जाता है की पानी गिरना या पानी का बहना शुभ होता है और सब कुछ आराम से चलता है कोई बाधा नहीं होती।

यह हैं कारण छींकना तथा टोकना—
जब कोई घर से निकल रहा हो तब उससे यह पूछकर टोकना कि कहा जा रहे हो अपशगुन है। ऐसा करने से जिस काम के लिए बाहर जाना था वो खराब हो जाएगा। इसी विश्वास के कारण भारत में बड़े हमेशा बताते है कि घर से निकलते समय किसी को कभी टोकना नहीं। घर से निकलने से पहले छीकना भी अपशगुन माना जाता है। छीक आने पर बोला जाता है कि बैठकर पानी पीना चाहिए वरना काम बिगड़ जाएगा। लेकिन अगर २ बार छीके तो ऐसा कुछ नहीं होगा।

मंगल और गुरुवार को बाल न धोना —-
आपने अक्सर देखा होगा अक्सर महिलाएं मंगल और गुरूवार को बाल धोने से परहेज करती है। क्योंकि उन्हें लगता है कि इस दिन बाल धोने से बुरे वक्त की शुरूआत होती है।
लेकिन आपको बता दें कि पुराने वक्त में लोग अपने घरों में पानी स्टोर करके रखते थे। बाल धोने में पानी ज्यादा खर्च होता है , तो इन दो दिन पानी बचाने के लिए बाल नहीं धोए जाते थे।

तस्य कण्ठमनुप्राप्ते दानवस्यामृते तदा।
आख्यातं चंद्रसूर्याभ्यां सुराणां हितकाम्यया।।

वैदिक व पौराणिक ग्रथों में ग्रहण के संदर्भ में कहा गया है कि ग्रहण काल मे सौभाग्यवती स्त्रियों को सिर के नीचे से ही स्नान करना चाहिए, अर्थात् उन्हें अपने बालों को नहीं खोलना चाहिए, जिन्हें ऋतुकाल हो ऐसी महिलाओं को जल स्रोतों में स्नान नहीं करना चाहिए। उन्हे जल स्रोतों से बाहर स्नान करना चाहिए। सूतक व ग्रहण काल में देवमूर्ति को स्पर्श कतई नहीं करना चाहिए। ग्रहण काल में भोजन करना, अर्थात् अन्न, जल को ग्रहण नहीं करना चाहिए। सोना, सहवास करना, तेल लगाना तथा बेकार की बातें नहीं करना चाहिए। बच्चे, बूढे, रोगी एवं गर्भवती स्त्रियों को आवश्यकता के अनुसार खाने-पीने या दवाई लेने में दोष नहीं होता है। सावधानी-गर्भवती महिलाओं को होने वाली संतान व स्व के हित को देखते हुए यह संयम व सावधानी रखना जरूरी होता है कि, वह ग्रहण के समय में नोकदार जैसे सुई व धारदार जैसे चाकू आदि वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

—-मंदिर में घंटे का बजाना का अर्थ भगवान को खुश करना मन जाता हैं कइँती इसका कारण/लॉजिक यह हैं की मंदिर घंटे को बजाने से उसके वाइब्रेशन से साकारात्मक उर्जा पैदा होती है। चारों ओर का वातावरण साफ रहता है। इसलिए हमारे घरों में भी घंटे और शंख का प्रयोग किया जाता है।

यह हैं पीपल पेड़ की छाया का महत्त्व —
पीपल के पेड़ का हिंदुस्तान और विदेश में भी बहुत मानता है। कहा जाता है की पीपल के पेड़ में विष्णु, शनि, हनुमान तथाः अन्य भगवानो का वास है। इस कारन लोगो पीपल के पेड़ के नीचे नहीं बैटते बल्कि पेड़ की पूजा करते है। पीपल पेड़ पे लोग कुमकुम और हल्दी पूजा करने पर लगाते है और औरते पेड़ के चारो ऒर धागा बांधती है। पीपल का पेड़ हमे आक्सीजन देता है।
कुछ लोगो का यह भी कहना है की जहा भगवान का वास होता है, वहा बुरे का भी वास होता है। कहते है की शाम होने के बाद पीपल पेड़ के नीचे या आस पास भी नहीं जाना चाहिए, कक्युकी माना जाता है की उस समय पीपल के पेड़ पर भूत प्रेत का वास होता है। तो जिस तरह से हम पीपल के पेड़ को मानते है उतना ही उससे डरते है।

इसलिए नहीं करनी चाहिए सूर्य डूबने के बाद सफाई—
भारत के अनेक अन्धविश्वासो में से एक यह कहता है कि सूर्य डूबने के बाद हमे घर की सफाई नही करना चाहिए। एसा करना हमारे जीवन में दुर्भाग्य लाएगा। माना जाता है कि इस कार्य करने से हम अपने जीवन से भाग्य को निकाल रहे है। लेकिन इस अन्धविश्वास के पीछे एक कारण है। पहले के ज़माने में प्रकाश प्रणालियों अच्छे नहीं थे। सफाई करने के समय कुछ छोटा गिरा हो तो धूल के साथ भूल से उसे भी फेंक दिया जाता। इस कारण क़ीमती सामान का खो जाने का डर रहता था। अन्य कारण यह है कि झाड़ू के टुकड़े दीपक पर गिर सकते थे, जिस्से आग का खतरा पैदा होता। इन कारणों की वजह से यह अन्धविश्वास पैदा हुअ।

इसलिए अशुभ हैं कांच का टूट्ना—

हमारी भारत संस्कृति में में यह अपशगुन माना जाता है खास कर किसी शुभ काम से पेहले। कुछ लोग मानते है की शीशे में हमारे आत्मा को कब्ज करने की ताकत मॉजूद है। इसीलिए उसका टूट्ना का मत्लब है हमारा आत्मा से अलग होना। समय के साथ यह विश्वास कांच के अंधविश्वास में बदल गया। एक और विवरण यह है कि पेह्ले कांच बहुत महंगा था, इसिलिए बच्चों को उससे दूर रखने के लिए ऐसी कहनियाँ बनाई गई हो। यह भी हो सकता है कि ताकि टूटे कांच से किसी को चोट ना लगे ऐसी अफ्वाहे फैलाई गई हो।

13 का अंक भी मानते हैं अशुभ–

काफ़ी लोगो का मानना है कि १३ अशुभ अंक है। यह सबसे ज़्यादा माने अंधविश्वासों में से एक है। पार्टी में १३ लोगो क होना, घर या गाड़ी का नंबर १३ होना, ये सब अपशगुन है। कुछ इमारतों में तेरहवां माला है हि नहीं। बारह के बाद सीधा १४ होता है। इसका कोई सर्तक वजह नहीं है। ईसा मसीहा के आखिरी खाने पर उनको मिलाकर १३ लोग थे, और उन में से एक उनका विश्वासघातक निकला। इसके अलावा महीने के तेरहवां दिन पर कफ़ी दुर्घतनाएँ भी हुई है जिससे यह अंधविश्वास और भी गहरा हो गया। लेकिन यह सिर्फ़ इत्त्फाक है। इसका कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है। १३ अंक से भी ज़्यादा अशुभ शुक्रवार को माना जाता है जो महीने के तेरहवे दिन को आता है।
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क्यों लगाया जाता हैं तिलक–

भारतीय संस्कृति में तिलक लगाना शुभ संकेत माना जाता है लेकिन क्या आपको पता है आखिर तिलक लगाते क्यों हैं ? इसके पीछे के कारण क्या है जो ये प्रथा सदियों से चली आ रही है ? आइये हम आपको इसके वैज्ञानिक कारणों के बारे में बताते हैं !

माथे पर तिलक लगाना हिन्दू धर्म की एक पहचान होती है जो माथे के बीचों बीच लगाया जाता है ! जब भी कोई सुबह कार्य किया जाता है तो माथे पर तिलक लगाया जाता है जो हल्दी, सिन्दूर, केशर, भस्म और चंदन आदि का इस्तेमाल किया जाता है ! तिलक लगाने की प्रथा आज से नहीं सदियों से चली आ रही है, युद्ध में जाते समय राजा महाराजा भी तिलक लगाकर ही युद्ध में जाते थे ! आज भी हमारे सैनिक जब युद्ध में जाते हैं तो उन्हें तिलक लगा कर उनकी सफलता की कामना की जाती है ! जब भी कोई मेहमान घर से प्रस्थान करता है तो उनकी यात्रा मंगलमय हो ऐसी कामना के साथ उन्हें तिलक लगाकर विदा किया जाता है !स्त्रियां में अक्सर अपने माथे पर लाल कुंकुम का तिलक लगाने की प्रथा है और इसके पीछे भी एक कारण है ! दरअसल लाल रंग ऊर्जा और स्फूर्ति का प्रतीक माना गया है और तिलक लगाने से स्त्रियों का सौंदर्य बढ़ता है ! इसके आलावा तिलक को देवी की आराधना से भी जोड़ा गया है और इसे देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है !

हमारे शरीर में 7 सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं इन्हीं में से एक है आज्ञाचक्र जो माथे के बीच में होता है जहां तिलक लगाया जाता है ! इस आज्ञाचक्र से शरीर की प्रमुख तीन नाडि़यां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं इसी कारण इसे त्रिवेणी या संगम भी बोला जाता है ! आज्ञाचक्र को शरीर का सबसे पूजनीय स्थान माना गया है और इसे गुरु स्थान बोला जाता है क्योंकि यहीं से पूरे शरीर का संचालन होता है और यही हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी होता है !ध्यान लगाते समय भी इसी स्थान पर मन को एकाग्र किया जाता है !

साधारणतः तिलक लगाने के लिए चन्दन का इस्तेमाल किया जाता है और चन्दन लगाने से मस्तिष्क में शांति और तरावट बनी रहती है साथ ही चन्दन से मस्तिष्क ठंडा रहता है ! जब भी दिमाग पर जोर पड़ता है तो हमे सिर दर्द की शिकायत होती है लेकिन चन्दन का तिलक लगाने से हमारे मस्तिष्क को ठंडक मिलती है और सिरदर्द की समस्या से निजात मिलती है ! इसी कारण कहा जाता है जो लोग सुबह उठकर नहाने के बाद सिर पर चन्दन का तिलक लगाते हैं उन्हें सिरदर्द जैसी समस्या नहीं होती ! इसके आलावा तिलक के साथ साथ चावल भी लगाए जाते हैं और चावल लगाने के पीछे ऐसी धार्मिक मान्यता है की चावल लगाकर लक्ष्मी को आकर्षित किया जाता है !
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यह हैं सूर्य को जल चढाने का वैज्ञानिक कारण—

आखिर सूर्य को जल चढाने का वैज्ञानिक कारण क्या है ??

सूर्य की किरणे जब हमारे शरीर पर पड़ती हैं तो वो कई हानिकारत तत्वों को नष्ट कर देती है साथ ही हमारी नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करती है ! इन सब कारणों से कहा जाता है की अपनी दिनचर्या में रोज सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए जो ना सिर्फ हमारे शरीर के लिए लाभकारी है बल्कि ज्योतिष की दृष्टि से भी सूर्य की कृपा बनी रहती है जिससे जीवन में सुख शांति का वास होता है !वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाये तो सूर्य एक तारा है जो एक आग का गोला है ! सूर्य के प्रकाश से ही धरती पर हमारे दिन की शुरुआत होती है और सूर्य ना सिर्फ मनुष्य के लिए बल्कि जीव जंतुओं और पेड़ पौधों के जीवित रहने के लिए भी आवश्यक है ! सूर्य हमारी पृथ्वी से करीब 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर है और इसका प्रकाश धरती पर करीब 8 मिनट और 19 सेकण्ड में पहुँचता है !सूर्य धरती पर सभी के लिए ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है अगर सूर्य की ऊर्जा ना मिले तो पेड़ पौधे अपने भोजन का निर्माण नहीं कर पाएंगे ! सूर्य को जल चढ़ाना हमारे शरीर पर सीधा असर डालता है, सुबह उगते सूर्य को जल चढाने से हमारे स्वास्थ्य पर बहुत लाभकारी प्रभाव पड़ता है ! जब सुबह सुबह की हवा और उगते सूर्य की किरणे हमारी त्वचा पर पड़ती हैं तो हमारी स्किन दमक उठती है और हमारे चेहरे पर तेज दिखाई देता है !

सनातन वैदिक हिन्दू धर्म में वेद, पुराण, और ग्रंथों का बहुत महत्त्व है और ये ग्रंथ हमारा सही मार्गप्रदर्शन करते हैं ! इन ग्रंथों का निर्माण इसीलिए किया गया है ताकि हमें अपने कर्तव्यों का ज्ञान रहे और हम सही मार्ग पर चलें ! हमारे शास्त्रों में लिखा गया है की रोजाना प्रातः काल सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए इससे हमारे शरीर के साथ-साथ हमारे मन को भी शांति मिलती है ! कहा जाता है की सूर्य सभी ग्रहों का स्वामी होता है और अगर हम सूर्य को नियमित रूप से जल चढ़ाते हैं और प्रसन्न रखते हैं तो हम पर सूर्य की कृपा बनी रहती है और जीवन में सुख शांति का वास होता है ! इसके अलावा ये भी कहा गया है की सूर्य को जल चढाने से हमारा शरीर भी कई रोगों से मुक्त होता है !

हम सभी हमारे शास्त्रों का अनुसरण करते हुए सूर्य को जब जल चढ़ाया जाता है तो पानी की धार के बीचे में से जो सूर्य की किरणे आती हैं उनसे हमारे आँखों की रौशनी तेज होती है ! साथ ही पानी के बीच से होकर आने वाली सूर्य की किरणों से जो रंग निकलते हैं वो भी हमारे शरीर के लिए बेहद लाभकारी होते हैं ! इसके अलावा सूर्य की रौशनी से हमारे शरीर को विटामिन डी मिलता है जिससे हमारी हड्डियां मजबूत होती हैं !

“नागचंद्रेश्वर” मंदिर

आइये जाने उज्जैन स्थित “नागचंद्रेश्वर” मंदिर के बारे में —

प्रिय पाठकों/मित्रों, सनातन धर्म में नागपंचमी को नाग की पूजा का विशेष महत्व है, और यही कारण है कि इस दिन नाग मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।

मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट (दरवाजे) वर्ष मेंं एक बार 24 घंटे के लिए नागपंचमी पर खुलते हैं।

इस बार पट 27 जुलाई 2017 (गुरुवार) को आधी रात यानी 12 बजे खुलें।
नागचंदे्रश्वर का मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के सबसे ऊपरी तल पर स्थित है।

इस मंदिर में 11वीं शताब्दी की प्रतिमा स्थापित है। एक प्रतिमा में नाग के फन पर शंकर पार्वती विराजमान हैं और इस प्रतिमा के दर्शन के बाद ही नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन होते हैं।

मान्यता है कि नागपंचमी के मौके पर इस मंदिर के दर्शन से कई समस्याओं से मुक्ति मिलती है, क्योंकि खुद नागदेवता इस दिन मंदिर में आते हैं।

प्रिय पाठकों/मित्रों, हमारे देश भारत में सर्प पूजा/नागों की पूजा करने की परंपरा हिंदू धर्म में सदियों से चली आ रही है।

इन्हें भगवान का आभूषण माना गया है। यूं तो भारत में नागों के कई मंदिर हैं, लेकिन इनमें से एक उज्जैन के नागचंद्रेश्वर की कहानी अद्भुत है।

उज्जैन में महाकाल मंदिर परिसर के तीसरी मंजिल पर स्तिथ इस मंद्दिर कि खासियत यह है कि ये मंदिर साल में बस एक दिन और वो भी नागपंचमी 27 जुलाई 2017(गुरुवार की अर्ध रात्रि) (श्रावण शुक्ल पंचमी) को ही खुलता है।

उसी दिन इस मंदिर में भक्तों को नागदेवता के दर्शन हो पाते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस दिन नागराज खुद मंदिर में मौजूद रहते हैं।

उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का मंदिर, जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है।इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है जो कि इस वर्ष 28 जुलाई 2017, शुक्रवार को है। नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं।

कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। माना जाता है कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं।

मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और माँ पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

इसके बाद सिं‍धिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। कहा जाता है इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।

सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए …

।।जय बाबा महाकाल।।
।।शुभम भवतु।।
।।कल्याण हो।।
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जानिए सावन महीना क्यों हैं विशेष महिलाओं के लिए..??

जानिए सावन महीना क्यों हैं विशेष महिलाओं के लिए..??
क्या रखें सावधानी और क्या करें तैयारी..??

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि सावन का महीना शुरू हो गया है और इस महीने में शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस महीने में भगवान शंकर की पूजा करने और उनके लिए व्रत रखने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।लेकिन शिव पूजन में चौंकाने वाली बात यह है कि विवाहित हों या अविवाहित, महिलाओं के लिए शिवलिंग छूना पूरी तरह वर्जित है।

इस सावन में भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजन, बिल्वार्चन, अक्षतार्चन, रुद्राभिषेक व महामृत्युंजय अनुष्ठान सामथ्र्य अनुसार करने से भगवान आशुतोष प्रसन्न हो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का आशीर्वाद देते हैं। इस मास में दूध, घी, धेनु, स्वर्ण दान करने से हर के साथ हरि भी प्रसन्न होते हैं। सावन में भगवान शिव के निमित्त मास पर्यंत नित्य बिल्व पत्रार्पण, नैमेत्तिक पार्थी वार्चन का विधान है।

सावन के महीने में भगवान शंकर की पूजा करने और उनके लिए व्रत रखने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। लेकिन शिव पूजन में चौंकाने वाली बात यह है कि विवाहित हों या अविवाहित, महिलाओं के लिए शिवलिंग छूना पूरी तरह वर्जित है।

इस वर्ष 10 जुलाई 2017 (सोमवार) से सावन का महीना शुरू हो चूका है और महीने की शुरूआत के दिन सोमवार और सावन माह की समाप्ति का दिन भी सोमवार ही है। इस वर्ष कई सालों बाद ऐसा संयोग बन रहा है जब सावन माह सोमवार से शुरू होकर सोमवार को ही खत्म होगा। ज्योतिष विधा के मुताबिक ऐसा संयोग सालों में एक बार बनता है। इस संयोग में भक्तों को भगवान शिवजी की आराधना करने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है। सावन के पहले दिन ही शहर के सभी शिव मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक करने भक्तों की भारी भीड़ दिखाई देगी। वहीं आखिरी सोमवार को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाएगा। अमूमन सावन माह में 4 सोमवार पड़ते हैं लेकिन इस बार पांच सोमवार का पड़ना भी शुभ संकेत माना जा रहा है।

ज्योतिष विशेषज्ञों की माने तो शिवलिंग की पूजा से जुड़ी एक मान्यता यह है कि महिलाओं को खासतौर से कुंवारी कन्याओं को शिवलिंग को हाथ नहीं लगाना चाहिए। महिलाओं को शिवलिंग के करीब जाने की आज्ञा नहीं होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि भगवान शिव बेहद गंभीर तपस्या में लीन रहते हैं। देवों के देव महादेव की तंद्रा भंग न हो जाए इसलिए महिलाओं को शिवलिंग की पूजा न करने के लिए कहा गया है। जब शिव की तंद्रा भंग होती है तो वे क्रोधित हो जाते हैं।

इसके अलावा महिलाओं का शिवलिंग को छूकर पूजा करना मां पार्वती को भी पसंद नहीं है। मां पार्वती इससे नाराज हो सकती हैं और पूजा करने वाली महिलाओं पर इस तरह की गई पूजा का विपरीत असर हो सकता है। ऐसी मान्यता भी है कि लिंगम एक साथ योनि जो देवी शक्ति का प्रतीक है एवं महिला की रचनात्मक ऊर्जा है का प्रतिनिधित्व करता है।
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सावन/श्रवण माह में स्त्रियां/महिलाएं/कन्यायें रखें विशेष सावधानी, शिव पूजन में—

सावन का महीना हो और महिलाओं की बात न हो यह अटपटा लगता है। सावन में महिलाएं विशेष तौर पर साज-श्रंगार करती हैं।सावन में सुहागिन महिलाएं साज-श्रृंगार में कोई कसर नहीं छोड़ती हैं। सावन महीना शुरू होते ही सुहागिन महिलाओं पर सावन का रंग चढ़ना शुरू हो गया है। सावन महीने में महिलाओं के लिए हरे रंग का विशेष महत्व होता है। लिहाजा सावन महोत्सव के जरिये महिलायें हरे रंग का परिधान और श्रंगार करना शुभ मानती हैं। सावन का महीना आते ही चूड़ियों की बिक्री बढ़ जाती है। खासतौर पर हरे रंग की चूड़ियों की मांग सबसे ज्यादा रहती है। मेहंदी हार्मोन को तो प्रभावित करती ही है साथ की रक्त संचार (ब्लड प्रेशर) को भी नियंत्रण रखती है। मेहंदी दिमाग को शांत और तेज भी बनाता है।सावन के महीने में हरे रंग का वस्त्र धारण करने से सौभाग्य में वृद्घि होती है और पति-पत्नी के बीच स्नेह बढ़ता है।हरा रंग उर्वरा का प्रतीक माना जाता है। सावन के महीने में प्रकृति में हुए बदलाव से हार्मोन्स में भी बदलाव होते हैं जिसका प्रभाव शरीर और मन पर पड़ता जो स्त्री पुरुषों में काम भावना को बढ़ाता है।

सावन का महीना प्रकृति के सौन्दर्य का महीना होता है। शास्त्रों में महिलाओं को भी प्रकृति का रूप माना गया है। इस मौसम में बारसात की बूंदों प्रकृति खिल उठती है हर तरफ हरियाली छा जाती है। ऐसे में प्रकृति से एकाकार होने के लिए महिलाएं भी मेंहदी लगाती हैं। हरे वस्त्र और हरी चूड़ियां पहनती हैं। प्रचलित मान्यता हैं की जिसकी मेहंदी जितनी रंग लाती है, उसको उतना ही अपने पति और ससुराल का प्रेम मिलता है।

हरा रंग बुध से प्रभावित होता है। बुध एक नपुंसक ग्रह है। इसलिए बुध से प्रभावित होने के कारण हरा रंग काम भावना को नियंत्रित करने का काम करता है। सावन में मेंहदी लगाने का वैज्ञानिक कारण भी यही माना जाता है।
सावन के महीने में कई प्रकार की बीमारियां फैलने लगती हैं। आयुर्वेद में हरा रंग कई रोगों में कारगर माना गया है। यही कारण है कि सावन में महीलाएं स्वास्थ्य की रक्षा के लिए मेंहदी लगाती हैं और हरे रंग के वस्त्र और चूड़ियां पहनती हैं। मेहंदी की सोंधी खुशबू से लड़की का घर-आंगन तो महकता ही है, लड़की की सुंदरता में भी चार चांद लग जाते है। इसलिए कहा भी जाता है कि मेहंदी के बिना दुल्हन अधूरी होती है। आखिर मेहंदी सजने की वस्तु है तो महिलायें सावन में इससे अलग नहीं रह पातीं। आखिर सजना जो है सजना के लिए।

सावन के महीने में महिलाएं और कुंवारी कन्याएं भी भगवान शिवजी की पूजा करती हैं। लेकिन शिवजी की पूजा में महिलाओं और कन्याओं को कुछ सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। कहा जाता है कि भगवान शिवजी की पूजा करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अगर शिवजी की पूजा ठीक तरीके से नहीं की जाती है तो भगवान शिवजी गुस्सा हो जाते हैं।

इस वर्ष 2017 के श्रावण महीने में गौरी-शंकर की पूजा करने की परंपरा है। हर सोमवार को सोमवारी व्रत अलावा नागपंचमी, मंगलागौरी व्रत तथा रक्षाबंधन भी है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस वर्ष 10 अगस्त 2017 (गुरूवार )को कजली तीज का पर्व मनाया जायेगा । नए वर-वधू भी अपने सुखी वैवाहिक जीवन के लिए शिव-पार्वती की पूजा करते हैं।

सावन में भगवान शिवजी को खुश करने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं। यदि किसी को विवाह में कुछ परेशानी आ रही है तो सावन के महीने में रोज शिवलिंग पर दूध में केजर मिलाकर चढ़ाएं। ज्योतिषियों के मुताबिक ऐसा करने से विवाह के योग जल्दी बनते हैं। सावन के महीने में बैल का हरा चारा खिलाना भी अच्छा माना जाता है। कहा जाता है कि इस महीने में बैल को खाना खिलाने से घर में सुख-समृद्धि आती है और मन शांत रहता है।

सावन के महीने में घर में शिवलिंग की स्थापना करके उसकी पूजा की जाती है और भगवान शिवजी के मंत्रों का 108 बार जाप करें। कहा जाता है कि ऐसा करने से भगवान शिवजी खुश होते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की सावन के महीने में हर सोमवार पानी में दूध और काले तिल डालकर शिवलिंग का अभिषेक करने से कई तरह की बीमारियां दूर होती हैं। सावन के महीने में हर सोमवार को किसी नदी और तालाब में आटे की रोटियों को मछलियों को खिलाने को भी शुभ माना जाता है।
सावन के महीने में व्रत रखने से कन्याओं को अच्छा पति मिलता है। लेकिन शिवलिंग की पूजा करते समय कन्याओं को शिवलिंग को न छूने की सलाह दी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महिलाओं को शिवलिंग छूने की इजाजत नहीं होती। कहा जाता है कि शिवजी तपस्या में लीन रहते हैं और किसी महिला के शिवलिंग को छूने से उनकी तपस्या भंग हो जाती है। यही कारण है कि महिलाओं को शिवलिंग छूने से मना किया जाता है।

सावन के इस पावन और पवित्र माह में सुहागन स्त्रियों के लिए कई त्योहार आते हैं जिनमें कज्जली तीज, हरियाली तीज शामिल हैं। इन त्योहारों में हरे वस्त्र, हरी चूड़ियां और मेंहदी लगाने के नियम हैं। श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन श्रावणी तीज, हरियाली तीज मनायी जाती है इसे मधुस्रवा तृतीय या छोटी तीज भी कहा जाता है| यह त्यौहार खासतौर पर महिलाओं का त्यौहार है| तीज का आगमन वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही आरंभ हो जाता है| हरियाली तीज में महिलाएं व्रत रखती हैं इस व्रत को अविवाहित कन्याएं योग्य वर को पाने के लिए करती हैं तथा विवाहित महिलाएं अपने सुखी दांपत्य की चाहत के लिए करती हैं| ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की सावन के महीने में हरे रंग का वस्त्र धारण करने से सौभाग्य में वृद्घि होती है और पति-पत्नी के बीच स्नेह बढ़ता है।हरा रंग उर्वरा का प्रतीक माना जाता है। सावन के महीने में प्रकृति में हुए बदलाव से हार्मोन्स में भी बदलाव होते हैं जिसका प्रभाव शरीर और मन पर पड़ता जो स्त्री पुरुषों में काम भावना को बढ़ाता है।

भगवान शिव और पार्वती के पुर्नमिलाप के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले इस त्योहार के बारे में मान्यता है कि मां पार्वती ने 107 जन्म लिए थे भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए। अंततः मां पार्वती के कठोर तप और उनके 108वें जन्म में भगवान ने पार्वती जी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से मां पार्वती प्रसन्न होकर पतियों को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती हैं।

अपने सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिये स्त्रियां यह व्रत किया करती हैं| इस दिन व्रत रखकर भगवान शंकर-पार्वती की बालू से मूर्ति बनाकर षोडशोपचार पूजन किया जाता है जो रात्रि भर चलता है| सुंदर वस्त्र धारण किये जाते है तथा कदली स्तम्भों से घर को सजाया जाता है| इसके बाद मंगल गीतों से रात्रि जागरण किया जाता है| इस व्रत को करने वालि स्त्रियों को पार्वती के समान सुख प्राप्त होता है|

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जानिये सावन के महीने में शिवलिंग पर दूछ चढ़ाने का महत्व—-

सावन का महीना शुरू हो गया है। पूरे सावन के महीने में भगवान शिव जी का अभिषेक किया जाता है। सावन के महीने में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का विशेष महत्व है लेकिन क्या आप जानते है कि लोग सावन के महीने में शिलविंग पर दूध क्यों चढ़ाते हैं।

हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग में दूध चढ़ाने से पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। घर में सुख शान्ति और वैभव आता है। भगवान शिव तारक ब्रम्ह है जो सभी का कल्याण करने वाले है इसलिए शिवलिंग पर दूध से अभिषेक किया जाता है। विज्ञान की मानें तो बारिश के समय जानवर हरी घास पत्ते खाते है जिसमे बहुतायत में जीवाणुओं की मात्रा पाई जाती है। इसलिए बारिश के समय दूध प्रदूषित हो जाता है इसलिए इस ऋतु में दूध का प्रयोग वर्जित माना गया है। ऐसा माना जाता है कि हमारी मान्यताएं विज्ञान को समझ कर ही बनाई गईं थीं।

जानिए की केसे करें शाबर मंत्र से रोगों का उपचार..???

जानिए की केसे करें शाबर मंत्र से रोगों का उपचार..???

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर, माँ पार्वती के साथ लोक-भ्रमण के लिए निकले. भ्रमण करते हुए दोनों एक घोर भयानक निर्जन प्रदेश में आए. वहां देखा कि एक साधक गुफा में मंत्र-साधना में लीन है और एक मंत्र का निरंतर जाप कर रहा है. उसका मंत्र जाप सुनकर भगवान शंकर चैंक गए और करूणा भरी दृष्टि से पार्वती की ओर देखकर बोले-‘सती , यह अशुद्ध उच्चरण कर रहा है. इसका अच्छा फल तो मिलेगा नहीं उल्टे मृत्यु को प्राप्त करेगा.‘

पार्वतीजी बोली-‘भगवान, इसके जन्मदाता तो आप ही हैं. अपने मंत्र को इतना क्लिष्ट क्यों बना दिया. अगर यह मर गया, तो इसका दोष आपको ही लगेगा.‘ भगवान शंकर पार्वती का यह तर्क सुनकर मौन हो गए. कुछ क्षण बाद बोले-‘ तुम ठीक कहती हो पार्वती. इनका सरल रूप भी होना चाहिए. अच्छा, मैं उपाय करता हूं. ‘ वह अधेड़ साधु का वेश धरकर उसके पास गए, उसे अशुद्ध जाप करने से रोका और सरल मंत्र बतलाया. इस प्रकार उन्होंने अपना संपूर्ण मंत्र सरलीकरण करके उसको दे दिया.

बाद में वह साधक ‘ सिद्ध या नाथ ‘ कहलाया. ‘ नाथ ‘ संप्रादय का वह पहला नाथ था तब से इस परंपरा में चैरासी पीढ़ी के चैरासी नाथों का विवरण मिलता है और इनके द्वारा अपनाया गया सरल मंत्रीकरण ‘ शाबर मंत्र ‘ कहलाया.
——-भाषा का प्रयोगः-
क्लिष्ट संस्कृत के स्थान पर साधारण बोलचाल की भाषा में मंत्र बना दिए गए, जिनका जाप कर साधक सिद्धि प्राप्त कर सकता है. पर समय के साथ-साथ इसमें भी भारी परिर्वतन आ गया है. भाषा और शब्द प्रयोग समय के साथ बदलते रहे हैं. खड़ी बोली को आंचलिक भाषा से निकलने में सैकड़ों साल का समय लग गया, तब यह खड़ी बोली बनी. इस प्रकार संस्कृत से हिन्दी या अन्य प्रादेशिक भाषाएं बनने-संवरने में सैकड़ों वर्ष लग गए अतएव इसी प्रकार ‘ शाबर मंत्र ‘ बदलते गए और कुछ अशिक्षित संप्रदाय के हाथ में पड़ कर और भी अपभ्रश रूप में आ गए. कुछ का तो प्रभाव ही जाता रहा. वास्तव में मंत्र ध्वनि विज्ञान पर निर्मित हैं. ध्वनि का अपना विशेष प्रभाव होता है और ध्वनि नष्ट नहीं होती. ध्वनि को सदा के लिए कैद करके रखा जा सकता है. ध्वनि को हजारों मील दूर से बजाए जाने पर पुनः उच्चारित होने के लिए पकड़ा जाता है. कहीं भी ध्वनि भले ही वह आपके खंासने या कराहने की हो, निकल गई तो निकल गई, बन गई तो बनी ही रहती है. आश्चर्य की बात है न. तब तो संसार में ये अरबों मनुष्य हैं और अरबों वर्षो से जो ध्वनियां ची आ रही हैं, क्या वह सब जीवित हैं! जी हां जीवित हैं. वैज्ञानिक इस बात को मानते हैं. शाबर मंत्र में सरलीकरण किया गया. पर समय के साथ-साथ अवैज्ञानिक ढंग से शब्दों में हेर-फेर होता गया और इसी कारण उनका प्रभाव नष्ट होता गया. फलतः‘ शाबर मंत्र ‘ एक ढकोसला बन गया. शाबर के साथ यह भी रहा है और आज भी है कि यह प्रायः अनपढ़ लोगों द्वारा ओझा, गुनिया, भगत आदि द्वारा ही अपनाया गया. खासतौर से झाड़-फंूक के ‘समय इनका उच्चारण करने की प्रथा परंपरा से चली आ रही है. लोहे का खुला चाकू, मोर पंखों का गुच्छा लेकर नजर, बुखार, भूत-प्रेत, दांत दर्द आदि में प्रयोग किया जाता रहा है. झाड़-फूंक में ही इनको अधिकतर काम में लाया गया. तांत्रिक लोग इन मंत्रों का प्रयोग नहीं करते थे.
—— मंत्रों का शुद्ध रूपः-तंत्र में संस्कृत मंत्र आदि क्लिष्ट हैं तो शाबर मंत्रों का शुद्ध रूप लुप्त है. वह उपरोक्त कारणें से इतने विकृत असंगत हो गए है कि केवल खिलवाड़ बन कर रह गए हैं. उनकी इस विधा से अपरिचित प्रकाशनों द्वारा शाबर मंत्रों पर अनाप-शनाप प्रकाशन धड़ल्ले से चालू हैं. इन्द्र जाल, वृहद इंद्रजाल, शाबर मंत्र जैसे नाम देकर शाबर मंत्र विधा का और सत्यानाश कर दिया गया है. ध्वनि विज्ञान से सर्वदा परे, इससे बिल्कुल मेल न खाने वाला खिलवाड़ बना दिया गया है. यही सब तंत्र विधा के प्रति और उपेक्षा का कारण बन गया है. तंत्र-मंत्र-यंत्र से लेकर हस्तरेखा तक, शाबर मंत्र से लेकर ज्योतिष तक, सेक्स से लेकर टोटकों तक सब लिखा है. जिसे सरलीकरण के पवित्र उदेश्य से मंत्र का सरलीकरण, शाबर मंत्रों का अपना उपयोग, अपना महत्व है पर आज वह लुप्त है और व्यर्थ हो गया है. वास्तव में इसमें इतना कूड़ा आ गया है कि मोतियों को खोज निकालना मुश्किल है. इसकी परंपरा भ्रष्ट हो गई है.यह विधा काफी सीमा तक महत्वहीन हो गई है. शाबर विज्ञान,ध्वनि विज्ञान की दृष्टि से शाबर मंत्रों का संयोजन ही बिगड़ गया है. केवल अनपढ़, गुनिया, ओझा, भगत ही इसका उपयोग कर रहें हैं जो अधिकतर असफल रहता है, शब्द ध्वनि विज्ञान है और जब तक उसका संयोजन इसी आधार पर नहीं होगा, मंत्र रूप में वह कभी भी प्रभावकारी नहीं रहेंगे. शाबर मंत्रों की अपनी उपयोगिता है, हो सकता है कि कुछ शाबर मंत्र प्रभावशाली हों, इसका निर्णय कौन करें?. परीक्षण में शायद सदियां लग जाएं.

जानिए कैसे करें रुद्राभिषेक …???

रुद्राभिषेक अर्थात रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना । जैसा की वेदों में वर्णित है शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है। क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है । रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं । रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है।

रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पटक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि- सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।
वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रियोदशी तिथि,प्रदोष काल और सोमवार को इसको करना परम कल्याण कारी है | श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व् शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है |
वेदों और पुराणों में रुद्राभिषेक के बारे में तो बताया गया है कि रावण ने अपने दसों सिरों को काट कर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था। जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया।
भष्मासुर ने शिव लिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओ से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया।

रुद्राभिषेक करने की तिथियांकृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।

कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।
किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथिमें रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।
कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार मेंआनंद-मंगल होता है।
कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।
अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।

वैसे तो रुद्राभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है। परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग।-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है।
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वैदिक शिव पूजन :-

भगवान शंकर की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमन करें। यज्ञोपवित धारण कर शरीर शुद्ध करें। तत्पश्चात आसन की शुद्धि करें। पूजन-सामग्री को यथास्थान रखकर रक्षादीप प्रज्ज्वलित कर लें।
अब स्वस्ति-पाठ करें।
स्वस्ति-पाठ :-
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:, स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदा:, स्वस्ति न स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु।
इसके बाद पूजन का संकल्प कर भगवान गणेश एवं गौरी-माता पार्वती का स्मरण कर पूजन करना चाहिए।
यदि आप रूद्राभिषेक, लघुरूद्र, महारूद्र आदि विशेष अनुष्ठान कर रहे हैं, तब नवग्रह, कलश, षोडश-मात्रका का भी पूजन करना चाहिए।संकल्प करते हुए भगवान गणेश व माता पार्वती का पूजन करें फिर नन्दीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय (स्त्रियां कार्तिकेय का पूजन नहीं करें) एवं सर्प का संक्षिप्त पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात हाथ में बिल्वपत्र एवं अक्षत लेकर भगवान शिव का ध्यान करें।भगवान शिव का ध्यान करने के बाद आसन, आचमन, स्नान, दही-स्नान, घी-स्नान, शहद-स्नान व शक्कर-स्नान कराएं।इसके बाद भगवान का एक साथ पंचामृत स्नान कराएं। फिर सुगंध-स्नान कराएं फिर शुद्ध स्नान कराएं।अब भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाएं। वस्त्र के बाद जनेऊ चढाएं। फिर सुगंध, इत्र, अक्षत, पुष्पमाला, बिल्वपत्र चढाएं।अब भगवान शिव को विविध प्रकार के फल चढ़ाएं। इसके पश्चात धूप-दीप !!
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आइये रुद्राभिषेक से जुड़े कुछ अहम बातो को जाने—

रुद्राभिषेक क्या है ?

अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है – स्नान (Bath) करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है। वर्तमान समय में अभिषेक Rudrabhishek के रुप में ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है Rudrabhishek करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है।

रुद्राभिषेक क्यों किया जाता हैं?

रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं।

रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ ?
प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जबअपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ।

एक अन्य कथा के अनुसार ––

एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय माता पार्वती ने मर्त्यलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगो को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासा कि की हे नाथ मर्त्यलोक में इस इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है? तथा इसका फल क्या है? भगवान शिव ने कहा – हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह आशुतोषस्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ। जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना या कराना चाहिए।

रुद्राभिषेक की पूर्ण विधि —
इसमें में रुद्राष्टाध्यायी के एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ किया जाता है। इसे ही लघु रुद्र कहा जाता है। यह पंच्यामृत से की जाने वाली पूजा है। इस पूजा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रभावशाली मंत्रो और शास्त्रोक्त विधि से विद्वान ब्राह्मण द्वारा पूजा को संपन्न करवाया जाता है। इस पूजा से जीवन में आने वाले संकटो एवं नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा मिलता है।

रुद्राभिषेक से लाभ—-
शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा।
रुद्राभिषेक अनेक पदार्थों से किया जाता है और हर पदार्थ से किया गया रुद्राभिषेक अलग फल देने में सक्षम है जो की इस प्रकार से हैं ।

रुद्राभिषेक कैसे करे —
1) जल से अभिषेक

– हर तरह के दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के बाल स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘शुद्ध जल’ भर कर पात्र पर कुमकुम का तिलक करें
– ॐ इन्द्राय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर जल की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करेत हुए ॐ तं त्रिलोकीनाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग को वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें

2) दूध से अभिषेक

– शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए दूध से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘प्रकाशमय’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘दूध’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ श्री कामधेनवे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर दूध की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
– अभिषेक करते हुए ॐ सकल लोकैक गुरुर्वै नम: मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें

3) फलों का रस

– अखंड धन लाभ व हर तरह के कर्ज से मुक्ति के लिए भगवान शिव का फलों के रस से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘नील कंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘गन्ने का रस’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ कुबेराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर फलों का रस की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रुं नीलकंठाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें

4) सरसों के तेल से अभिषेक

– ग्रहबाधा नाश हेतु भगवान शिव का सरसों के तेल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘प्रलयंकर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘सरसों का तेल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ भं भैरवाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर सरसों के तेल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
– अभिषेक करते हुए ॐ नाथ नाथाय नाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें

5) चने की दाल

– किसी भी शुभ कार्य के आरंभ होने व कार्य में उन्नति के लिए भगवान शिव का चने की दाल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘समाधी स्थित’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘चने की दाल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ यक्षनाथाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर चने की दाल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करेत हुए -ॐ शं शम्भवाय नम: मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें

6) काले तिल से अभिषेक

– तंत्र बाधा नाश हेतु व बुरी नजर से बचाव के लिए काले तिल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘नीलवर्ण’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘काले तिल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ हुं कालेश्वराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर काले तिल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करते हुए -ॐ क्षौं ह्रौं हुं शिवाय नम: का जाप करें
– शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें

7) शहद मिश्रित गंगा जल

– संतान प्राप्ति व पारिवारिक सुख-शांति हेतु शहद मिश्रित गंगा जल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘चंद्रमौलेश्वर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ” शहद मिश्रित गंगा जल” भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ चन्द्रमसे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर शहद मिश्रित गंगा जल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करते हुए -ॐ वं चन्द्रमौलेश्वराय स्वाहा’ का जाप करें
– शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें

8) घी व शहद

– रोगों के नाश व लम्बी आयु के लिए घी व शहद से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘त्रयम्बक’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘घी व शहद’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ धन्वन्तरयै नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर घी व शहद की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
– अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रौं जूं स: त्रयम्बकाय स्वाहा” का जाप करें
– शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें

9 ) कुमकुम केसर हल्दी

– आकर्षक व्यक्तित्व का प्राप्ति हेतु भगवान शिव का कुमकुम केसर हल्दी से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘नीलकंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘कुमकुम केसर हल्दी और पंचामृत’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें – ‘ॐ उमायै नम:’ का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– पंचाक्षरी मंत्र पढ़ते हुए पात्र में फूलों की कुछ पंखुडियां दाल दें-‘ॐ नम: शिवाय’
– फिर शिवलिंग पर पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
– अभिषेक का मंत्र-ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रौं नीलकंठाय स्वाहा’
– शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें..

ज्योर्तिलिंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है। वस्तुत: शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं। अतः हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं। स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते है। संसार में ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नही है जो हमें रुद्राभिषेक करने या करवाने से प्राप्त नहीं हो ।

हर हर महादेव…हर हर महादेव….हर हर महादेव….
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रुद्राभिषेक पूजा (रुद्राष्टाध्यायी)——————

नमस्ते अस्तु भगवन विश्वेश्वराय महादेवाय त्रयम्बकाय त्रिपुरान्तकाय त्रिकालाग्निकालाय कालाग्नीरुद्राय नीलकंठाय मृत्युमजयाय सर्वेश्वराय सदाशिवाय श्रीमन महादेवाय नमः
|| सदा रक्षतु शंकरः || सदा रक्षतु शंकरः || सदा रक्षतु शंकरः ||

रुद्राभिषेक इस पूजा में शिवलिंग की विधिवत पूजा की जाती है. शिव परिवार सहित शिवलिंग पर धरा से (दुग्ध धरा, जल धरा, घृत धरा, गन्ने के रस की धरा, दुग्ध मिश्रित जल सहारा इत्यादि से ) लगातार धारा से अभिषेक करते हुए रूद्र पाठ किया जाता है |

रूद्र पाठ की प्रचलित विधियाँ:
१) शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी का पाठ( १ या ११ बार)
२) शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी का पंचम और अष्टम अध्याय का पाठ
३) कृष्णा यजुर्वेदीय पाठ का “नमक” पाठ ११ बार. हर पाठ के बाद “चमक” पाठ के एक श्लोक का पाठ (एकादश रूद्र पाठ )
४) शिव सहस्रनाम पाठ
५) रूद्र सुक्त का पाठ

रुद्राभिषेक विशेष मुहुरतों में तथा तीरथ स्थान में करवाने से अत्यधिक शुभ फल देने वाला होता है, इस पूजन से राहु, शनि की दशा, अशुभ गोचर, नाडी दोष, सर्प दोष, मंगल दोष, कलत्र दोष, विष दोष, केमद्रुम दोष, विशेष पूजन विधि की सामर्थ्य न हो तो केवल रोज़ नियम से मंदिर में जा कर शिवलिंग की जल धरा से अभिषेक करिए.
जल में नवग्रह शांति के लिए कच दूद, गंगा जल, काले तिल, ध्रुवा आदि दाल लेना अच्छा रहता है

रूद्राभिषेक पूजन के लिए वेदी: चर्तुलिंगतोभद्र, मण्डल, षोडस मात्रिका मण्डल, शिव परिवार, नवग्रह मण्डल, वास्तु मण्डल, क्षेत्रपाल मण्डल, पंचांग मण्डल आदि इन मण्डलों पर देवताओं का ध्यान, आवाहन, पूजन करके जप यज्ञ अभिषेक सम्पन्न कराया जाता है।

रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के ‘शिवसंकल्पमस्तु’ आदि मंत्रों से ‘गणेश’ का स्तवन किया गया है द्वितीय अध्याय पुरुषसूक्त में नारायण ‘विष्णु’ का स्तवन है तृतीय अध्याय में देवराज ‘इंद्र’ तथा चतुर्थ अध्याय में भगवान ‘सूर्य’ का स्तवन है। पंचम अध्याय स्वयं रूद्र रूप है तो छठे में सोम का स्तवन है इसी प्रकार सातवें अध्याय में ‘मरुत’ और आठवें अध्याय में ‘अग्नि’ का स्तवन किया गया है अन्य असंख्य देवी देवताओं के स्तवन भी इन्ही पाठमंत्रों में समाहित है। अतः रूद्र का अभिषेक करने से सभी देवों का भी अभिषेक करने का फल उसी क्षण मिल जाता है।

शिवार्चन व रुद्राभिषेक के लिए प्रत्येक माह की शुभ तिथियां इस प्रकार हैं- कृष्णपक्ष में 1, 4, 5, 6, 8, 11, 12, 13 व अमावस्या। शुक्लपक्ष में 2, 5, 6, 7, 9, 12, 13, 14 तिथियां शुभ हैं। शिव निवास का विचार सकाम अनुष्ठान में ही जरुरी है। निष्काम भाव से की जाने वाली अर्चना कभी भी हो सकती है। ज्योतिलिंग क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि, प्रदोष, सावन सोमवार आदि पर्वों में शिव वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक (जलाभिषेक) किया जा सकता है।

सुयोग्य ब्राह्मणों द्वारा रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करवाएं और उसका श्रवण करें।

रुद्री के एक पाठ से बाल ग्रहों की शांति होती है। तीन पाठ से उपद्रव की शांति होती है। पांच पाठ से ग्रहों की, सात से भय की, नौ से सभी प्रकार की शांति और वाजपेय यज्ञ फल की प्राप्ति और ग्यारह से राजा का वशीकरण होता है और विविध विभूतियों की प्राप्ति होती है। इस प्रकार ग्यारह पाठ करने से एक रुद्र का पाठ होता है। तीन रुद्र पाठ से कामना की सिद्धि और शत्रुओं का नाश, पांच से शत्रु और स्त्री का वशीकरण, सात से सुख की प्राप्ति, नौ से पुत्र, पौत्र, धन-धान्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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इसी प्रकार नौ रुद्रों से एक महारुद्र का फल प्राप्त होता है जिससे राजभय का नाश, शत्रु का उच्चाटन, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि, अकाल मृत्यु से रक्षा तथा आरोग्य, यश और श्री की प्राप्ति होती है। तीन महारुद्रों से असाध्य कार्य की सिद्धि, पांच महारुद्रों से राज्य कामना की सिद्धि, सात महारुद्रों से सप्तलोक की सिद्धि, नौ महारुद्रों के पाठ से पुनर्जन्म से निवृत्ति, ग्रह दोष की शांति, ज्वर, अतिसार तथा पित, वात व कफ जन्य रोगों से रक्षा, सभी प्रकार की सिद्धि तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है।

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भगवान शंकर का श्रेष्ठ द्रव्यों से अभिषेक करने का फल जल अर्पित करने से वर्षा की प्राप्ति, कुशा का जल अर्पित करने से शांति, दही से पशु प्राप्ति, ईख रस से लक्ष्मी की प्राप्ति, मधु और घी से धन की प्राप्ति, दुग्ध से पुत्र प्राप्ति, जल की धारा से शांति, एक हजार मंत्रों के सहित घी की धारा से वंश की वृद्धि और केवल दूध की धारा अर्पित करने से प्रमेह रोग से मुक्ति और मनोकामना की पूर्ति होती है, शक्कर मिले हुए दूध अर्पित करने से बुद्धि का निर्मल होता है, सरसों या तिल के तेल से शत्रु का नाश होता है और रोग से मुक्ति मिलती है। शहद अर्पित करने से यक्ष्मा रोग से रक्षा होती है तथा पाप का क्षय होता है। पुत्रार्थी को भगवान सदाशिव का अभिषेक शक्कर मिश्रित जल से करना चाहिए। उपर्युक्त द्रव्यों से अभिषेक करने से शिवजी अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। रुद्राभिषेक के बाद ग्यारह वर्तिकाएं प्रज्वलित कर आरती करनी चाहिए। इसी प्रकार भगवान शिव का भिन्न-भिन्न फूलों से पूजन करने से भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते हैं। कमलपत्र, बेलपत्र, शतपत्र और शंखपुष्प द्वारा पूजन करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। आक के पुष्प चढ़ाने से मान-सम्मान की वृद्धि होती है। जवा पुष्प से पूजन करने से शत्रु का नाश होता है। कनेर के फूल से पूजा करने से रोग से मुक्ति मिलती है तथा वस्त्र एवं संपति की प्राप्ति होती है। हर सिंगार के फूलों से पूजा करने से धन सम्पति बढ़ती है तथा भांग और धतूरे से ज्वर तथा विषभय से मुक्ति मिलती है। चंपा और केतकी के फूलों को छोड़कर शेष सभी फूलों से भगवान शिव की पूजा की जा सकती है। साबुत चावल चढ़ाने से धन बढ़ता है। गंगाजल अर्पित करने से मोक्ष प्राप्त होता है ।

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(1) रूपक या षडंग पाठ – रुद्राष्टाध्यायी में कुल दस अध्याय हैं किन्तु नाम अष्टाध्यायी ही क्योंकि इसके आठ अध्यायों में भगवन शिव की महिमा व कृपा शक्ति का वर्णन है ।
शेष दो अध्याय शांत्यधाय और स्वस्ति प्रार्थनाध्याय के नाम से जाना जाता है । रुद्राभिषेक करते हुए इन सम्पूर्ण 10 अध्यायों का पाठ रूपक या षडंग पाठ कहा जाता है ।
{प्रथम अंग शिव संकल्प सूक्त , द्वतीय अंग पुरुष सूक्त, तृतीय अंग उत्तर नारायण सूक्त , चतुर्थ अंग अप्रतिरथ इंद्र सूक्त , पंचम अंग सूर्य सूक्त , और रूद्र सूक्त सम्पूर्ण पांचवे अध्याय तक षष्ट अंग इस प्रकार षडंग पाठ बताया गया है ।}
(2) एकादशिनि रुद्री – षडंग पाठ में पांचवें और आठवें अध्याय के नमक चमक पाठ विधि यानि ग्यारह पुनरावृति पाठ को एकादशिनि रुद्री पाठ कहते हैं ।
(3) लघु रुद्र – एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ को लघु रूद्र कहते हैं ।
(4) महारुद्र – लघु रूद्र की ग्यारह आवृत्ति पाठ को महा रूद्र कहा जाता है ।
(5) अतिरुद्र – महारुद्र की ग्यारह आवृति पाठ अतिरुद्र कहा जाता ।

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रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों के साथ भोले शंकर का जलाभिषेक करें। रुद्र पाठ को लघुरुद्र, महारुद्र व अतिरुद्र के रुप में करने का विधान है। पंचम अध्याय के एकादश आवर्तन (11 बार) और शेष अध्यायों के एक आवर्तन के साथ अभिषेक करने से एक ‘रुद्र’ या ‘रुद्री’ होती है। इसे एकादशिनी भी कहते हैं। एकादश रुद्री का पाठ करने से लघुरुद्र होता है और एकादश लघुरुद्र करने से महारुद एवं एकादश (ग्यारह) महारुद्र से अतिरुद्र का अनुष्ठान होता है ।

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by – Dayanand Shastri

विशेष सुझाव/टॉप्स/उपाय.. उनके लिए जो पहनते हैं फटी हुई जींस

जानिए की आखिर क्यों अशुभ हैं फटी हुई जींस पहनना..??? जानिए फटे हुए कपड़ों के नुकसान …
 
प्रिय पाठकों/मित्रों, हम कैसे कपड़े पहनते हैं और उन्हें किस तरह से यूज करते हैं, इसका भी हमारी लाइफ में बहुत असर होता है।समय के साथ-साथ फैशन भी बदलता रहता है, कभी किसी चीज का फैशन आ जाता है तो कभी किसी चीज का। हम यहां कपड़ों के फैशन की बात कर रहे हैं जो हर मौसम, हर साल बदलता रहता है।ये बात ध्यान रखने योग्य है कि फटे-पुराने कपड़े पहनना हमारी संस्कृति के अनुसार नहीं है लेकिन इससे भी अधिक ऐसे कपड़े शुक्र ग्रह को भी प्रभावित करते हैं।
 
इन दिनों हम सभी यंगस्टर्स के बीच फटी हुई जींस पहनने का ट्रेंड देख रहे हैं। फेंगशुई में इसे बुरा माना जाता है और कहा जाता है कि इस तरह के कपड़े हमारे लिए बैड लक लेकर आते हैं। यही नहीं, इनफैक्ट कोई भी फटा हुआ या फेडेड कपड़ा कभी नहीं पहनना चाहिए फिर चाहे वह कितना भी फैशनेबल क्यों ना हो।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फटे हुए वस्त्र हमारी शारीरिक क्षमता एवं ऊर्जा को नष्ट कर देते हैं तथा तन-मन को शिथिल बनाकर अनेक बीमारियों को जन्म देने वाले होते हैं।यदि  ये वस्त्र कम या अधिक फटे हों तो इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए जबकि  फटे वस्त्रों को भी हम पहनने से परहेज नहीं करते  हैं। फटे हुए कपड़ों का शुक्र ग्रह पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने से दांपत्य जीवन की खुशियां तो बाधित होती ही हैं साथ ही आपके जीवन की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है।
 
‘ज्योतिष दिग्दर्शन’ के अनुसार : —
 
खंडित उपवस्त्रेण, नम: चव्चल जायते। 
रोग, शोक, अनिष्टाणां, तत् कारणं प्रगल्भ्यते।। 
 
अर्थात फटे हुए वस्त्र के प्रयोग से मन हमेशा चंचल बना रहता है। ये रोग, शोक एवं अनेक प्रकार के अनिष्टों को जन्म देने का कारण बनते हैं। 
 
इस तरह के कपड़े पहनकर आप अपने फ्रेंड्स के बीच भले ही अच्छे लगें लेकिन ये आपके गुड लक को बैड लक में बदल सकता है। इस तरह के कपड़े पहनना दरिद्रता को न्योता देता है। यह सिर्फ बाहर जाने को लेकर ही बुरा नहीं माना जाता बल्कि अगर घर पर हैं या घर से ही काम कर करते हैं तो भी आपको फटे और पुराने कपड़े नहीं पहनने चाहिए। आपका अपनी पत्नी/पति या फ्रेंड  के साथ मनमुटाव या अकारण लड़ाई का कारण भी वस्त्रों का फटा होना भी हो सकता है। अधिक दिनों तक फटे वस्त्रों को धारण करते रहने से अनेक प्रकार की मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों का शिकार होना पड़ सकता है।
 
इसीलिए ज्योतिष शास्त्र ऐसे वस्त्रों का त्याग देने की ही बात करता है। 
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुधवार, वीरवार एवं शुक्रवार को ही नवीन वस्त्र पहनने चाहिएं। शनिवार को पहनने से वस्त्र शीघ्र फटता है। 
रविवार को पहनने से वस्त्र के जलने का डर रहता है तथा सोमवार को नवीन वस्त्र पहनने से पहनने वाले की आयु क्षीण होती है।
 
इसके अलावा जब आप रोजाना सुबह उठें तो आपको सबसे पहले अपनी नाइट ड्रेस को उतारकर कुछ प्रॉपर और ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जो आंखो को अच्छा लगें। ऐसा करने से आप पॉजिटिव वाइब्रेशंस से भर जाएंगे और जब आप ऐसा रोजाना करने लगेंगे तो यह आपके लिए गुड लक भी लेकर आएगा।
 
अपने दिन की शुरुआत हमेशा एक अच्छी स्माइल और साफ-सुथरे कपड़ों के साथ करनी चाहिए। इतना ही नहीं कपड़ों को धोने के बाद उन्हें हमेशा धूप में सुखाना चाहिए, इससे उनमें वाइब्रेंट एनर्जी आती है।
 
धुले और सूखे हुए कपड़ों को कभी भी रात में बाहर नहीं छोडऩा चाहिए क्योंकि रात में एनर्जी निगेटिव हो जाती है, जो कपड़ों में भी आ जाती है और जब हम उन कपड़ों को पहनते हैं तो उसका असर हम पर भी होता है।
 
इन छोटी-छोटी बातों को ध्यान में राकर आप अपने और अपनी फैमिली के लिए एक हेल्दी और खुशनुमा माहौल बना सकते हैं।

गंगा दशहरा

गंगा दशहरा इस वर्ष 2017 में मनेगा सर्वार्थ और अमृत सिद्धि योग में —

प्रिय पाठकों/मित्रों, गंगा दशहरा हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है |ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को मां गंगा का स्वर्ग से धरती मॆ अवतरण हुआ था इस दिन को गंगा दशहरा कहा जाता है इस दिन गंगा या किसी भी नदी मॆ स्नान कर मां गंगा स्त्रोत का पाठ करने से दस तरह के दोषों का नाश होता है इस वर्ष गंगा दशहरा 4 जून 2017 को है | गंगा दशहरा 4 जून 2017 को सर्वार्थ सिद्धि व अमृत सिद्धि योग के साथ मनाया जाएगा। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार तीन जून को सुबह 6.52 बजे से दशमी लग जाएगी जो 4 जून को सुबह 8.02 मिनट तक रहेगी।

जब गंगाजी का धरती पर अवतरण हुआ था उस समय ये दस प्रकार के योग बने थे-
‘ज्येष्ठ मासे सिते पक्षे दशम्यां बुध हस्तयो: व्यतीपाते गरा नन्दे कन्या चन्द्रे वृषे रवौ।
हरते दश पापानि तस्माद्दशहरा स्मृता।।’

अर्थात् ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र, व्यतीपात योग, गर और आनन्द योग, कन्या राशि में चंद्रमा तथा वृष राशि में सूर्य – इन दस योगों से युक्त समय में अवतीर्ण हुई गंगा का स्नान दस पापों का हरण करता है।

जानिए गंगा दशहरा के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व क्यों हैं–
गंगाजी हिमालय से हस्त नक्षत्र, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को अवतरित हुई थी। इस दिन पवित्र तीर्थ पर गंगा में स्नान कर दस प्रकार की वस्तुओं का दान करना चाहिए। खरबूजा, सत्तू, शर्बत, फूल, दीपक, पान के पत्ते, इत्र, पंखा हाथ का, जौ और तिल का दान सोलह मुट्ठी का दान, जरूरतमंदों को भोजन कराना आदि।

माना जाता है की इसी दिन गायत्री मंत्र का प्रकटीकरण भी हुआ था। इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य मंदिरों पर भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।मान्‍यता है कि मां गंगा में डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैसे तो गंगा स्नान का अपना अलग ही महत्व है लेकिन गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्ति पा जाता है।स्कंदपुराण के अनुसार गंगा दशहरा के दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए। इससे वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। यह दिन सबसे पुण्यकारी व फलदायी है। मंदिरों में गंगा दशहरा पर पूजन के साथ ही भगवान शिव का अभिषेक कर प्रसाद का वितरण किया जाता है।

इस दिन गंगा में खड़े होकर जो गंगा स्तोत्र पढ़ता है वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। स्कंद पुराण में दशहरा नाम का गंगा स्तोत्र दिया हुआ है। इस दिन दान-पुण्य करने का अधिक महत्व है। इस दिन 10 वस्तु का दान करना चाहिए। दस अंक का आज अधिक महत्व होता है। इससे अधिक फल की प्राप्ति होती है। इस दिन पूजा-पाठ और स्नान करने से आपके सभी पापों का नाश हो जाता है।

माँ गंगा जी का ध्यान इस प्रकार है-
सितमकरनिषण्णां शुक्लवर्णां त्रिनेत्राम्क रधृतकमलोद्यत्सूत्पलाऽभीत्यभीष्टाम् ।
विधिहरिहररूपां सेन्दुकोटीरचूडाम्क लितसितदुकूलां जाह्नवीं तां नमामि ॥

अर्थात् श्वेत मकर पर विराजित, शुभ्र वर्ण वाली, तीन नेत्रों वाली, दो हाथों में भरे हुए कलश तथा दो हाथों में सुंदर कमल धारण किए हुए,
भक्तों के लिए परम इष्ट, ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का रूप अर्थात् तीनों के कार्य करने वाली, मस्तक पर सुशोभित चंद्रजटित मुकुट वाली तथा सुंदर श्वेत वस्त्रों से विभूषित माँ गंगा को मैं प्रणाम करता हूँ।

कर धृतकमलोद्यत्सूत्पलाऽभीत्यभीष्टा गंगा देव्यै नमो नमो नमः।
अर्थात् हाथ में सुंदर कमल धारण किए हुए, भक्तों के लिए परम इष्ट गंगा देवीजी को नमस्कार है, नमस्कार है।

ऐसे करे गंगा दशहरा व्रत और इस तरह करें पूजन —
गंगा दशहरा का व्रत भगवान विष्णु को खुश करने के लिए किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन लोग व्रत करके पानी भी (जल का त्याग करके) छोड़कर इस व्रत को करते हैं. ग्यारस (एकादशी) की कथा सुनते हैं और अगले दिन लोग दान-पुण्य करते हैं. इस दिन जल का घट दान करके फिर जल पीकर अपना व्रत पूर्ण करते हैं. इस दिन दान में केला, नारियल, अनार, सुपारी, खरबूजा, आम, जल भरी सुराई, हाथ का पंखा आदि चीजें भक्त दान करते हैं |
गंगा दशहरा के दिन चूरमा का भोग लगाना चाहिए | घर पर सवा सेर प्रसाद के रूप में चूरमा बना लें औए भोग लगाने के बाद परिवार के सभी सदस्यों को खाने के लिए दें |

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जानिए क्यों और कैसे हुआ मां गंगा का अवतरण—

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि गंगा जी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए अंशुमान के पुत्र दिलीप व दिलीप के पुत्र भागीरथ ने बड़ी तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता गंगा ने उन्हें दर्शन दिया और कहा ‘‘मैं तुम्हें वर देने आई हूं।’’

राजा भागीरथ ने बड़ी नम्रता से कहा, ‘‘आप मृत्युलोक में चलिए।’’

गंगा ने कहा ‘‘जिस समय मैं पृथ्वी तल पर अवतरण करूं, उस समय मेरे वेग को कोई रोकने वाला होना चाहिए। ऐसा न होने पर पृथ्वी को फोड़कर रसातल में चली जाऊंगी।’’

भागीरथ ने एक अंगूठे के बल खड़ा होकर भगवान शिव की आराधना की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेट कर जटाएं बांध लीं। गंगा जी को शिव की जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका जबकि उन्हें अहंकार था कि वे शिव की जटाओं से कुछ ही क्षणों में निकलकर पृथ्वी पर पहुंच जाएंगी।

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि शंकर जी की जटाओं में गंगा कई वर्षों तक भ्रमण करती रहीं लेकिन निकलने का कहीं मार्ग ही न मिला। अब महाराज भागीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव के प्रसन्नतार्थ घोर तप शुरू किया। अनुनय-विनय करने पर शिव ने प्रसन्न होकर गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिव जी की जटाओं से छूटकर गंगा जी हिमालय में ब्रह्माजी के द्वारा निर्मित ‘बिंदुसर सरोवर’ में गिरीं, उसी समय इनकी सात धाराएं हो गईं। आगे-आगे भागीरथ दिव्य रथ पर चल रहे थे, पीछे-पीछे सातवीं धारा गंगा की चल रही थी। पृथ्वी पर गंगा जी के आते ही हाहाकार मच गया। जिस रास्ते से गंगा जी जा रही थीं, उसी मार्ग में ऋषिराज जहु का आश्रम तथा तपस्या स्थल पड़ता था। तपस्या में विघ्न समझकर वे गंगा जी को पी गए। फिर देवताओं के प्रार्थना करने पर उन्हें पुन: जांघ से निकाल दिया। तभी से ये जाह्नवी कहलाईं।

इस प्रकार अनेक स्थलों का तरन-तारन करती हुई जाह्ववी ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचकर सगर के साठ हजार पुत्रों के भस्मावशेष को तारकर उन्हें मुक्त किया। उसी समय ब्रह्माजी ने प्रकट होकर भागीरथ के कठिन तप तथा सगर के साठ हजार पुत्रों के अमर होने का वर दिया। साथ ही यह भी कहा तुम्हारे ही नाम पर गंगा जी का नाम भागीरथी होगा। अब तुम अयोध्या में जाकर राज-काज संभालो। ऐसा कहकर ब्रह्मा जी अंतर्ध्यान हो गए। इस प्रकार भागीरथ पृथ्वी पर गंगावतरण करके बड़े भाग्यशाली हुए।

भगीरथ की तपस्या से गंगा जी का अवतरण धरती मॆ हुआ जिससे उनके पुरखों को मोक्ष हुआ साथ ही म्रत्युलोक वासियों को गंगा जी का सानिध्य प्राप्त हुआ |

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उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि गंगा दशहरा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय के समय गंगा स्नान विशेष फलदायी रहेगा। अगर किसी वजह से गंगा में स्नान संभव नहीं हो तो आसपास की नदी व सरोवर में गंगाजल युक्त जल से स्नान करें। इस बार अाठ योगों की प्रधानता के साथ गंगादशहरा का पूजन किया जाएगा। ज्योतिषाचार्य दयानन्द शास्त्री ने बताया, दशहरा जितना बलवान होगा देश के लोगों को उतना ही लाभ होगा। गंगा स्नान करने से 3 कायिक, 4 वाचिक और 3 मानसिक पाप नष्ट होते हैं।

जानिए इस दिन गंगा पूजन कैसे करे–

इस दिन गंगा या किसी पवित्र नदी या फ़िर घर मॆ स्नान के जल मॆ गंगा या पवित्र जल मिलाकर इस मंत्र का पाठ करना चाहिये ||
“ॐ नमः शिवाये नारायनये दशहराये गंगाये नमः” का जाप दस बार करना चाहिए इसके पश्चात हाथ मॆ पुष्प लेकर इस स्त्रौत का पाठ करना चाहिये |
“ॐ नमो भगवते ऐइम ह्री श्री हिली हिली मिली मिली गंगे मां पावय पावय स्वाहा” इस मंत्र का पांच बार उच्चरण कर पुष्प जल को अर्पण करना चाहिये साथ ही अपने पितरों की तृप्ति के लिये प्रार्थना करना चाहिये.स्नान के समय दस दीपों का दान करना चाहिये ||
उपर्युक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए गंगा पूजा की सामग्री अर्पित करें और धुप तथा दिया जलाएं |
गंगा जी को धरती पर लाने वाले भागीरथी का नाम और गंगा के उत्पत्ति स्थल का भी स्मरण करें |
नदी मॆ दस डुबकी लगाना चाहिये.जौ और तिल सोलह मुट्ठी लेकर तर्पण कार्य करना चाहिये ||
इस दिन किया गय़ा कार्य पितरों को मोक्ष तथा वंशवृद्धि के लिये अति उत्तम होता है.||
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गंगा दशहरा स्तोत्र —

॥ गंगा दशहरा स्तोत्रम् ॥
ॐ नमः शिवायै गङ्गायै शिवदायै नमो नमः।
नमस्ते विष्णुरुपिण्यै, ब्रह्ममूर्त्यै नमोऽस्तु ते॥
नमस्ते रुद्ररुपिण्यै शाङ्कर्यै ते नमो नमः।
सर्वदेवस्वरुपिण्यै नमो भेषजमूर्त्तये॥
सर्वस्य सर्वव्याधीनां, भिषक्श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते।
स्थास्नु जङ्गम सम्भूत विषहन्त्र्यै नमोऽस्तु ते॥
संसारविषनाशिन्यै,जीवनायै नमोऽस्तु ते।
तापत्रितयसंहन्त्र्यै,प्राणेश्यै ते नमो नमः॥
शांतिसन्तानकारिण्यै नमस्ते शुद्धमूर्त्तये।
सर्वसंशुद्धिकारिण्यै नमः पापारिमूर्त्तये॥
भुक्तिमुक्तिप्रदायिन्यै भद्रदायै नमो नमः।
भोगोपभोगदायिन्यै भोगवत्यै नमोऽस्तु ते॥
मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु स्वर्गदायै नमो नमः।
नमस्त्रैलोक्यभूषायै त्रिपथायै नमो नमः॥
नमस्त्रिशुक्लसंस्थायै क्षमावत्यै नमो नमः।
त्रिहुताशनसंस्थायै तेजोवत्यै नमो नमः॥
नन्दायै लिंगधारिण्यै सुधाधारात्मने नमः।
नमस्ते विश्वमुख्यायै रेवत्यै ते नमो नमः॥
बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु लोकधात्र्यै नमोऽस्तु ते।
नमस्ते विश्वमित्रायै नन्दिन्यै ते नमो नमः॥
पृथ्व्यै शिवामृतायै च सुवृषायै नमो नमः।
परापरशताढ्यायै तारायै ते नमो नमः॥
पाशजालनिकृन्तिन्यै अभिन्नायै नमोऽस्तुते।
शान्तायै च वरिष्ठायै वरदायै नमो नमः॥
उग्रायै सुखजग्ध्यै च सञ्जीवन्यै नमोऽस्तु ते।
ब्रह्मिष्ठायै ब्रह्मदायै, दुरितघ्न्यै नमो नमः॥
प्रणतार्तिप्रभञ्जिन्यै जग्मात्रे नमोऽस्तु ते।
सर्वापत्प्रतिपक्षायै मङ्गलायै नमो नमः॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्ति हरे देवि! नारायणि ! नमोऽस्तु ते॥
निर्लेपायै दुर्गहन्त्र्यै दक्षायै ते नमो नमः।
परापरपरायै च गङ्गे निर्वाणदायिनि॥
गङ्गे ममाऽग्रतो भूया गङ्गे मे तिष्ठ पृष्ठतः।
गङ्गे मे पार्श्वयोरेधि गंङ्गे त्वय्यस्तु मे स्थितिः॥
आदौ त्वमन्ते मध्ये च सर्वं त्वं गाङ्गते शिवे!
त्वमेव मूलप्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि।
गङ्गे त्वं परमात्मा च शिवस्तुभ्यं नमः शिवे ||
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इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पढ़ना, सुनना मन, वाणी और शरीर द्वारा होने वाले पूर्वोक्त दस प्रकार के पापों से मुक्त कर देता है। यह स्तोत्र जिसके घर लिखकर रखा हुआ होता है उसे कभी अग्नि, चोर, सर्प आदि का भय नहीं रहता है।