“नागचंद्रेश्वर” मंदिर

आइये जाने उज्जैन स्थित “नागचंद्रेश्वर” मंदिर के बारे में —

प्रिय पाठकों/मित्रों, सनातन धर्म में नागपंचमी को नाग की पूजा का विशेष महत्व है, और यही कारण है कि इस दिन नाग मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।

मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट (दरवाजे) वर्ष मेंं एक बार 24 घंटे के लिए नागपंचमी पर खुलते हैं।

इस बार पट 27 जुलाई 2017 (गुरुवार) को आधी रात यानी 12 बजे खुलें।
नागचंदे्रश्वर का मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के सबसे ऊपरी तल पर स्थित है।

इस मंदिर में 11वीं शताब्दी की प्रतिमा स्थापित है। एक प्रतिमा में नाग के फन पर शंकर पार्वती विराजमान हैं और इस प्रतिमा के दर्शन के बाद ही नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन होते हैं।

मान्यता है कि नागपंचमी के मौके पर इस मंदिर के दर्शन से कई समस्याओं से मुक्ति मिलती है, क्योंकि खुद नागदेवता इस दिन मंदिर में आते हैं।

प्रिय पाठकों/मित्रों, हमारे देश भारत में सर्प पूजा/नागों की पूजा करने की परंपरा हिंदू धर्म में सदियों से चली आ रही है।

इन्हें भगवान का आभूषण माना गया है। यूं तो भारत में नागों के कई मंदिर हैं, लेकिन इनमें से एक उज्जैन के नागचंद्रेश्वर की कहानी अद्भुत है।

उज्जैन में महाकाल मंदिर परिसर के तीसरी मंजिल पर स्तिथ इस मंद्दिर कि खासियत यह है कि ये मंदिर साल में बस एक दिन और वो भी नागपंचमी 27 जुलाई 2017(गुरुवार की अर्ध रात्रि) (श्रावण शुक्ल पंचमी) को ही खुलता है।

उसी दिन इस मंदिर में भक्तों को नागदेवता के दर्शन हो पाते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस दिन नागराज खुद मंदिर में मौजूद रहते हैं।

उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का मंदिर, जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है।इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है जो कि इस वर्ष 28 जुलाई 2017, शुक्रवार को है। नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं।

कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। माना जाता है कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं।

मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और माँ पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

इसके बाद सिं‍धिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। कहा जाता है इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।

सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए …

।।जय बाबा महाकाल।।
।।शुभम भवतु।।
।।कल्याण हो।।
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