फिल्म समीक्षा –फिल्म “डियर जिंदगी”

बैनर : होप प्रोडक्शन्स, धर्मा प्रोडक्शन्स, रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट

निर्माता : गौरी खान, करण जौहर, गौरी शिंदे
सितारे : शाहरुख खान, आलिया भट्ट, कुणाल कपूर, अली जफर, अंगद बेदी, ईरा दुबे,
यशस्विनि दायमा
निर्देशक-लेखक-पटकथा : गौरी शिंदे
संगीत : अमित त्रिवेदी
गीत: कौसर मुनीर
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 29 मिनट 53 सेकंड
रेटिंग : 3/5
फिल्म की कहानी : कायरा उर्फ कोको (आलिया भट्ट) विदेश से सिनेमटॉग्रफी का कोर्स करने के बाद अब मुंबई में अपने फ्रेंडस के साथ रह रही हैं। कायरा का ड्रीम एक मेगा बजट मल्टिस्टारर फिल्म को विदेश में शूट करने का है, लेकिन इन दिनों वह अपनी टीम के साथ ऐड फिल्में करने के साथ डांस म्यूजिक ऐल्बम को शूट करने में लगी हैं। गोवा में कायरा की फैमिली रहती है, लेकिन कायरा को अपनीफैमिली के साथ वक्त गुजारना जरा भी पसंद नहीं है। कायरा की फैमिली में उसकी , पापा के अलावा छोटा भाई भी है, लेकिन बचपन की कुछ कड़वी यादों के चलतेकायरा ने अब अपनी फैमिली से कुछ इस कदर दूरियां बना ली है कि अब उसे उनके साथरहने की बात सुनते ही टेंशन होने लगती हैं। लवर्स को बतियाते-गुनगुनाते देख बिंदास कायरा भड़क उठती है। पत्थर तक मारने दौड़ती है। अपने फोन में उसने मां कानंबर ‘ड्यूटी’ नाम से फीड किया हुआ है। उसे बिखरी हुई चीजें पसंद है। घर के नाम से उसे सख्त चिढ़ है। उसके माता-पिता गोवा में रहते हैं, जहां वह कभी नहीं जाना चाहती। लेकिन जब एक दिन उसका दिल जोरों से टूटता है तो उसे गोवा जाना ही पड़ता है। कुछ दिन बाद फिल्म मेकर यजुवेंद्र सिंह (कुणाल कपूर) विदेश में एक
फिल्म को शूट करने का ऑफर जब कायरा को देता है तो कायरा को लगता है जैसे उसका ड्रीम अब पूरा होने वाला है। हालात ऐसे बनते हैं कि ऐसा हो नहीं पाता और कायराअब यजुवेंद्र से दूरियां बना लेती है। इसी बीच गोवा में कायरा के पापा उसेअपने एक दोस्त के न्यूली ओपन हुए होटल के ऐड शूट के लिए गोवा बुलाते हैं। यहांआकर कायरा एक दिन डॉक्टर जहांगीर खान (शाहरुख खान) से मिलती है। डॉक्टर जहांगीर खान शहर का जाना माना मनोचिकित्सक है। कायरा को लगता है कि उसे भीडॉक्टर जहांगीर खान के साथ कुछ सीटिंग करनी चाहिए, इन्हीं सीटिंग के दौरानजहांगीर खान कायरा को जिदंगी जीने का नया नजरिया तलाशने में उसकी मदद करते हैं। कुछ सीटिंग के बाद कायरा डॉक्टर जहांगीर खान उर्फ जग के बताए नजरिए से जब जिंदगी को नए सिरे से जीने की कोशिश करती है तो उसे लगता है सारी खुशियां तोउसके आस-पास ही बिखरी पड़ी हैं।

साल 2012 में आई ‘इंग्लिश विंगलिश’ के बाद निर्देशक गौरी शिंदे एक ऐसी लड़की की
कहानी बयां कर रही है, जिसकी जिंदगी रिश्तों की उलझनों में बस उलझ कर रह गई
है। ऊपर से तो सबको यही दिखता है कि कायरा एक प्रतिभाशाली कैमरा वुमेन है और
एक सफल सिनेमाटोग्राफर बनना चाहती है। लेकिन अंदर से वह कितनी घुटी हुई है
इसका अंदाजा किसी को भी नहीं है। हर समय उसके साथ रहने वाले उसके दोस्त जैकी
(यशस्विनि दायमा) और फैटी (ईरा दुबे) को भी नहीं। इसलिए जब कायरा अपने करियर
की खातिर सिड (अंगद बेदी) का दिल तोड़ती है तो किसी को पता नहीं चलता। लेकिन जब
रघुवेन्द्र (कुणाल कपूर) कायरा का दिल तोड़ता है तो इसका दर्द सभी को होता है।
फैटी को भी, जो रघुवेन्द्र की सच्चाई कायरा को बताती है।

अपना दर्द समेटे कायरा कुछ समय के लिए जैकी के साथ अपने माता-पिता के पास गोवा
चली जाती है। उसे वहां भी चैन नहीं मिलता। रातों को नींद नहीं आती। पेरेन्ट्स
और रिश्तेदारों से उसकी वैसे ही नहीं बनती। ना वो उसे समझते हैं और ना वह
उन्हें, इसलिए वह जैकी के साथ रहने लगती है और एक दिन कायरा की मुलाकात डीडी
यानी दिमाग के डॉक्टर जहांगीर खान उर्फ जग (शाहरुख खान) से होती है।

कायरा, जग से पहली ही नजर में काफी प्रभावित होती है। अपनी उलझने सुलझाने के
लिए वह उसके पास जाने लगती है। जग की बातों का उस पर काफी साकारात्मक प्रभाव
पड़ता है और धीरे-धीरे कायरा रिश्तों को समझने लगती है। तभी उसकी जिंदगी में
रूमी (अली जफर) आता है जो कि एक सिंगर है। कायरा को लगता है कि वह उसी के लिए
बना है, लेकिन वह उसे भी ज्यादा दिन झेल नहीं पाती।

इसी दौरान एक दिन वह किसी बात पर अपने पेरेन्ट्स और रिश्तेदारों पर फट पड़ती
है। जग को जब ये बात पता चलती है तो वह उसके अतीत के बारे में जानने की कोशिश
करता है और उसे पता चलता है कि कायरा का बचपन बड़ी मुश्किलों भर था, जिसकी वजह
से वह न केवल अपने माता-पिता से दूर रहना चाहती है, बल्कि हर रिश्ते से भी
अपना दामन छुड़ा लेना चाहती है। उसे हमेशा यही डर सताता रहता है कि कहीं कोई
उसे छोड़ कर न चला जाए, इसलिए वह हर रिश्ते को खुद से ही खत्म कर देती है।

इस फिल्म में कुछ लाजवाब सीन हैं। गोवा के समुद्र किनारे शाहरुख खान और आलिया
भट्ट का समुद्र की तेज गति के साथ किनारे और आती लहरों के साथ कबड्डी खेलने का
सीन यकीनन आपको जिदंगी को जीने की एक और वजह बताने का दम रखता है तो वहीं
इंटरवल के बाद कायरा यानी आलिया का जिदंगी को डरते-डरते अपने ही बनाए स्टाइल
में जीने की मजबूरी का क्लाइमेक्स भी गौरी ने प्रभावशाली ढंग से फिल्माया है।
मुबंई और गोवा की लोकेशन पर शूट गौरी की यह फिल्म हमें यह बताने में काफी हद
तक सफल कही जा सकती है कि जिन खुशियों को पाने के लिए हम हर रोज बेताहाशा बिना
किसी मंजिल के भागे जा रहे हैं और बेवजह टेंशन में रहने लगते हैं, अपनों से
दूरियां बनाने और अपनों पर चीखने चिल्लाने लगते हैं, उन खुशियों को तो खुद
हमने अपने से दूर किया है। गौरी की ‘डियर जिदंगी’ में आपको शायद इन सवालों का
जवाब मिल जाए।

इंटरवल तक समझ आ जाता है कि आखिर कायरा का मिजाज कैसा है। उसके आस-पास की
गतिविधियां कैसी हैं। कौन लोग हैं, जिन्हें वह पसंद करती है और किन्हें
नापसंद। इंटरवल तक जहांगीर खान जैसे एक नए किरदार की एंट्री से कहानी में एक
घुमाव की उम्मीद भी झलकती है, लेकिन ये उम्मीद बहुत देर तक उत्साह नहीं जगाती।
कायरा और जहांगीर के बीच कई सीन्स बेहद अच्छे हैं। पल पल मजा भी आता है, लेकिन
इन दोनों की कैमिस्ट्री बहुत अच्छी होने के बावजूद बहुत दूर तक नहीं जाती और
पुख्ता अहसास भी नहीं जगा पाती। ये फिल्म कहीं-कहीं अच्छी लगती है तो बस आलिया
के अभिनय की वजह से।

ऐक्टिंग :– इसी साल आई ‘उड़ता पंजाब’ और ‘कपूर एंड संस’ के बाद इस फिल्म में
आलिया का सबसे दमदार अभिनय देखने को मिलता है। वह भावुक दृश्यों में बेहद
स्वभाविक लगती हैं। उनकी परिवक्वता इसी झलकती है कि वह एक क्षण में बदलने और
पलटने सरीखे भावों को अच्छे से निभा लेती हैं। और यही वजह है कि जब कायरा अपने
सपनों के फलक के इर्द-गिर्द होती है तो मन को भाती भी है, इसलिए ये फिल्म
आलिया के बेहतरीन अभिनय के लिए एक बार देखी जा सकती है। दूसरे छोर पर शाहरुख
खान ने केवल अपने हिस्से के संवाद बोलने का काम किया है। वो धीरे से
मुस्कुराते दिखते हैं। हल्की आवाज में बात करते दिखते हैं और इसी बातचीत के
दौरान वह कुछ अच्छे सीन्स दे जाते हैं। शाहरुख से कुछ साक्षात्कारों के दौरान
ये अहसास हुआ कि वह रील से परे रीयल जिंदगी में भी कुछ ऐसे ही बातें करते हैं
और यही अहसास उन्होंने परदे पर भी उकेरा है। उनकी आवाज और हाव-भाव से संजीदगी
झलकती है, लेकिन कुछ नया नहीं दे पाती।शाहरुख खान फिल्म का प्लस पॉइंट हैं
लेकिन उनके हाथ में ऐसा कुछ नहीं है कि वह फिल्म को दौड़ा ले जाएं. अली जफर
अच्छे लगते हैं, उनकी प्रेजेंस बहुत ही प्यारी लगती है. सिंगर का किरदार
उन्होंने अच्छा निभाया है |आलिया भट्ट अपनी पीढ़ी की समर्थ अभिनेत्री के तौर
पर उभर रही हैं। उन्‍हें एक और मौका मिला है। क्‍यारा के अवसाद,द्वंद्व और
महात्‍वाकांक्षा को उन्‍होंने दृश्‍यों के मुताबिक असरदार तरीके से पेश किया
है। लंबे संवाद बोलते समय उच्‍चारण की अस्‍पष्‍टता से वह एक-दो संवादों में
लटपटा गई हैं। नाटकीय और इमोशनल दृश्‍यों में बदसूरत दिखने से उन्‍हें डर नहीं
लगता। सहयोगी भूमिकाओं में इरा दूबे,यशस्विनी दायमा,कुणाल कपूप,अंगद बेदी और
क्‍यारा के मां-पिता और भाई बने कलाकारों ने बढि़या योगदान किया है।

बाकी कलाकारों का काम कायरा के किरदार की पेचीदगी के आगे ठीक से उभर ही नहीं
पाया है। दरअसल गौरी शिंदे ने इस पेचीदगी को पनपने का भरपूर मौका दिया है,
जिससे इस फिल्म में मनोरंजक तत्वों का घोर अभाव दिखता है। इस अभाव को भरने के
लिए संगीत काफी हद तक मददगार साबित होता है। लेकिन वह भी काम नहीं आया है।

निर्देशन :— गौरी शिंदे की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने स्क्रिप्ट के साथ
पूरा न्याय किया। गौरी की इस फिल्म में आपको उनकी पिछली फिल्म की तरह के
टिपिकल चालू मसाले, आइटम नंबर और मारामारी देखने को नहीं मिलेगी। गौरी ने
फिल्म के किरदारों को स्थापित करने में पूरी मेहनत की है तो वहीं कायरा के
किरदार को स्क्रीन पर जीवंत बनाने के लिए पूरा होमवर्क किया। हां, इंटरवल के
बाद कहानी की रफ्तार कुछ थम सी जाती है, डॉक्टर जहांगीर और कायरा के बीच
सीटिंग के कुछ सीन को अगर एडिट किया जाता तो फिल्म की रफ्तार धीमी नहीं होती।
‘इंग्लिश विंगलिश’ के मुकाबले ये थोड़ी कमजोर फिल्म है, जिसमें शिंदे ने एक
महिला के अस्तित्व और पहचान को मुद्दा बनाया था। उसका अंग्रेजी सीख लेना उसे
विजयी बना देता है, हीरो की तरह। उसके मुकाबले ‘डियर जिंदगी’ बुरी फिल्म नहीं
है, बल्कि कम अच्छी है। ‘उड़ता पंजाब’ में आलिया के किरदार की ही तरह ‘डियर
जिंदगी’ देख कर एक गीत की पंक्तियां याद आती हैं। ‘एक कुड़ी जेदा नाम मुहब्बत,
गुम है गुम है गुम है…’

संगीत :— अमित त्रिवेदी का मधुर संगीत आपके दिल और दिमाग पर जादू चलाने का
दम रखता है, टाइटल सॉन्ग लव यू जिंदगी, तारीफों से और तू ही है, गाने फिल्म की
रिलीज से पहले ही कई म्यूजिक चार्ट में टॉप फाइव में शामिल हो चुके हैं।

क्यों देखें :— अगर आप साफ-सुथरी फिल्मों के शौकीन हैं तो हमारी नजर से आपको
यह फिल्म मिस नहीं करनी चाहिए। गौरी की यह फिल्म आपको ज़िंदगी को जीने का एक
नया तरीका सिखाने का दम रखती है। इस फिल्म की एक खासियत यह भी है कि फिल्म
देखते वक्त आप कहीं न कहीं खुद को कहानी या किसी किरदार के साथ रिलेट
करेंगे।’डियर जिंदगी’ जिंदगी के प्रति सकारात्मक और आशावादी होने की बात कहती
है।

PT. DAYANAND SHASTRI,