आईए जाने नागपंचमी 2016  पर कैसे करे  कालसर्प योग/कालसर्प दोष पूजन-

श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन ‘नागपंचमी का पर्व’ परंपरागत श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस दिन नागो का पूजन किया जाता है। इस दिन नाग दर्शन का विशेष महत्व है। इस वर्ष  07 अगस्त 2016  (रविवार) को नागपंचमी मनाई जाएगी |
इस दिन सांप मारना मना है। पूरे श्रावण माह विशेष कर नागपंचमी  07 अगस्त 2016  (रविवार) को धरती खोदना निषिद्ध है। इस दिन व्रत करके सांपो को खीर व दूध पिलाया जाता है जबकि यह गलत है। कहीं-कहीं सावन माह की कृष्ण पक्ष की पंचमी को भी नागपंचमी मनाई जाती है। 
प्रत्येक वर्ष  शुक्ल श्रावण पंचमी को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता  है। इस दिन नाग देवता का पूजन होता है। इस दिन काष्ठ पर एक कपड़ा बिछाकर उस पर रस्सी की गांठ लगाकर सर्प का प्रतीक रूप बनाकर, उसे काले रंग से रंग दिया जाता है। कच्चा दूध, घृत और शर्करा तथा धान का लावा इत्यादि अर्पित किया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश मे इस दिन दीवारो पर गोबर से सर्पाकार आकृति का निर्माण कर सविधि पूजन किया जाता है। प्रत्येक तिथि के स्वामी देवता है। पंचमी तिथि के स्वामी देवता सर्प है। इसलिए यह कालसर्पयोग की शांति का उत्तम दिन है।
♦जानिए नागपंचमी क्यो है कालसर्प जनित अनिष्ट की शांति का उत्तम दिन:-
इस तिथि को चंद्रमा की राशि कन्या होती है और राहु का स्वगृह कन्या राशि है। राहु के लिए प्रशस्त तिथि, नक्षत्र एव स्वगृही राशि के कारण नागपंचमी सर्पजन्य दोषो की शांति के लिए उत्तम दिन माना जाता है। कालसर्प योग की शांति विधियां अधिकांशत: नागपूजा एव श्राद्ध बलि पर आधारित है। पंचमी तिथि को भगवान आशुतोष भी सुस्थानगत होते है। इसलिए इस दिन सर्प शांति के अंतर्गत राहु-केतु का जप, दान, हवन आदि उपयुक्त होता है। इसके अतिरिक्त अन्य दुर्योगो के लिए भगवान शिव का अभिषेक, महामृत्युंजय मंत्र का जप, यज्ञ, शिव सहस्रनाम का पाठ, गाय और बकरे के दान का भी विधान है। 
♦ जानिए क्यो मनाते है नागपंचमी?
धर्मग्रंथों के अनुसार नागपंचमी के दिन नाग अर्थात सर्प के दर्शन व उसके पूजन का विशेष फल मिलता है। जो भी व्यक्ति नागपंचमी के दिन नाग की पूजा करता है उसे कभी भी नाग अर्थात सांप का भय नहीं होता और न ही उसके परिवार मे किसी को नागो द्वारा काटे जाने का भय सताता है। नागपंचमी का पर्व मनाए जाने के पीछे जो कथा प्रचलित है वह संक्षेप में इस प्रकार है। एक किसान जब अपने खेतों मे हल चला रहा था उस समय उसके हल से कुचल कर एक नागिन के बच्चे मर गए। अपने बच्चो को मरा देखकर क्रोधित नागिन ने किसान, उसकी पत्नी और लड़को को डस लिया। जब वह किसान की कन्या को डसने गई तब उसने देखा किसान की कन्या दूध का कटोरा रखकर नागपंचमी का व्रत कर रही है। यह देख नागिन प्रसन्न हो गई। उसने कन्या से वर मांगने को कहा। किसान कन्या ने अपने माता-पिता और भाइयो को जीवित करने का वर मांगा। नागिन ने प्रसन्न होकर किसान परिवार को जीवित कर दिया। और तभी से यह परम्परा चली आ रही है कि श्रावण शुक्ल पंचमी को नागदेवता का पूजन करने से किसी प्रकार का कष्ट और भय नहीं रहता।
♦जानिए क्यों इसी दिन नाग देवता की होती है विशिष्ट पूजा? 
श्रावण के महीने मे सूर्य कर्क राशिगत मित्रगृही होता है। इस महीने का संबंध भगवान शिव से है और शिव का आभूषण सर्प देवता है। अत: इस तिथि पर सर्प (नाग) पूजन से नागो के साथ ही भगवान आशुतोष की भी असीम कृपा प्राप्त होती है। पुराणो मे नागलोक की राजधानी के रूप मे भोगवतीपुरी विख्यात संस्कृत कथा साहित्य मे विशेष रूप से (कथासरित्सागर) नागलोक व वहां के निवासियों की कथाओ से ओतप्रोत है। गरुण पुराण, भविष्य पुराण, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भावप्रकाश आदि ग्रंथों में नाग संबंधी विविध विषयों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में यक्ष, किन्नर और गंधर्वों के साथ नागो का भी वर्णन मिलता है। भगवान विष्णु की शैय्या की शोभा नागराज शेष बढ़ाते है। 
♦जानिए यह नागपंचमी विशिष्ट क्यो है?
इस बार की नागपंचमी अपने आपमें बहुत विशिष्ट है। उसका मुख्य कारण यह है कि आजकल ज्योतिष जगत मे जिस कालसर्प दोष को लेकर बडी-बडी चर्चाएं हो रही है वही दोष ग्रहों के मध्य इस विशेष तिथि के दिन निर्मित हो रहा है। सबसे मजेदार बात यह है कि इस तिथि को कालसर्प दोष निवारण करने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यानी दोष निवारण करने वाली तिथि के दिन दोष का निर्माण होना एक दुर्लभ योग है। वैसे तो यह योग कुछ सालो के अंतराल मे बन जाता है लेकिन राहू, केतू के लिए नीच कही जाने वाली राशियो क्रमश: वृश्चिक और बृष राशि में नाग पंचमी के साथ-साथ सोमवार के दिन इस योग का होना बहुत ही दुर्लभ और खास है। ऐसे कालसर्प योग के बनने की शुरुआत शनिवार के दिन से होना इसे और खास बना देता है। अर्थात कालसर्प योग, नीच राशि के राहू-केतू और सोमवार का दिन होने के कारण इस बार की नाग पंचमी का दिन बहुत ही विशिष्ट फलदायी रहेगा।
♦ कैसे मनाए नाग पंचमी :- 
♦ इस दिन नागदेव के दर्शन जरूर करे।
♦ बांबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करनी चाहिए।
♦ नागदेव को दूध नहीं पिलाना चाहिए। उन पर दूध चढ़ा सकते है।
♦ नागदेव की सुगंधित पुष्प व चंदन से ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि नागदेव को सुगंध प्रिय है।
♦इस मंत्र “ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा” का जाप करने से सर्प दोष दूर होने की सम्भावना होती  है।
♦इस दिन घरो मे तवे पर रोटी नहीं बनाई जाती है, कहते है कि तवा नाग के फन का प्रतिरूप होने से हिन्दू धर्म मे तवे को अग्नि पर रखना वर्जित है। इस दिन दाल-बाटी-चूरमे के लड्डू बना कर नाग देवता का पूजन किया जाता है। 
♦ध्यान रहे कि नाग पूजन करते वक्त नाग को दूध नहीं पिलाना चाहिए, क्योंकि नाग कभी भी तरल पदार्थ सेवन नहीं करता यदि भुलवश चढ़ा भी जाए तो वह उसके लिए प्राणघातक होता है। जिस प्रकार हमारे फेफड़ों मे पानी या कोई भी वस्तु चली जाए तो हमारे प्राण संकट मे पड़ जाते है, ठीक उसी प्रकार नाग पर भी प्रभाव होता है। 
♦ इसके लिए हमे अपने घर मे ही शुद्ध घी से दीवार पर नाग बनाना चाहिए एवं फिर उनका विधि-विधान से पूजना करना चाहिए। इस प्रकार करने से नाग देवता प्रसन्न होने के साथ-साथ शुभ प्रभाव देते हैं व नाग दंश का भय भी नहीं रहता है। 
♦ नागपंचमी पर अधिकांश परिवार वाले काले रंग या कोयले से नाग बनाते है एवं फिर पूजन करते है, लेकिन काला अशुभ होता है। अतः घी के ही नाग बनाकर पूजन करना चाहिए। 
♦ कालसर्प योग वाले व्यक्ति इस दिन विधि-विधान से उज्जैन सिद्धवट पर या फिर त्र्यंबकेश्वर जाकर पूजन करवाने से अशुभ प्रभाव खत्म होकर शुभ प्रभाव मे वृद्धि होती है। 
हां, एक बात का अवश्य ध्यान रखे की कभी भी नाग आकृति वाली अंगूठी कदापि ना पहने व जिसे भी इस प्रकार का दोष है वे गोमेद भी ना धारण करे। 
♦जानिए आप किस दोष से है पीडि़त और क्या है इन दोषो के लक्षण ???
स्वप्न में सर्प दिखाई देना, नींद से घबराकर उठना और भय से काम्पने लगना, नजऱ टोना टोटका होना, कार्य व्यापार नोकरी मे मन न लगना, लडक़े-लडक़ी का विवाह समय पर न होना, मेहनत का फल न मिलना, सर्प को मारना व् मरते देखना, आपके वाहन के आगे गाय,बछड़ा,बिल्ली का दुर्घटना होना, सपने मे झोटा,बैल, हाथी, कुत्ता, बिल्ली या सर्प का आप पर झपटते दिखना। कोए गीध ऊँचे पहाड से गिरना, नदी मे डूबता दिखना, शरीर मे कई रोग अचानक आना और बच्चो के पैदा होते ही बीमार होना, संतान का कहने से बाहर होना, कोर्ट कचहरी मे झूठे मुकदमे मे फंसना भूत-प्रेत से परेशानी, पति-पत्नी और संतान का व्यवहार ठीक न होना दोनों शंका में पडकर अपनी ग्रहस्थी को खराब करना, मृत्यु का भय, बार-बार गर्भ खराब होना, प्रमोशन में बाधा आना।  
अगर ये लक्षण किसी भी प्रकार से आप में है तो आपकी कुंडली या आप इन दोषो से शापित है।
ज्योतिष के अनुसार जिन लोगो की कुंडली मे कालसर्प दोष हो, वे अगर इस दिन इस दोष के निवारण के लिए उपाय व पूजन करे तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है तथा कालसर्प दोष के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
ज्योतिष के अनुसार कालसर्प दोष मुख्य रूप से 12 प्रकार का होता है, इसका निर्धारण जन्म कुंडली देखकर ही किया जा सकता है। प्रत्येक कालसर्प दोष के निवारण के लिए अलग-अलग उपाय है। यदि आप जानते है कि आपकी कुंडली मे कौन का कालसर्प दोष है तो उसके अनुसार आप नागपंचमी के दिन उपाय कर सकते है। कालसर्प दोष के प्रकार व उनके उपाय इस प्रकार है-
1- अनन्त कालसर्प दोष:- अनन्त कालसर्प दोष होने पर नागपंचमी के दिन एकमुखी, आठमुखी अथवा नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करे। यदि इस दोष के कारण स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है, तो नागपंचमी के दिन रांगे (एक धातु) से बना सिक्का नदी में प्रवाहित करे।
2- कुलिक कालसर्प दोष:- कुलिक नामक कालसर्प दोष होने पर दो रंग वाला कंबल अथवा गर्म वस्त्र दान करे। चांदी की ठोस गोली बनवाकर उसकी पूजा करें और उसे अपने पास रखे।
3- वासुकि कालसर्प दोष:- वासुकि कालसर्प दोष होने पर रात को सोते समय सिरहाने पर थोड़ा बाजरा रखे और सुबह उठकर उसे पक्षियों को खिला दे। नागपंचमी के दिन लाल धागे में तीन, आठ या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करे।
4- शंखपाल कालसर्प दोष :- शंखपाल कालसर्प दोष के निवारण के लिए 400 ग्राम साबूत बादाम बहते जल मे प्रवाहित करे। नागपंचमी के दिन शिवलिंग का दूध से अभिषेक करे।
5- पद्म कालसर्प दोष:- पद्म कालसर्प दोष होने पर नागपंचमी के दिन से प्रारंभ करते हुए 40 दिनो तक रोज सरस्वती चालीसा का पाठ करे। जरूरतमंदो को पीले वस्त्र का दान करे और तुलसी का पौधा लगाएं।
6- महापद्म कालसर्प दोष:- महापद्म कालसर्प दोष के निदान के लिए हनुमान मंदिर में जाकर सुंदरकांड का पाठ करे। नागपंचमी के दिन गरीब, असहायों को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा दे।
7- तक्षक कालसर्प दोष:- तक्षक कालसर्प योग के निवारण के लिए 11 नारियल बहते हुए जल मे प्रवाहित करे। सफेद वस्त्र और चावल का दान करे।
8- कर्कोटक कालसर्प दोष:- कर्कोटक कालसर्प योग होने पर बटुकभैरव के मंदिर मे जाकर उन्हें दही-गुड़ का भोग लगाएं और पूजा करे। नागपंचमी के दिन शीशे के आठ टुकड़े नदी मे प्रवाहित करे।
9- शंखचूड़ कालसर्प दोष:- शंखचूड़ नामक कालसर्प दोष की शांति के लिए नागपंचमी के दिन रात को सोने से पहले सिरहाने के पास जौ रखे और उसे अगले दिन पक्षियों को खिला दे।  पांचमुखी, आठमुखी या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
10- घातक कालसर्प दोष:- घातक कालसर्प के निवारण के लिए पीतल के बर्तन में गंगाजल भरकर अपने पूजा स्थल पर रखे। चार मुखी, आठमुखी और नौ मुखी रुद्राक्ष हरे रंग के धागे में धारण करे।
11- विषधर कालसर्प दोष:- विषधर कालसर्प के निदान के लिए परिवार के सदस्यों की संख्या के बराबर नारियल लेकर एक-एक नारियल पर उनका हाथ लगवाकर बहते हुए जल में प्रवाहित करे। नागपंचमी के दिन भगवान शिव के मंदिर में जाकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें।
12- शेषनाग कालसर्प दोष:- शेषनाग कालसर्प दोष होने पर नागपंचमी की पूर्व रात्रि को लाल कपड़े में थोड़े से बताशे व सफेद फूल बांधकर सिरहाने रखें और उसे अगले दिन सुबह उन्हें नदी में प्रवाहित कर दे। नागपंचमी के दिन गरीबों को दूध व अन्य सफेद वस्तुओं का दान करे।
♦पूजन विधि –
नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करे इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के सामने यह मंत्र बोले-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
इसके बाद व्रत-उपवास एवं पूजा-उपासना का संकल्प ले। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, पुष्प, धूप, दीप से पूजन करे तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं। यह प्रार्थना करे-
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।
♦प्रार्थना के बाद नाग गायत्री मंत्र का जाप करे-
ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।
♦ इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करे-
ब्रह्मलोकुषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
कद्रवेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इंद्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
पृथिव्यांचैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पा प्रचरन्ति च।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
समुद्रतीरे ये सर्पा ये सर्पा जलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
रसातलेषु या सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
नागदेवता की आरती करे और प्रसाद बांट दे। इस प्रकार पूजन करने से नागदेवता प्रसन्न होते हैं और हर मनोकामना पूरी करते है।
Pandit Dayanand Shastri.