जन्म- कुण्डली का क्यो करते हे मिलान ??

प्राचीन भारतीय संस्कृति मे युवक-युवतियो को विवाह पूर्व मिलने-जुलने की अनुमति नहीं थी। माता- पिता अच्छा वर और खानदान देखकर उसका विवाह कर देते थे, लेकिन वर और कन्या की जन्म कुण्डलियो का मिलान करवाना अत्यावश्यक समझा जाता था । समय के साथ स्थिति बदली है। आज हर क्षेत्र मे युवक-युवती कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करते है। यही कारण है कि प्रेम-विवाह आम हो गए है और जन्म-कुण्डली के मिलान की आवश्यकता लगभग गौण होती जा रही है। परन्तु आज भी अनेक लोग विवाह पूर्व भावी दंपती की जन्म-कुण्डली मिलवाना आवश्यक समझते है। ताकि विवाहोपरांत वर कन्या अपना गृहस्थ जीवन निर्विध्न गुजार सके।
♦ क्या मिलाया जाता है ??
वैवाहिक सम्बन्धोती अनुकूलता के परिक्षण के लिए ऋषि-मुनियो ने अनेक ग्रन्थ की रचना की, जिनमे वशिष्ठ, नारद, गर्ग आदि की सन्हीताएं, मुहुर्तमार्तण्ड, मुहुर्तचिन्तामणि और कुण्डलियो मे वर्ण,वश्य,तारा,योनि,राशि,गण,भकूट एवं नाडी़ आदि अष्टकूट दोष अर्थात् आठ प्रकार के दोषो का परिहार अत्यन्त आवश्यक है। वर-कन्या की राशियो अथवा नवमांशेशों की मैक्त्री तथा राशियों नवमांशेशियो  की एकता द्वारा नाडी़ दोष के अलावा शेष सभी दोषो का परिहार हो जाता है। इन सभी दोषो मे नाडी़ दोष प्रमुख है, जिसके परिहार के लिए आवश्यक है कि वर-कन्या की राशि एक ओर नक्षत्र भिन्न-भिन्न हो अथवा नक्षत्र एक ओर राशियां भिन्न हो ।
♦ कितने गुण मिलने चाहिए ??
शास्त्रानुसार वर-कन्या के विवाह के लिए 36 गुणो मे से कम से कम सा़ढ़े सोलह गुण अवश्य मिलने चाहिए, लेकिन उपरोक्त नाडी़ दोष का परिहार बहुत जरुरी है। अगर नाडी़ दोष का परीहार ना हो, तो अठाईस गुणो के मिलने पर भी शास्त्र विवाह की अनुमति नहीं देते है। बहुत आवश्यक हो, तो सोलह से कम गुणो और अष्टकूट दोषो के अपरिहार की स्थिति मे भी कुछ उपायो से शान्ति करके विवाह किया जा सकता है। इस स्थिति मे कन्या का नाम बदल कर मिलान को अनुकूल बनाना अशास्त्रीय है।
♦ क्या होता मांगलिक दोष ??
शास्त्रानुसार कुज या मंगल दोष दाम्पत्य जीवन के लिए विशेष रुप से अनिष्टकारी माना गया है। अगर कन्या की जन्म-कुण्डली मे मंगल ग्रह लग्न, चन्द्र अथवा शुक्र से 1, 2, 12, 4, 7 आठवे भाव मे विराजमान हो, तो वर की आयु को खतरा होता है। वर की जन्म-कुण्डली मे यही स्थिति होने पर कन्या की आयु को खतरा होता है। मंगल की यह स्थिति पति-पत्नी के बीच वाद-विवाद और कलह का कारण भी बनती है। जन्म-कुण्डली म वृहस्पति एवं मंगल की युति अथवा मंगल एवं चन्द्र की युति से मंगल दोष समाप्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ विशेष भावो मे भी मंगल की स्थिति के कुज दोष का कुफल लगभग समाप्त हो जाता है। यह अत्यन्त आवश्यक है कि कुजदोषी वर का विवाह कुजदोषी कन्या से ही किया जाए, इससे दोनों के कुजदोष समाप्त हो जाते है और उनका दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है।
♦ किन बातो का ध्यान रखे कन्या से विवाह करते समय..??
कन्या ग्रहण के विषय मे मनु ने कहा है कि वह कन्या अधिक अंग वाली, वाचाल, पिंगल, वर्णवाली रोगिणी नहीं होनी चाहिए।  विवाह मे सपिण्ड, विचार, गोत्र, प्रवर विचार करना चाहिए। विवाह मे स्त्रियो के लिए गुरुबल तथा पुरुषो के लिए रविबल देख लेना चाहिए। कन्या एवं वर को चन्द्रबल श्रेष्ठ अर्थात् चौथा, आठवां, बारहवां, चन्द्रमा नहीं लेना चाहिए। गुरु तथा रवि भी चौथे, आठवें एवं बारहवें नहीं लेने चाहिए। विवाह मे मास ग्रहण के लिए व्यास ने कहा है कि माघ, फाल्गुन, वैशाख, मार्गशीर्ष, ज्येष्ठ, अषाढ़ महिनो मे विवाह करने से कन्या सौभाग्यवती होती है।  रोहिणी, तीनो उत्तरा, रेवती, मूल, स्वाति, मृगशिरा, मघा, अनुराधा, हस्त ये नक्षत्र विवाह मे शुभ हैं। विवाह मे सौरमास ग्रहण करना चाहिए। जैसे ज्योतिषशास्त्र मे कहा है–
 
सौरो मासो विवाहादौ यज्ञादौ सावनः स्मतः।
आब्दिके पितृकार्ये च चान्द्रो मासः प्रशस्यते।।
 
बृहस्पति, शुक्र, बुद्ध और सोम इन वारों मे विवाह करने से कन्या सौभाग्यवती होती है। विवाह मे चतुर्दशी, नवमी इन तिथियो को त्याग देना चाहिए। इस प्रकार आपको भी धार्मिक रीति से ही विवाह संस्कार को पूर्ण करना चाहिये।
 
♦ शीघ्र विवाह के लिए ये करे वास्तु के अचूक उपाय :
विवाह जीवन का सबसे अहम पल होता है। कई बार विवाह मे अड़चने आती है। इसके कई कारण होसकते है। वास्तु दोष भी उन्हीं मे से एक है। यदि इन वास्तु दोषों को दूर कर दिया जाए तो जिसके विवाह मे अड़चने आ रही होती है उसका विवाह अतिशीघ्र हो जाता है। नीचे ऐसे ही कुछ वास्तु नियमो के बारे मे जानकारी दी गई है-
 
1- यदि विवाह प्रस्ताव मे व्यवधान आ रहे हो तो विवाह वार्ता के लिए घर आए अतिथियो को इस प्रकार बैठाएं कि उनका मुख घर मे अंदर की ओर हो। उन्हे द्वार दिखाई न दे।
2- यदि मंगल दोष के कारण विवाह मे विलंब हो रहा हो तो उसके कमरे के दरवाजे का रंग लाल अथवा गुलाबी रखना चाहिए।
3- विवाह योग्य युवक-युवती के कक्ष मे कोई खाली टंकी, बड़ा बर्तन बंद करके नहीं रखें। अगर कोई भारी वस्तु हो तो उसे भी हटा दे।
4- विवाह योग्य युवक-युवती जिस पलंग पर सोते हो उसके नीचे लोहे की वस्तुएं या व्यर्थ का सामान नहीं रखना चाहिए।
5- यदि विवाह के पूर्व लड़का-लड़की घर वालो की रजामंदी से मिलना चाहे तो बैठक व्यवस्था इस प्रकार करे कि उनका मुख दक्षिण दिशा की ओर न हो। 
6- यदि घर के मुख्य द्वार के समीप ही वास्तु दोष हो तो विवाह की बात अन्य स्थान पर करे।
7-घर मे बेटी जवान है, उसकी शादी नहीं हो पा रही है, तो एक उपाय करें- कन्या के पलंग पर पीले रंग की चादर बिछाएं, उस पर कन्या को सोने के लिए कहे। इसके साथ ही बेडरूम की दीवारों पर हल्का रंग करे। ध्यान रहे कि कन्या का शयन कक्ष वायव्य कोण मे स्थित होना चाहिए। जीवन मे पीले रंग को सफलता का सूचक कहा जाता है। पीला रंग भाग्य मे वृद्धि लाता है। कन्या की शादी मे पीले रंग का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि कन्या ससुराल मे सुखी रहेगी। विवाह निर्विघ्न होने की शुभ सूचना वस्तुतः हल्दी से सम्पन्न होती है, क्योंकि हल्दी को गणेशजी की उपस्थिति माना जाता है। और जिस कार्य मे गणेश जी स्वयं उपस्थित हो, उस कार्य को पूरा करने मे विघ्न कैसे आ सकता है।हल्दी की गांठो मे कभी-कभी गणेश जी की मूर्ति का चित्र मिलता है। लक्ष्मी अन्नपूर्णा भी हरिद्रा कहलाती है। श्री सूक्त मे वर्णन किया गया है कि लक्ष्मी जी पीत वस्त्र धारण किए है। अतः आप समझ सकते है कि हल्दी का कितना महत्व है। इतना ही नहीं, बृहस्पति का रंग भी पीत वर्ण का है, तभी तो पीत रंग का  पुखराज पहनकर बृहस्पति की कृपा प्राप्त होती है। 
 
by Pandit Dayanand Shastri.