जानिए कही आपकी जन्म कुंडली मे व्यभिचारी जीवनसाथी मिलने के योग तो नहीं?

हमारे हिन्दू शास्त्रो और समाज मे एक विवाह प्रथा प्रचलित है। अतः आप सभी से मेरा निवेदन है की गुण मिलान एवं कुंडली मिलान के उपरांत किसी योग्य, अनुभवी और विद्वान ज्योतिषी से यह भी अवश्य ज्ञात कर वाले कि कहीं लडका या लड़कीं कि कुंडली मे अन्य स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध बनने के योग तो नहीं है।
आजकल विवाहोपरांत पति-पत्नी के झगड़े तो आम बात बन गये है। पति-पत्नी मे सामान्य नोंक-झोंक से तो प्रेम और बढ़ता है। लेकिन नाजायज संबंधों के कारण उत्पन्न होने वाले झगड़े दोनो के बिच मे गाली गलोच-मारपीट, अलगाव, कोर्ट कचेरी के चक्कर एवं तलाक, आत्महत्या, कत्ल तक पहुंच जाती है। कई लडके-लड़की को ऐसा जीवन साथी मिलता है, जो अपने नाजायज संबंधों के कारण अपने पति-पत्नी को विभिन्न तरह कि यातनाएं देता है। ऐसी समस्याओ को भारतीय ज्योतिष शास्त्र के मूल सिद्धांतो से ज्ञात किया जा सकता है की लडका या लड़की को कैसा पति-पत्नी मिलेगी ?
यदि किसी जन्म कुंडली मे शुक्र उच्च का हो तो ऐसे व्यक्ति के कई प्रेम प्रसंग हो सकते है, जो कि विवाह के बाद भी जारी रहते है। मारपीट करने वाला कई स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध रखने वाला जीवनसाथी मिलने के योग होने पर उन्हे मंत्र-यंत्र-तंत्र, रत्न इत्यादि उपाय करके ऐसे योग का प्रभाव कम किया जा सकता है। जन्म कुंडली के सप्तम भाव मे मंगल चारित्रिक दोष उत्पन्न करता है स्त्री-पुरुष के विवाहेत्तर संबंध भी बनाता है। संतान पक्ष के किये कष्टकारी होता है। मंगल के अशुभ प्रभाव के कारण पति-पत्नी मे दूरियां बढ़ती है। जन्म कुंडली के द्वादश भाव मे मंगल शैय्या सुख, भोग, मे बाधक होता है। इस दोष के कारण पति पत्नी के सम्बन्ध मे प्रेम एवं सामंजस्य का अभाव रहता है। यदि मंगल पर ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हो, तो व्यक्ति मे चारित्रिक दोष और गुप्त रोग उत्पन्न कर सकता है। व्यक्ति जीवनसाथी को घातक नुकसान भी कर सकता है।
ध्यान रखे, जन्म कुंडली मे सप्तम भाव मे शुक्र स्थित व्यक्ति को अत्याअधिक कामुक बनाता है, जिससे विवाहेत्तर सम्बन्ध बनने कि संभावना प्रबल रहती है। जिस्से वैवाहिक जीवन का सुख नष्ट होता है। यदि जन्म कुंड़ली के सप्तम भाव मे सूर्य हो, तो अन्य स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध बनाने वाला जीवनसाथी मिलता है। यदि जन्म कुंड़ली मे शत्रु राशि मे मंगल या शनि हो, अथवा क्रूर राशि मे स्थित होकर सप्तम भाव मे स्थित हो, तो क्रूर, मारपीट करने वाले जीवनसाथी कि प्राप्ति होती है।
यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव मे चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता एवं किसी अन्य से प्रेम कर अवैध संबंध रखता है। यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव मे राहु होने पर जीवनसाथी धोखा देने वाला कई स्त्री-पुरुष से संबंध रखने वाला व्यभिचारी होता है व विवाह के बाद अवैध संबंध बनाता है। उक्त ग्रह दोष के कारण ऐसा जीवनसाथी मिलता है जिसके कई स्त्री-पुरुष के साथ अवैध संबंध होते है। जो अपने दांपत्य जीवन के प्रति अत्यंत लापरवाह होते है। यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तमेश यदि अष्टम या षष्टम भाव मे हो, तो यह पति-पत्नी के मध्य मतभेद पैदा होता है। इस योग के कारणा पति-पत्नी एक दूसरे से अलग भी हो सकते है।
इस योग के प्रभाव से पति-पत्नी दोंनो के विवाहेत्तर संबंध बन सकते है। इस लिये जिन पुरुष और कन्या कि कुंडली मे इस तरह का योग बन रहा हो उन्हे एक दूसरे कि भावनाओ का सम्मान करते हुवे अपने अंदर समर्पण कि भावना रखनी चाहिए।
शुभम भवतु।। कल्याण हो।।
by Pandit Dayanand Shastri.