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आपके इन लक्षणों से जानिए आपके बुरे/ख़राब ग्रह(समय) का प्रभाव/कारण–

आपके इन लक्षणों से जानिए आपके बुरे/ख़राब ग्रह(समय) का प्रभाव/कारण–
 
 किसी मनुष्य के जीवन में कौन-सा ग्रह अशुभ प्रभाव दाल रहा है, इसका औसत निर्धारण उसके जीवन में घटने वाली घटनाओं के आधार पर भी ज्ञात किया जा सकता है | विभिन्न ग्रहों की अशुभ स्थिति पर निम्नलिखित लक्षण प्राप्त होते हैं –
 
1-सूर्य-  तेज का अभाव, आलस्य, अकड़न, जड़ता, कन्तिहिनता, म्लान छवि, मुख(कंठ) में हमेशा थूक का आना | लाल गाय या वस्तुओं का खो जाना या नष्ट हो जाना, भूरी भैंस या इस रंग के सामान की क्षति | हृदय क्षेत्र में दुर्बलता का अनुभव |
 
2-चन्द्र-  दुखी, भावुकता, निराशा, अपनी व्यथा बताकर रोना, अनुभूति क्षमता का ह्रास, पालतू पशुओं की मृत्यु, जल का अभाव (घर में), तरलता का अभाव (शरीर में), मानसिक विक्षिप्तता की स्तिथि, मानसिक असन्तुलन या हताशा के कारण गुमसुम रहना, घर के क्षेत्र में कुआं या नल का सूखना, अपने प्रभाव क्षेत्र में तालाब का सुखना आदि |
 
3-मंगल-  दृष्टि दुर्बलता, चक्षु (आंख) क्षय, शरीर के जोड़ों में पीड़ा और अकड़न, कमर एवं रीढ़ की हड्डी में दर्द तथा अकड़न, रक्त की कमी, त्वचा के रंग का पिला पड़ना, पीलिया होना, शारीरिक रूप से सबल होने पर भी संतानोत्पत्ति की क्षमता का न होना, शुक्राणुओं की दुर्बलता, नपुंसकता (शिथिलता), पति पक्ष की हानि (स्वास्थ्य , धन, प्राण आदि) |
 
4-बुध- अस्थि दुर्बलता, दंतक्षय, घ्राणशक्ति का क्षय होना, हकलाहट, वाणी दोष, हिचकी, अपनी बातें कहने में गड़बड़ा जाना, नाक से खून बहना, रति शक्ति का क्षय (स्त्री-पुरुष दोनों की), नपुंसकता (स्नायविक), स्नायुओं का कमजोर पड़ना, बन्ध्यापन (स्नायविक), कंधो का दर्द, गर्दन की अकड़न, वैवाहिक सम्बन्ध में क्षुब्धता, व्यापार की भागीदारी में हानि, रोजगार में अकड़न, शत्रु उपद्रव, परस्त्री लोलुपता या सम्बन्ध, परपुरुष लोलुपता या सम्बन्ध, अहंकार से हानि, पड़ोसी से अनबन रहना, कर्ज |
 
5-बृहस्पति-  चोटी के बाल का उड़ना, धन या सोने का खो जाना या चोरी हो जाना या हानि हो जाना, शिक्षा में रुकावट, अपयश , व्यर्थ का कलंक, सांस का दोष, अर्थहानी, परतंत्रता, खिन्नता, प्रेम में असफलता, प्रियतमा की हानि (मृत्यु या अनबन), प्रियमत की हानि (मृत्यु या अनबन), जुए में हानि, सन्तानहानि (नपुंसकता, बन्ध्यापन, अल्पजीवन), आत्मिक शक्ति का अभाव, बुरे स्वप्नों का आना आदि |
 
6-शुक्र– स्वप्नदोष, लिंगदोष, परस्त्री लोलुपता, शुक्राणुहीनता या कर्ज, नाजायज सन्तान, त्वचा रोग, अंगूठे की हानि (हाथ), पड़ोसी से हानि, कर्ज की अधिकता, परिश्रम करने पर भी आर्थिक लाभ नहीं, भूमि हानि आदि |
 
7-शनि-  व्यवसाय में हानि, अर्थहानि, रोजगार में हानि, अधिकार हानि, अपयश, मान-सम्मान की हानि, कृषि-भूमि की हानि, बुरे कार्यों में प्रवृत्ति, मकान हानि, अधार्मिक प्रवृत्ति (नास्तिकता), रिश्वत लेते पकड़े जाना या रिश्वत में हंगामा और अपयश, रोग, आकस्मिक मृत्यु, ऊंचाई से गिरकर शरीर या प्राणहानि, अचानक धनहानि, दुर्घटना, निराशा, घोर अपमान, निन्दक प्रवृत्ति, राजदण्ड |
 
8-राहु-संतानहीनता, विद्याहानि, बुद्धिहानि, उज्जड़ता, अरुचि, पूर्ण नपुंसकता, बन्ध्यापन, अन्याय करने की प्रवृत्ति, क्रूरता, रोजगारहानि, भूमिहानि, आकस्मिक अर्थहानि, राजदण्ड, शत्रुपिड़ा, बदनामी, कारावास का दण्ड, घर से निकाला, चोरी हो जाना, चोर-डाकू से हानि, दु:स्वप्न, अनिद्रा, मानसिक असंयता |
 
9-केतु- रोग, ऋण की बढ़ोत्तरी, लड़ाई-झगड़े से हानि, भाई से दुश्मनी, घोर दु:ख, नौकरों की कमी, अस्त्र से शारीरक क्षति, सांप द्वारा काटना, आग से हानि, शत्रु से हानि, अन्याय की प्रवृत्ति, पाप-प्रवृत्ति, मांस खाने की प्रवृत्ति, राजदण्ड (कैद) |
 
उपर्युक्त लक्षणों के अनुसार बिना कुण्डली देखे भी आप जान सकते हैं कि आपको किस ग्रह के अशुभ प्रभाव का उपचार करना चाहिए | ग्रहों के उपचार ग्रहफल में हैं |

“बसंत पंचमी”

जानिए आखिर क्या है बसंतोत्सव / बसंत पर्व / “बसंत पंचमी” अथवा मधुमास पर्व ….

प्रिय पाठकों/मित्रों,माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी कहा जाता है। माना जाता है कि विद्या, बुद्धि व ज्ञान की देवी सरस्वती का आविर्भाव इसी दिन हुआ था। इसलिए यह तिथि वागीश्वरी जयंती व श्री पंचमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। ऋग्वेद के 10/125 सूक्त में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन किया गया है। हिंदूओं के पौराणिक ग्रंथों में भी इस दिन को बहुत ही शुभ माना गया है व हर नए काम की शुरुआत के लिए यह बहुत ही मंगलकारी माना जाता है। कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष बसंत पंचमी का त्यौहार 01 फरवरी 2017 को होगा।बसंत पंचमी, ज्ञान, संगीत और कला की देवी, ‘सरस्वती’ की पूजा का त्योहार है। इस त्योहार में बच्चों को हिंदू रीति के अनुसार उनका पहला शब्द लिखना सिखाया जाता है।बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।इस दिन पीले वस्त्र धारण करने का रिवाज़ है। बसंत पंचमी सर्दियों के मौसम के अंत का प्रतीक है। हर कोई बहुत मज़े और उत्साह के साथ इस त्यौहार का आनंद लेता है।

बसंत पंचमी पूजन मुहूर्त — वसंत पंचमी वसंत के आगमन का सूचक होती है। यह पर्व माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है। इस बार यह पर्व बुधवार, 1 फरवरी 2017 को मनाया जाएगा।
इस दिन पूजन सुबह 7.10 से 8.28 अमृत चौघडिया में व फिर 9.51 से 11.09 तक शुभ के चौघडिया में करें।

हमारे देश भारत में – शीत ऋतु के बाद मधुमास अथवा बसंत ऋतु का आगमन होता है . यह ऋतु बड़ी मस्त . .बड़ी मनभावन होती है। शीत काल में प्रकृति का वो सबकुछ जो कड़क ठंड से नष्ट अथवा सुशुप्त अवस्था में हो गया था वो पुनः नवीन रूप में हर बार से और सुन्दर शक्तिवान और स्फूर्तिमय हो चारो दिशाओं के वातावरण को आच्छादित कर देता है . अर्थात हमारे चारों ओर प्रकृति के नज़ारों में खुला आकाश और वृक्ष – पेड़ – पौधे लताएँ ..बाग़- बगीचा ..ही द्रश्यमान होतें है . तो कहने का तात्पर्य यह कि – इस समय खिली -2 धूप बेल- लताओं में नए-2 पत्ते – कोंपलें ..मंजरियाँ तथा रंग- बिरंगे -सुंगंधित फूलों के गुच्छों से सजे ..पेड़ – पौधे साथ ही स्वादिष्ट फलों से लदी वृक्षों – की डालियाँ ..कलरव करते ..पक्षी- गण ..मस्त चलती बयार किसको नही आनंदित कर देती है . .? अर्थात सभी लोग इस बसंत ऋतु में प्रसन्नचित्त स्वतः हो जातें हैं . यह सभी को खुश करने का ” क़ुदरत का अनमोल तोहफ़ा ” ही समझना चाहिए . वैसे सभी मौसम . . . ऋतुएँ अपनी -2 अलग-अलग विशेषता लिए होतीं है . पर मधुमास की विशेषता इसको अपने आप में विशेष होने के कारण इसे सर्वोपरि बना देती है।
हमारे भारतीय शास्त्रीय संगीत में इस मौसम के कई ” राग ” और अनेक गीतों का भण्डार है . एक राग तो ” राग-बसंत ” के ही नाम से जानी जाती है |
इस पर्व और मधुमास के बारे में हमारे अनेक कवियों ने -रचनाकारों ने कई उल्लेखनीय वर्णन किया है ; उनमें से ” कालिदास ” का नाम कौन भूल सकता है , भला ?
बसंत पर्व से जुडी कई किवदंतिया , कथाएं अथवा प्रसंग इत्यादि जाने जातें हैं . जैसे महादेव और कामदेव , श्री राधा – कृष्णा |
इस दिन सभी लोग “माँ सरस्वती ” का पूजन अर्चन करते हैं। पीले फल और प्रसाद चढ़ाते है। इस दिन लोग बसंती रंग के वस्त्र धारण करते हैं .इतना ही नहीं घर में भोजन पकवान भी पीले रंग यानी बसंती रंग के बनातें हैं . लोग पतंगे उडातें है . बुंदेलखंड के कहीं -2 घरों में कुछ स्त्रियाँ पीले फूलों की चौक बना कर , बीच मैं ‘गौर’ रख पूजा करतीं हैं ” सुहाग ” लेती हैं .यानी इस बसंत पर्व को लोग पूरे तन-मन धन से बसंती बन बसंतोत्सव को धूम- धाम से मना कर आनंदित होतें है |

ऐसे करे सरस्वती वन्दना —
सरस्वती या कुन्देन्दु देवी सरस्वती को समर्पित बहुत प्रसिद्ध स्तुति है जो सरस्वती स्तोत्रम का एक अंश है। इस सरस्वती स्तुति का पाठ वसन्त पञ्चमी के पावन दिन पर सरस्वती पूजा के दौरान किया जाता है।

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥२॥

पौराणिक कथा—
—- माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने श्रृष्टि की रचना तो कर दी लेकिन वे इसकी नीरसता को देखकर असंतुष्ट थे फिर उन्होंनें अपने कमंडल से जल छिटका जिससे धरा हरी-भरी हो गई व साथ ही विद्या, बुद्धि, ज्ञान व संगीत की देवी प्रकट हुई। ब्रह्मा जी ने आदेश दिया कि इस श्रृष्टि में ज्ञान व संगीत का संचार कर जगत का उद्धार करो। तभी देवी ने वीणा के तार झंकृत किए जिससे सभी प्राणी बोलने लगे, नदियां कलकल कर बहने लगी हवा ने भी सन्नाटे को चीरता हुआ संगीत पैदा किया। तभी से बुद्धि व संगीत की देवी के रुप में सरस्वती पूजी जाने लगी।
मान्यता है कि जब सरस्वती प्रकट हुई तो भगवान श्री कृष्ण को देखकर उनपर मोहित हो गई व भगवान श्री कृष्ण से पत्नी रुप में स्वीकारने का अनुरोध किया, लेकिन श्री कृष्ण ने राधा के प्रति समर्पण जताते हुए मां सरस्वती को वरदान दिया कि आज से माघ के शुक्ल पक्ष की पंचमी को समस्त विश्व तुम्हारी विद्या व ज्ञान की देवी के रुप में पूजा करेगा। उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने सबसे पहले देवी सरस्वती की पूजा की तब से लेकर निरंतर बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा लोग करते आ रहे हैं।

—-सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं|
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जानिए वसंत पंचमी के दिन को बेहतर बनाने के अचूक उपाय—

1. इस दिन तीव्र बुद्धि पाने के लिए सुबह स्नान कर लें. सभी देवी – देवताओं की समान्य रूप से पूजा करें और माँ काली के दर्शन करने के लिए मंदिर जाएँ. मंदिर में जाने के बाद उनसे हाथ जोड़कर अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें. अब काली माँ को पेठे की मिठाई का भोग लगायें या फल का भोग लगायें. इसके बाद निम्नलिखित मन्त्र का 11 बार जाप करें.

मन्त्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महा सरस्वत्यै नम:

2. अगर आप किसी केस में फसे हुए हैं और उसका परिणाम आपके हक में नहीं आ रहा हैं या आपको स्वास्थ्य से जुडी हुई किसी अन्य परेशानी का सामना करना पड रहा हैं या वैवाहिक जीवन में तनाव हैं. तो इन सभी परेशानियों से राहत पाने के लिए वसंत पंचमी के दिन प्रातः उठकर स्नान कर पीले वस्त्र धारण कर लें और यदि आपको संगीत पसंद हैं और आप संगीत के क्षेत्र में ही आगे जाना चाहते हैं. तो इस दिन पीले रंग के वस्त्र धारण कर लें. अब सरस्वती जी की समान्य विधि से पूजन करें और माँ सरस्वती का ध्यान करके निम्नलिखित मन्त्र का जाप 21 बार करें. जाप सम्पूर्ण होने के बाद सरस्वती जी को शहद का भोग लगायें और उस प्रसाद को अपने घर के सभी सदस्यों में वितरित कर दें.

मन्त्र – ह्रीं वाग्देव्यै ह्रीं ह्रीं

3. यदि किसी विद्यार्थी को अथक परिश्रम करने के बाद भी सफलता हासिल नहीं हो पा रही हैं. तो उसे वसंत पंचमी के दिन इस उपाय को करना चाहिए. इस उपाय को आप किसी भी गुरूवार से शुरू कर सकते हैं. अगर आप इस उपाय को किसी शुभ समय में शुरू करना चाहते हैं तो इस उपाय को करने का सबसे अच्छा दिन शुक्ल पक्ष की पंचम तिथि हैं. इस उपाय को करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान कर ले. अब एक तांबे की या स्टील की थाली लें. अब इस थाली में कुमकुम से स्वास्तिक का चिन्ह बना लें और अपने मन में गणेश जी का ध्यान करें. अब इस थाली पर बने स्वास्तिक के चिन्ह के ऊपर एक सरस्वती माता का यंत्र स्थापित कर लें. इसके बाद 8 नारियल लें और इन्हें थाली के सामने रख दें. अब इस थाली में रखे यंत्र पर पुष्प, चन्दन व अक्षत चढाएं. इसके बाद धूप एवं शुद्ध घी का दीपक जला लें और माता सरस्वती जी की आरती करें. आरती करने के बाद अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए निम्नलिखित सरस्वती माँ के मन्त्र की एक स्फटिक की माला या तुलसी की एक माला का जाप करें.

मन्त्र – ॐ सरस्वत्यै नम:

सरस्वती जी के इस मन्त्र का जाप करने के बाद पूजन की सारी सामग्री को एकत्रित कर लें और उसे जल में प्रवाहित कर दें. इस उपाय को करने से आपको आपकी मेहनत का फल अवश्य मिलेगा.

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क्यों विशेष है बसंत पंचमी—
—- बसंत पंचमी के दिन को माता पिता अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा की शुरुआत के लिए शुभ मानते हैं। —– पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस दिन बच्चे की जिह्वा पर शहद से ए बनाना चाहिए इससे बच्चा ज्ञानवान होता है व शिक्षा जल्दी ग्रहण करने लगता है।
—–बच्चों को उच्चारण सिखाने के लिहाज से भी यह दिन बहुत शुभ माना जाता है।
—–6 माह पूरे कर चुके बच्चों को अन्न का पहला निवाला भी इसी दिन खिलाया जाता है।
— चूंकि बसंत ऋतु प्रेम की रुत मानी जाती है और कामदेव अपने बाण इस ऋतु में चलाते हैं इस लिहाज से अपने परिवार के विस्तार के लिए भी यह ऋतु बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसलिए बसंत पंचमी को परिणय सूत्र में बंधने के लिए भी बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है व बहुत से युगल इस दिन अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत करते हैं।
— गृह प्रवेश से लेकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस दिन को शुभ माना जाता है।
— इस दिन कई लोग पीले वस्त्र धारण कर पतंगबाजी भी करते हैं।
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जानिए बसंत पंचमी पर कैसे करें पूजा—
इस दिन प्रात:काल स्नानादि कर पीले वस्त्र धारण करें। मां सरस्वती की प्रतिमा को सामने रखें तत्पश्चात क्लश स्थापित कर भगवान गणेश व नवग्रह की विधिवत पूजा करें। फिर मां सरस्वती की पूजा करें। मां की पूजा करते समय सबसे पहले उन्हें आचमन व स्नान कराएं। फिर माता का श्रंगार कराएं माता श्वेत वस्त्र धारण करती हैं इसलिए उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं। प्रसाद के रुप में खीर अथवा दुध से बनी मिठाईयां चढा सकते हैं। श्वेत फूल माता को अर्पण किये जा सकते हैं।
—–कुछ क्षेत्रों में देवी की पूजा कर प्रतिमा को विसर्जित भी किया जाता है।
—–विद्यार्थी मां सरस्वती की पूजा कर गरीब बच्चों में कलम व पुस्तकों का दान करें।
—-संगीत से जुड़े व्यक्ति अपने साज पर तिलक लगा कर मां की आराधना कर सकते हैं व मां को बांसुरी भेंट कर सकते हैं।

ये हैं 2017 में बसंत पंचमी – पूजा का शुभ मुहूर्त—
बसंत पंचमी – 01 फरवरी 2017
पूजा का समय – 07:13 से 12:34 बजे तक
पंचमी तिथि का आरंभ – 03:41 बजे से (01 फरवरी 2017)
पंचमी तिथि समाप्त – 02:20 बजे (02 फरवरी 2017)

आप सभी को ” बसंत पर्व ” की बहुत- बहुत हार्दिक बधाई !
दो शब्द ..और मैं इस अवसर पर कहना चाहूंगा…कि—–
सभी इस पर्व को अपने जीवन वास्तविकता से उतारने का प्रयास करें अर्थात जब तक है’ तन-मन में जान’ तब तक हर किसी को जीने का और आनंदित रहने का अधिकार है ; किसी को किसी भी प्रकार उदास न होकर जीवन के हर पलों का प्रभु की अमानत समझ जीना चाहिए …खुशी से …उल्लास के साथ परन्तु मर्यादा के साथ ।
by Pt. Dayanand shastri

क्या आपकी जन्म कुंडली मे है पत्रकार बनने का योग :

हर व्यक्ति मे अलग-अलग क्षमता होती है। लेकिन स्वयं यह तय करना कठिन होता है कि हममे क्या क्षमता है इसलिये कभी कभी गलत निर्णय लेने से असफलता हाथ लगती है, परन्तु ज्योतिष एक ऐसा विषय है जिसके द्वारा उचित व्यवसाय/क्षेत्र चुनने मे मार्गदर्शन लिया जा सकता है। आजकल हाईस्कूल करने के बाद एक दुविधा यह रहती है कि कौन से विषय चुने जाएं जिससे डॉक्टर या इन्जीनियर का व्यवसाय चुनने मे सहायता मिल सके। इसके लिये कुन्डली के ज्योतिषीय योग हमारी सहायता कर सकते है। ज्योतिष को चिरकाल से सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है । वेद शब्द की उत्पति “विद” धातु से हुई है जिसका अर्थ जानना या ज्ञान है। ज्योतिष शास्त्रतारा जीवात्मा के ज्ञान के साथ ही परम आस्था का ज्ञान भी सहज प्राप्त हो सकता है। ज्‍योतिष शास्‍त्र मात्र श्रद्धा और विश्‍वास का विषय नहीं है, यह एक शिक्षा का विषय है।
पाणिनीय-शिक्षा41 के अनुसर”ज्योतिषामयनंयक्षुरू”ज्योतिष शास्त्र ही सनातन वेद का नैत्रा है। इस वाक्य से प्रेरित होकर ” प्रभु-कृपा ”भगवत-प्राप्ति भी ज्योतिष के योगो द्वारा ही प्राप्त होती है।
आज कल कई लोग मीडिया जगत मे जाने के लिए काफी लोगउत्सुक रहते है लेकिन उनको अपना फ्यूचर पता नहीं चल पाता। आइये जानते है की है मीडिया मे (पत्रकारिता मे )जाने के लिए आपका कोनसा गृह सबसे सबसे ज्यादा मजबूत  होना चाहिए। ग्रहो का विभिन्न राशियों मे स्थित होना भी व्यवसायका चयन करने मे मदद करता है। यदि चर राशियों मे अधिक ग्रह हो तो जातक को चतुराई, युक्ति निपुणता से सम्बधित व्यवसाय मे सफलता मिलती है। यह ऐसा व्यवसाय करता है जिसमे निरंतर घूमना पड़ता है। यदि किसी जातक की कुंडली मे  चन्द्र , और बुध की युति हो तो ऐसा जातक कवि, पत्रकार लेखक बनता है।
कुंडली मे पत्रकार बनने के लिए बुध दशम भाव व शुक्र का अध्ययन करना चाहिए। पत्रकार अच्छा व्यवहार विश्लेषक वकता होता है वाणी प्रभावशाली होती है। जब कुंडली मे द्वितीय भाव मे बुध उच्च राशि मे हो व चतुर्थ भाव मे चनद्र हो हो तब जातक अच्छा पत्रकार बनता है चतुर्थ भाव जनता का है।द्वितीय भाव वाणी का है दशम भाव कार्य वयवसाय का भाव है। बुध लेखनी दशम भाव लोगों की नज़र का भी भाव है। तृतीय भाव लोगों की बोलती बंद करने का भी भाव है। तृतीय भाव मे जब गुरु शुक्र का सम्बन्ध हो द्वादश भाव मे केतु हो ऐसे मे जातक जबरदस्त प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला पत्रकार होता है। व सभी की वकताआो की बोलती बनद करदेता है बुध चनद्र चतुर्थ भाव मे हो दशम मे उच्च गुरु हो शनि का सम्बन्ध शुक्र से सम्बन्ध लगन मे हो ऐसे मे प्रिंट मीडिया कि तरफ़ ध्यान आकर्षित करने वाला श्रेष्ठ ईमानदार पत्रकार होता है। अनुभव मे आया है कि मिथुन, कन्या, वृषभ, तुला, मकर और मीन लग्न के लोग लेखन कार्य मे अवश्य हो सकते है। ज्यादातर बड़े लेखक इन्ही लग्नो मे जन्मे है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमेश यदि नवम् भाव मे हो तो एक सफल लेखक बनने के लिए यह एक उत्तम ग्रहयोग है। जन्मकुंडली मे यदि सरस्वती योग योग बन जाए तो आप उच्चकोटि के लेखक हो सकते है। सरस्वती योग, शारदा योग, कलानिधि योग एक ही होते है। इनके नाम अलग अलग है जब कुंडली मे केन्द्र, त्रिकोण और द्वितीय भाव मे एक साथ या अलग-अलग बुध , शुक्र और गुरु ग्रह बैठते है तो यह महान योग होता है। इस प्रकार के व्यवसायों मे वांछित योग्यता के लिए तृतीय भाव, बुध तथा लेखन के देवता गुरु की युति श्रेष्ठ परिणाम देती है। लेखन कार्य मे कल्पनाशक्ति की आवश्यकता रहती है। इसलिए कल्पनाकारक चंद्रमा की शुभ स्थिति भी वांछित है। जुझारू पत्रकारिता के युग मे मंगल, बुध, गुरु के बल व किसी शुभ भाव मे युति के फलस्वरूप पत्रकारिता व संपादन कार्य मे सफलता मिलती है। लेखन कार्य के तृतीय भाव के बल की भी जांच करनी होगी।
बुध दशम भाव मे गुरु के साथ हो द्वितीय भाव मे चनद्र हो पंचम मे उच्च शनि से राहु द्रष्ट हो ऐसे मे जातक समाचार पत्रों का संपादन या प्रकाशन का कार्य करता है। तृतीय भाव मे केतु बुध हो द्वितीय भाव मे सूर्य हो दशम मे उच्च का शनि हो ऐसे मे जातक समाचार चैनलों मे मुख्य पत्रकारिता का कैरियर जातक प्राप्त करता है। शुक्र बुध चतुर्थ भाव मे हो दशम मे मंगल के साथ राहु हो द्वितीय भाव मे सूर्य की दृष्टि हो ऐसे मे जातक प्रसिद्ध समाचार पत्र का प्रकाशन करता है। बुध दशम भाव मे निच राशि मे हो शनि द्वादश भाव मे हो तृतीय भाव मे केतु के साथ गुरु हो ऐसे मे जातक खोदकर खबर प्रकाशित करने वाला पत्रकार होता है गुरु केतु का सम्बन्ध जातक ऊँचाईयो पर लेजाने वाला होता है। राहु अष्टम भाव मे हो गुरु केतु बुध की राशि मे द्वितीय भाव मे हो बुध दशम भाव मे चनद्र के साथ हो ऐसे जातक प्रसिद्ध परिवार सहित पत्रकारिता के श्रेत्र मे अग्रणीय पत्रकार होता है गुरु बुध केतु तृतीय भाव मे हो दशम मे उच्च का शुक्र हो लगन मे सूर्य हो ऐसे मे देश का सबसे प्रसिद्ध पत्रकार होता है।
हमारे सदीक शास्त्रो मे गजकेसरी योग के निम्नफल बताए गए है : 
गजकेसरीसंजातस्तेजस्वी धनधान्य।
मेधावी गुणसम्पन्नो राज्यप्राप्तिकरो भवेत्।।
अर्थात गजकेसरी योग मे उत्पन्न जातक तेजस्वी, धनधान्य से युक्त, मेधावी,गुणी और राजप्रिय होता है। शाश्त्र अनुसार सरस्वती योग- जब कुंडली मे बुध,गुरु,शुक्र एक साथ याअलग-अलग केन्द्र त्रिकोण या द्वितीय भाव मे बैठते है तो सरस्वती योग बनता है।
शास्त्र कहता है-
धीमान नाटकगद्यपद्यगणना-अलंकार शास्त्रेयष्वयं।
निष्णात: कविताप्रबंधनरचनाशास्त्राय पारंगत:।।
कीर्त्याकान्त जगत त्रयोऽतिधनिको दारात्मजैविन्त:।
स्यात सारस्वतयोगजो नृपवरै : संपूजितो भाग्यवान।।
अर्थात्- सरस्वती योग मे जन्मे जातक बुद्धिमान, गद्य, पद्य, नाटक, अलंकार शास्त्र मे कुशल ,काव्य आदि का रचैयता शास्त्रों के अर्थ मे पारंगत, जगत प्रसिद्ध, बहुधनी, राजाओं द्वारा भी सम्मानित एवं भाग्यवान होता है।
♦ संपादक (इलेक्ट्राॅनिक मीडिया): इस व्यवसाय के लिए मंगल, बुध व गुरु के अतिरिक्त शुक्र का महत्व अधिक है तथा भावों मे लग्न, द्वितीय व तृतीय तीनों का बली होना आवश्यक है।
♦ न्यूज रीडर: न्यूज रीडर के लिए द्वितीय भाव, लग्न, बुध व गुरु बली होने चाहिए क्योंकि न्यूज रीडर का कार्य एक जगह स्थिर होकर बोलना है इसलिए फोकस्ड और स्थिर होकर बैठने के लिए शनि का भी लग्न अथवा लग्नेश पर प्रभाव वांछित है।
♦ एंकर: सफल एंकर बनने के लिए शुक्र, बुध, चंद्रमा व गुरु का महत्व सर्वोपरि है।
♦ रेडियो जाॅकी: कुशल रेडियो जाॅकी बनने के लिए जातक का वाकपटु होना तथा तुरंत निर्णय लेकर धारा प्रवाह बोलना व अपनी वाणी मे हास्य, व्यंग्य व अभिव्यक्ति की योग्यता होना नितांत आवश्यक है जिसके लिए बुध, गुरु, चंद्र, वाणी का द्वितीय भाव तथा अभिव्यक्ति के तृतीय भाव के अतिरिक्त कारक राशियों जैसे मिथुन व कन्या का बली होना आवश्यक है। द्वितीयेश, लग्नेश व दशमेश की युति शुभ भाव मे हो तथा गुरु से दृष्ट हो तो भी कुशल रेडियो जाॅकी बने।
♦ ज्योतिष मे लेखन का मुख्य ग्रह बुध माना जाता है। साथ ही बुध वाणी ,बुद्धि, तर्क शक्ति का कारक भी होता है। अत: बुध का श्रेष्ठ होना अच्छा लेखक के लिए आवश्यक है। लेखन से सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण ग्रह चन्द्र और गुरु होते है क्योकि चन्द्र मन, भावुकता, संवेदना व कल्पना का कारक होता है और गुरु ज्ञान,कौशल,स्वस्थ मेधा शक्ति का कारक होता है इसलिए अच्छे लेखन के लिए इन ग्रह का सहयोग विशेष योग प्रदान करता है।
♦ बुध ग्रह जन्मकुंडली मे तीसरे भाव से जुड़ा होने से लेखन का विशेष योग बनता है क्योंकि बुध लेखन का और तीसरा भाव हाथ का भाव होने से अच्छा लेखन कार्य किया जाता है। तीसरे भाव से पत्रकारिता, संपादन का कार्य भी किया जाता है। इसके अलावा बुध ग्रह यदि शुभ स्थिति मे 1, 3, 4, 5, 7, 8, 9 भावो मे स्थित हो, तो जातक सफल लेखक बन सकता है  क्योंकि ये सभी भाव किसी न किसी रूप से शिक्षा, बुद्धि, ज्ञान, सफलता, व्यवसाय एवं भाग्य से संबंधित है। यदि बुध , गुरु, या शुक्र स्वग्रही या उच्च के हो तो लेखन के क्षेत्र मे अच्छे परिणाम आते है।
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♦ जानिए जन्म पत्री, नक्षत्र और राशियो के बारे मे जानकारियां :
जन्म कुंडली का रहस्य: मनुष्य के कार्यक्षेत्र मे ग्रह-नक्षरो की भूमिका :
सूर्य—सरकारी नौकरी, राजनीति, आंकड़ों से जुड़ा काम।
चंद्रमा—संगीत, कलाएं, रसायन क्षेत्र।
मंगल—तर्क विद्या से जुड़ा व्यवसाय, इंजीनियरिंग, जायदाद संबंधी विवाद।
बुध—एकाउंटेंसी, पत्रकारिता, ज्योतिष।
बृहस्पति—मानविकी, बैंकिंग, प्राणी विज्ञान, प्रबंधन।
शुक्र—ललित कलाएं, पर्यटन, एनिमेशन, ग्राफिक्स।
शनि—भूगर्भ विज्ञान, पुरातत्व विज्ञान, इंजीनियरिंग, श्रम कानून।
केतु—भाषा विज्ञान, कंप्यूटर, मौसम विज्ञान।
राहू—मनोविज्ञान, विश्लेषण संबंधी कार्य, अंतरिक्ष विज्ञान इंजीनियर, विमान चालक।
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♦ अष्टक वर्ग :
ग्रहो की गति बताने के लिए बिंदुओ का प्रयोग किया जाता है।
दशा: मनुष्य के जीवन अवधि या चरण।
कर्म: व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उपलब्धियों का कुल योग।
गोचर: ग्रहो की गति।
कर्म स्थान: जन्म कुंडली का दसवां घर, जो बताता है कि जातक का पेशा क्या होगा?
राशियां: राशि चक्र के 12 भाग, हरेक 30 डिग्री का, इस तरह सब मिलकर 360 डिग्री पूरा करती है। वे पश्चिमी ज्योतिष शास्त्र की राशियों के अनुरूप है।
साढ़े साती :जन्म के समय चंद्रमा की स्थिति मे शनि का प्रवेश अशुभ माना जाता है।
by Pandit Dayanand Shastri.

Mantra

🌅🔔🌿प्रतिदिन स्मरण योग्य शुभ सुंदर मंत्र।
संग्रह प्रात: कर-दर्शनम्🔹

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥

🔸पृथ्वी क्षमा प्रार्थना🔸

समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥

🔺त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण🔺

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

♥ स्नान मन्त्र ♥

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

🌞 सूर्यनमस्कार🌞

ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥

ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नम:
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥

🔥दीप दर्शन🔥

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥

दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥

🌷 गणपति स्तोत्र 🌷

गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।

विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।                                                                                                  लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ॥

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥

⚡आदिशक्ति वंदना ⚡

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

🔴 शिव स्तुति 🔴

कर्पूर गौरम करुणावतारं,
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे,
भवं भवानी सहितं नमामि॥

🔵 विष्णु स्तुति 🔵

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

⚫ श्री कृष्ण स्तुति ⚫

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥

मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्‌।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥

⚪ श्रीराम वंदना ⚪

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

♦श्रीरामाष्टक♦

हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥

🔱 एक श्लोकी रामायण 🔱

आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥

🍁सरस्वती वंदना🍁

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्याऽपहा॥

🔔हनुमान वंदना🔔

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥

🌹 स्वस्ति-वाचन 🌹

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

❄ शांति पाठ ❄

ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥

॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥