जानिए पुष्यामृत योग, पुष्य नक्षत्र का महत्व, लाभ और प्रभाव

 

भारतीय ज्योतिष और संस्कृति में संतुष्टि एवम् पुष्टिप्रदायक पुष्य नक्षत्र के वार में श्रेष्ट बृहस्पतिवार (गुरुवार से योग होने पर यह अति दुर्लभ ” गुरुपुष्यामृत योग‘ कहलाता है ।

‘ सर्वसिद्धिकरः पुष्यः । ‘

इस शास्त्रवचन के अनुसार पुष्य नक्षत्र सर्वसिद्धिकर है।

शुभमांगलिक कर्मों के संपादनार्थ गुरुपुष्यामृत योग वरदान सिद्ध होता है।व्यापारिक कार्यों के लिए तो यह विशेष लाभदायी माना गया है । इस योग में किया गया जप ध्यानदानपुण्य महाफलदायी होता है परंतु पुष्य में विवाह व उससे संबंधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित है।पंचांग के अंग में नक्षत्र का स्थान द्वितीय स्थान पर है। सर्वाधिक गति से गमन करने वाले चंद्रमा की स्थिति के स्थान को इंगित करते है जो कि मन व धन के अधिष्ठाता है। हर नक्षत्र में इनकी उपस्थिति विभिन्न प्रकार के कार्यों की प्रकृति व क्षेत्र को निर्धारण करती है। इनके अनुसार किए गए कार्यों में सफलता की मात्रा अधिकतम होने के कारण उन्हें  मुहूर्त के नाम से जाना जाता है।

मुहूर्त का ज्योतिष शास्त्र में स्थान एवं जनसामान्य में इसकी महत्ता विशिष्ट है। कार्तिक अमावस्या के पूर्व आने वाले पुष्य नक्षत्र को शुभतम माना गया है। जब यह नक्षत्र सोमवारगुरुवार या रविवार को आता हैतो एक विशेष वार नक्षत्र योग निर्मित होता है। जिसका संधिकाल में सभी प्रकार का शुभफल सुनिश्चित हो जाता है। गुरुवार को इस नक्षत्र के पड़ने से गुरु पुष्य नामक योग का सर्जन होता है। यह क्षण वर्ष में कभीकभी आता है।ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र माने गए है। इनमें वे स्थान पर पुष्य नक्षत्र आता है।यह बहुत ही शुभ नक्षत्र माना जाता है। हमारे शास्त्रों के अनुसार यह नक्षत्र स्थायी होता है और इसीलिए इस नक्षत्र में खरीदी गई कोई भी वस्तु स्थायी तौर पर सुख समृद्धि देती है।

♦जानिए की क्या हैं पुष्य नक्षत्र और इसका महत्त्व

पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रो का राजा भी कहते है । माना जाता है कि पुष्य नक्षत्र की साक्षी से किये गये कार्य सर्वथा सफल होते है।पुष्य नक्षत्र का स्वामी गुरु है। ऋग्वेद में पुष्य नक्षत्र को मंगल कर्तावृद्धि कर्ता और सुख समृद्धि दाता कहा गया है। लेकिन यह भी ध्यान दे कि पुष्य नक्षत्र भी अशुभ योगों से ग्रसित तथा अभिशापित होता है। शुक्रवार को पुष्य नक्षत्र में किया गया कार्य सर्वथा असफल ही नहींउत्पातकारी भी होता है। अतः पुष्य नक्षत्र में शुक्रवार के दिन को तो सर्वथा त्याग ही दे। बुधवार को भी पुष्य नक्षत्र नपुंसक होता है। अतः इसमें किया गया कार्य भी असफलता देता है।लेकिन पुष्य नक्षत्र शुक्र तथा बुध के अतिरिक्त सामान्यतया श्रेष्ठ होता है। रवि तथा गुरु पुष्य योग सर्वार्थ सिद्धिकारक माना गया है।


एक बात का और विशेष ध्यान दे कि विवाह में पुष्य नक्षत्र सर्वथा वर्जित तथा अभिशापित है। अतः पुष्य नक्षत्र में विवाह कभी भी नहीं करना चाहिए। इस नए वर्ष में भूमिभवनवाहन व ज्वेलरी आदि की खरीद  उपरोक्त व अन्य शुभ,महत्वपूर्ण कार्यो के लिए श्रेष्ठ माना जाने वाला पुष्य नक्षत्र बारह होंगे जो कुल 25 दिन रहेंगे क्योंकि इनमें प्रत्येक कि अवधि डेढ़ से दो दिन तक रहेगी। इसके अतिरिक्त इस पूरे वर्ष में 96 दिन सर्वार्थ सिद्धि योग व 26 दिन अमृत सिद्धि योग रहेंगेजिसमे भी कोई भी शुभ कार्य किये जा सकते है। पुष्यामृत योग में हत्था जोड़ी“(एक विशेष पेड़ की जड़ जो सभी पूजा की दुकान में मिलती हैको चाँदी की डिबिया में सिंदूर डालकर” अपनी तिजोरी में स्थापित करे । ऐसा करने से घर में धन की कमी नहीं रहती है । ध्यान रहे कि इसे नित्य धुप अगरबत्ती करते  रहे और हर पुष्य नक्षत्र में इस पर सिंदूर चढ़ाते रहे । पुष्य नक्षत्र में शंख पुष्पी की जड़ को चांदी की डिब्बी में भरकर उसे घर के धन स्थान तिजोरी में रख देने से उस घर में धन की कभी कोई भी कमी नहीं रहती है । इसके अलावा बरगद के पत्ते को भी पुष्य नक्षत्र में लाकर उस पर हल्दी से स्वस्तिक बनाकर उसे चांदी की डिब्बी में घर में रखें तो भी बहुत ही शुभ रहेगा।

♦आइये इनको भी जाने

सर्वार्थसिद्धिअमृतसिद्धिगुरुपुष्यामृत और रविपुष्यामृत योगशुभ मुहूर्तों में स्वर्ण आभूषणकीमती वस्त्र आदि खरीदनापहननावाहन खरीदनायात्रा आरम्भ करनामुकद्दमा दायर करनाग्रह शान्त्यर्थ रत्न धारण करनाकिसी परीक्षा प्रतियोगिता या नौकरी के लिए आवेदनपत्र भरना आदि शुभ मुहूर्त जानने के किए अब आपको पूछने के लिए किसी ज्योतिषी के पास बारबार जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

सर्वार्थसिद्धिअमृतसिद्धिगुरुपुष्यामृत और रविपुष्यामृत योग वारों का विशेष नक्षत्रों से सम्पर्क होने से ये योग बनते है । जैसे कि इन योगों के नामों से स्पष्ट हैइन योगों के समय में कोई भी शु्भ कार्य आरम्भ किया जाय तो वह निर्विघ्न रूप से पूर्ण होगा ऐसा हमारे पूर्वाचार्यों ने कहा है ।यात्रागृह प्रवेशनूतन कार्यारम्भ आदि सभी कार्यों के लिए या अन्य किसी अपरिहार्य कारणवश यदि व्यतिपातवैधृतिगुरुशुक्रास्तअधिक मास एवं वेध आदि का विचार सम्भव न हो तो सर्वार्थसिद्धि आदि योगों का आश्रय लेना चाहिये ।

♦अमृतसिद्धि योग

अमृतसिद्धि योग रवि को हस्तसोम को मृगशिरमंगल को अश्विनीबुध को अनुराधागुरु को पुष्य नक्षत्र का सम्बन्ध होने पर रविपुष्यामृतगुरुपुष्यामृत नामक योग बन जाता है जो कि अत्यन्त शुभ माना गया है ।

♦रवियोग योग

रवियोग भी इन्हीं योगों की भाँति सभी कार्यों के लिए है । शास्त्रों में कथन है कि जिस तरह हिमालय का हिम सूर्य के उगने पर गल जाता है और सैकड़ों हाथियों के समूहों को अकेला सिंह भगा देता है उसी तरह से रवियोग भी सभी अशुभ योगों को भगा देता हैअर्थात् इस योग में सभी कार्य निर्विघन रूप से पूर्ण होंगे ।

♦त्रिपुष्कर और द्विपुष्कर योग

त्रिपुष्कर और द्विपुष्कर योग विशेष बहुमूल्य वस्तुओं की खरीददारी करने के लिए है। इन योगों में खरीदी गई वस्तु नाम अनुसार भविष्य में दुगनी व तिगुनी हो जाती है। अतः इन योगों में बहुमूल्य वस्तु खरीदनी चाहिये । इन योगों के रहते कोई वस्तु बेचनी नहीं चाहिये क्योंकि भविष्य में वस्तु दुगुनी या तिगुनी बेचनी पड़ सकती है । धन या अन्य सम्पत्ति के संचय के लिए ये योग अद्वितीय माने गए है । इन योगों के रहते कोई वस्तु गुम हो जाये तो भविष्य में दुगुना या तिगुना नुकसान हो सकता हैअतः इस दिन सावधान रहना चाहिए । इस दिन मुकद्दमा दायर नहीं करना चाहिए और दवा भी नहीं खरीदनी चाहिए ।

♦गुरु ग्रह की तरह गुण

पुष्य नक्षत्र के सर्वश्रेष्ठ नक्षत्र होने के पीछे कारण यह है कि इसकी प्रकृति ब्रह्मांड के सबसे बड़े ग्रह गुरु जैसी है और इसका स्वामी ब्रह्मांड का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह शनि है।शास्त्रों में गुरु‘ को पदप्रतिष्ठासफलता और ऐश्वर्य का कारक माना गया है और शनि‘ को वर्चस्वन्याय और श्रम का कारक माना गया हैइसीलिए पुष्य नक्षत्र की उपस्थिति में महत्वपूर्ण कार्य करने को शुभ माना जाता है।

♦पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि

पुष्य नक्षत्र को अमरेज्य कहा गया हैयह कर्क राशि का नक्षत्र है और इसकी प्रकृति गुण प्रधान है और इसका स्वामी शनि है। यह कर्क राशि में तीन डिग्री और20 कला से लेकर 16 डिग्री व 40 कला तक इसका वर्चस्व होता है।

♦सोनाचांदी की खरीदी को महत्व

स्वर्ण (सोनाधातु को गुरु प्रधान माना गया है और रजत (चांदीको चन्द्र प्रधान कहा जाता हैइसलिए पुष्य नक्षत्र में इन दोनों धातुओं की खरीदी को महत्व दिया जाता है।

♦इस वर्ष 2016 में पुष्य योग के दिनांक व समय :-

किसी भी नए कार्य की शुरुआत अथवा शादीब्याह में सोनेचांदी की खरीदी के लिए अति शुभ माने जाने वाला पुष्य नक्षत्र आने वाले साल 2016 में प्रत्येक माह पड़ेगा और इसका प्रभाव एक दिन शुरू होकर दूसरे दिन तक रहेगा। अगस्त माह में दो मर्तबा यानी माह के शुरुआत और माह के आखिरी दिनों में भी पुष्य नक्षत्र का संयोग बन रहा है। प्रत्येक माह में जहां पुष्य नक्षत्र का प्रभाव दो दिनों तक रहेगा वहीं अगस्त में चार दिनों तक पुष्य नक्षत्र का प्रभाव पड़ेगा। इस तरह नए साल में कुल 26 दिनों तक पुष्य नक्षत्र का प्रभाव रहेगा जिसके चलते इस बार लोगों को नए कार्यों की शुरुआत करनेसोनाचांदीजमीनमकानवाहनइलेक्ट्रॉनिक्स आदि वस्तुएं खरीदनेगृह प्रवेश आदि करने के लिए ज्यादा शुभ मुहूर्त मिलेंगे।

ज्योतिषी पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार 27 नक्षत्रों में सर्वश्रेष्ठ नक्षत्र पुष्य नक्षत्र को माना जाता हैइसमें भी खासकर रवि पुष्य नक्षत्र अथवा गुरु पुष्य नक्षत्र को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है।अमूमन 27 दिनों से 30 दिनों में नक्षत्रों में परिवर्तन होता है यानी लगभग एक माह में एक बार पुष्य नक्षत्र आता है। साल 2016 में प्रत्येक माह पुष्य नक्षत्र आएगा जिसका प्रभाव 24 घंटों तक रहेगा यानी यदि शुक्रवार की शाम पुष्य नक्षत्र शुरू होता है तो वह शनिवार की शाम तक रहेगा। इस तरह देखा जाए तो नए साल में प्रति माह दो दिन अर्थात साल में 24 दिन पुष्य नक्षत्र रहेगा। क्यूंकि अगस्त की तारीख व 29 तारीख को भी पुष्य नक्षत्र है इसलिए इस साल 2016 में कुल 26 दिन पुष्य नक्षत्र का संयोग है।

by  Pandit Dayanand Shastri.