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मंदिर या देवालय कैसा और कहाँ हो?

पारंपरिक मूर्तियों की पूजा करे नवीन घर में यदि देवालय अलग कमरे में हो तो अति शुभ है। यदि ऐसा न हो तो उसे ऐसे कमरे में रखें जहाँ शयन न करते हो।
♦ देवालय बनाते समय व पूजा करते समय निम्न बातों का ध्यान रखें :-
♦ देवालय मंदिर या गुंबद के आकार का न बनाकर ऊपर से चपटा बनवाएँ।
♦ देवालय जहाँ तक हो सके ईशान कोण में रखें। यदि ईशान न मिले तो पूर्व या पश्चिम में स्थापित करें।
♦ देवालय में कुल देवता, देवी, अन्नपूर्णा, गणपति, श्रीयंत्र आदि की स्थापना करे।
♦ तीर्थ स्थानों से खरीदी मूर्तियों को देवालय में न रखें। पारंपरिक  मूर्तियों की ही पूजा करें।
♦ आसन बिछाकर मूर्तियाँ रखें। पूजा करते समय आप भी आसन पर बैठकर पूजा करें।
♦ मूर्तियाँ किसी भी हालत में चार इंच से अधिक लंबी न हो।
♦  नाचते गणपति, तांडव करते शिव, वध करती कालिका आदि की मूर्तियाँ या तस्वीरें न रखें।
♦  महादेव के लिंग के रूप की आराधना करें, मूर्ति न रखें।
♦ पूजा करते समय मुख उत्तर या पूर्व की ओर रखें।
♦  दीपक आग्नेय कोण में (देवालय के) ही जलाएँ। पानी उत्तर में रखें।
♦ पूजा में शंख-घंटे का प्रयोग अवश्य करें।
♦ निर्माल्य-पुष्प-नारियल आदि पूजा के पश्चात विसर्जित करें, घर में न रखें।
♦ पूजा के पवित्र जल को घर के हर कोने में छिड़के।
♦ मीठी वस्तुओं का भोग लगाएँ।
♦ खंडित मूर्तियों का विसर्जन कर दें। विसर्जन से पहले उन्हें भोग अवश्य लगाएँ।
by Pandit Dayanand Shastri.
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