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जानिए सितंबर 2016 मे होने वाले ग्रहण के बारे मे…

> 2016 मे होने वाले ग्रहण एवं भारतीय समयानुसार उसका समय :
सूर्य ग्रहण हो या चंद्र ग्रहण, खगोलविदो के लिये दोनो ही आकर्षण का केद्र होते है। रही बात आम लोगो की, तो तमाम लोग इसे प्राकृतिक घटना के रूप मे देखना चाहते है, तो तमाम लोग ऐसे है, जो इसे धर्म से जोड़ते है। खास कर हिंदू धर्म। खैर हम यहां बात करेंगे 2016 मे होने वाले चंद्र ग्रहण एवं सूर्य ग्रहण की। ऐसा केवल पूर्णिमा को ही संभव होता है। इसलिये चंद्र ग्रहण हमेशा पूर्णिमा को ही होता है। वहीं सूर्यग्रहण के दिन सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आता है जो कि अमावस्या को संभव है। ब्रह्मांड मे घटने वाली यह घटना है तो खगोलीय लेकिन इसका धार्मिक महत्व भी बहुत है। इसे लेकर आम जन मानस मे कई तरह के शकुन-अपशकुन भी व्याप्त है। माना जाता है कि सभी बारह राशियों पर ग्रहण का प्रभाव पड़ता है।

1 सितंबर- सूर्य ग्रहण यह ग्रहण भारत, अफ्रीका, मडागास्कर, अटलांटिक महासागर और भारतीय महासागर से दिखाई देगा। अफ्रीका मे यह आंश‍िक रूप से ही दिखाई देगा।

♦ भारतीय समयानुसार ग्रहण का समय-
♦ सूतक लगेगा:             11:43 बजे
♦ पूर्ण ग्रहण शुरू होगा: 12:47 बजे
♦ ग्रहण चरम पर:  14:31 बजे
♦ पूर्ण ग्रहण समाप्त होगा: 16:25 बजे
♦ सूतक समाप्त होगा: 17:30 बजे
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16-17 सितंबर- चंद्र ग्रहण यह ग्रहण एश‍िया, ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी अफ्रीका मे दिखाई देगा। आंश‍िक रूप से यूरोप, दक्ष‍िण अमेरिका, अटलांटिक और अंटार्कटिका मे दिखेगा।
» 16 सितंबर को भारतीय समयानुसार ग्रहण का समय-
♦ सूतक लगेगा:  22:24 बजे
♦ ग्रहण चरम पर: 00:24 बजे
♦ सूतक समाप्त होगा: 02:23 बजे
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उज्जैन मे उपच्छाया चन्द्र ग्रहण- प्रच्छाया मे कोई ग्रहण नहीं है। उपच्छाया ग्रहण खाली आँख से नहीं दिखेगा।
उपच्छाया से पहला स्पर्श – २२:२७:२२
परमग्रास चन्द्र ग्रहण – ००:२५:४८ – १७th, सितम्बर को
उपच्छाया से अन्तिम स्पर्श – ०२:२४:१५ – १७th, सितम्बर को
उपच्छाया की अवधि – ०३ घण्टे ५६ मिनट्स ५२ सेकण्ड्स
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♦ चन्द्र ग्रहण के समय पर टिप्पणी :
जब चन्द्र ग्रहण मध्यरात्रि (१२ बजे) से पहले लग जाता है परन्तु मध्यरात्रि के पश्चात समाप्त होता है – दूसरे शब्दो मे जब चन्द्र ग्रहण अंग्रेजी कैलेण्डर मे दो दिनो का अधिव्यापन (ओवरलैप) करता है – तो जिस दिन चन्द्रग्रहण की प्रच्छाया का पहला स्पर्श होता है उस दिन की दिनाँक चन्द्रग्रहण के लिये दर्शायी जाती है ऐसी स्थिति मे चन्द्रग्रहण की उपच्छाया का स्पर्श पिछले दिन अर्थात मध्यरात्रि से पहले हो सकता है।
यदि आपकी कुंडली मे ग्रहण दोष है तो “ग्रहण दोष शांति पूजा” के लिए यह दिन सर्वोत्तम है । “पितृ दोष शांति ” और  “वैदिक चन्द्र शांति पूजा ” के लिए भी यह दिन उपयुक्त माना जाता है| ग्रहण के समय  किये गये कार्यों का प्रभाव कई गुना अधिक हो जाता है इसलिए मन्त्र सिद्धि और किसी भी तरह के धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए ग्रहण का  दिन अत्यंत ही उपयुक्त माना गया है ।
♦ हिन्दु धर्म और चन्द्र ग्रहण :
हिन्दु धर्म मे चन्द्रग्रहण एक धार्मिक घटना है जिसका धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। जो चन्द्रग्रहण नग्न आँखो से स्पष्ट दृष्टिगत न हो तो उस चन्द्रग्रहण का धार्मिक महत्व नहीं होता है। मात्र उपच्छाया वाले चन्द्रग्रहण नग्न आँखों से दृष्टिगत नहीं होते है इसीलिये उनका पञ्चाङ्ग मे समावेश नहीं होता है और कोई भी ग्रहण से सम्बन्धित कर्मकाण्ड नहीं किया जाता है। केवल प्रच्छाया वाले चन्द्रग्रहण, जो कि नग्न आँखों से दृष्टिगत होते है, धार्मिक कर्मकाण्डों के लिये विचारणीय होते है। सभी परम्परागत पञ्चाङ्ग केवल प्रच्छाया वाले चन्द्रग्रहण को ही सम्मिलित करते है। ऋग्वेद मे कहा गया है कि ‘चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत:।‘अर्थात चंद्रमा जातक के मन का स्वामी होता है। मन का स्वा मी होने के कारण यदि जन्म कुंडली मे चंद्रमा की स्थिति ठीक न हो या वह दोषपूर्ण स्थिति मे हो तो जातक को मनऔर मस्तिष्क से संबंधी परेशानियां होती है।
यदि चन्द्रग्रहण आपके शहर मे दर्शनीय नहीं हो परन्तु दूसरे देशों अथवा शहरों मे दर्शनीय हो तो कोई भी ग्रहण से सम्बन्धित कर्मकाण्ड नहीं किया जाता है। लेकिन यदि मौसम की वजह से चन्द्रग्रहण दर्शनीय न हो तो ऐसी स्थिति मे चन्द्रग्रहण के सूतक का अनुसरण किया जाता है। अपने मन मे दुर्विचारो को न पनपने दे। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करे और अपने आराध्य देव का ध्यान लगायें। जिन जातकों की कुंडली मे शनि की साढ़े साती या ढईया का प्रभाव चल रहा है, वे शनि मंत्र का जाप करें एवं हनुमान चालीसा का पाठ भी अवश्य करे।
जिन जातको की कुंडली मे मांगलिक दोष है, वे इसके निवारण के लिये चंद्रग्रहण के दिन सुंदरकांड का पाठ करें तो इसके सकारात्मक परिणाम मिलेंगें। आटा, चावल, चीनी, श्वेत वस्त्र, साबुत उड़द की दाल, सतनज, काला तिल, काला वस्त्र आदि किसी गरीब जरुरतमंद को दान करे। ग्रहों का अशुभ फल समाप्त करने और विशेष मंत्र सिद्धि के लिये इस दिन नवग्रह, गायत्री एवं महामृत्युंजय आदि शुभ मंत्रों का जाप करें। दुर्गा चालीसा, विष्णु सहस्त्रनाम, श्रीमदभागवत गीता, गजेंद्र मोक्ष आदि का पाठ भी कर सकते है।
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♦ ग्रहण का सूतक अर्थात अशुद्ध समय: 
ग्रहण के समय सूतक काल मे बालकों, वृ्द्ध, रोगी व गर्भवती स्त्रियों को छोडकर अन्य लोगों को सूतक से पूर्व भोजनादि ग्रहण कर लेना चाहिए तथा सूतक समय से पहले ही दूध, दही, आचार, चटनी, मुरब्बा मे कुशा रख देना श्रेयस्कर होता है। ऎसा करने से ग्रहण के प्रभाव से ये अशुद्ध नहीं होते है। परन्तु सूखे खाने के पदार्थों मे कुशा डालने की आवश्यक्ता नहीं होती है।
♦ किस समय लगेगा सूतक?
16 सितंबर 2016 को रात्रि के 10 बजकर 24 मिनट पर सूतक लग जायेगा। रात्रि 12 बजकर 24 मिनट पर ग्रहण अपने चरम पर होगा और रात्रि काल मे ही 2 बजकर 23 मिनट पर सूतक समाप्त हो जायेगा।
♦ ग्रहण अवधि मे किये जाने वाले कार्य: 
ग्रहण के स्पर्श के समय मे स्नान, ग्रहण मध्य समय मे होम और देव पूजन और ग्रहण मोक्ष समय मे श्राद्ध और अन्न, वस्त्र, धनादि का दान और सर्व मुक्त होने पर स्नान करना चाहिए।
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♦ चंद्र ग्रहण : 
चंद्र ग्रहण वह स्थिति है जिसमे पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच आ जाती है। इस स्थिति मे चंद्रमा क पूरा या आधा भाग ढ़क जाता है। इसी को चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
चंद्र ग्रहण 2016 : वर्ष  2016 मे मे दो चन्द्र ग्रहण होंगे एक 23 मार्च और दूसरा 17 सितंबर 2016।
♦ चंद्र ग्रहण और हिन्दू धर्म: 
हिंदू धर्म मे चंद्र ग्रहण का धार्मिक दृष्टि से बहुत विशेष महत्त्व होता है। इसे हिन्दू धर्म मे शुभ नहीं माना जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार किसी अन्य कार्य की बजय ग्रहण काल मे ईश्वर की आराधना करनी चाहिए। माना जाता है कि गर्भवती महिला को ग्रहण के समय बाहर नहीं निकलना चाहिए। ऐसा करने से उसके गर्भ मे पल रहे बच्चे पर बुरा प्रभाव पड़ता है। हालांकि ये एक भोगौलिक घटना है, जिसमे इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है। लेकिन ग्रहों के  मुताबिक  का आपके जीवन पर प्रभाव पड़ता है इसी कारण ग्रहण के वक्त कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए। ग्रहो का जीवन पर प्रभाव पड़ता है। चंद्रग्रहण हमेशा से ही कुंवारो के लिए अच्छा नहीं होता है। वैसे भी सुंदरता का प्रतीक चंद्रमा को कभी कुंवारों को देखना नहीं चाहिए क्योंकि चंद्रमा श्रापित है। इसी वजह से कहा जाता है कि कुवांरों को ग्रहण के समय पूरा चांद कभी नही देखना चाहिए क्योंकि उनके वैवाहिक जीवन मे काफी कष्ट होता है तो वहीं दूसरी ओर शादी मे भी देरी होती है। पुराणों मे वर्णन है कि चंद्रमा को बड़ा घमंड था अपनी खूबसूरती का इसी कारण उसे श्राप मिला था और वो अपनी पत्नियो से दूर हो गया था। चांद का संबंध शीतलता से होता है लेकिन जब उस पर ग्रहण लगता है तो वो उग्र हो जाता है जिसका बुरा असर कुवांरे लड़के-लड़कियों पर पडता है इस कारण घर के बड़े ग्रहण को देखने से मना करते है। चंद्र ग्रहण के समय का आंखों पर असर होता है इसी  कारण चंद्रग्रहण को भी नहीं देखना चाहिए कुंवारे लोगों को क्योंकि ऐसा करने से उनकी आंखों पर असर होता है जो कि स्वास्थ्य के लिहाज से काफी बुरा है।
♦ चंद्रग्रहण के समय बरती जाने सावधानियां : 
हिंदू मान्यतानुसार चंद्र ग्रहण के समय कुछ भी खाना या पीना नहीं चाहिए। ऐसा करने से किसी भी प्रकार के बुरे प्रभाव से बचा जा सकता है। हिन्दू धर्म के अनुसार ग्रहण के समय गर्भवती महिलाओं का बाहर नहीं निकलना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ग्रहण के समय राहु और केतु का दुष्ट प्रभाव बढ़ जाता है। जिसके दुष्प्रभाव के कारण गर्भ मे पल रहे बच्चें को कई तरह की समस्याएं हो सकती है। चंद्र ग्रहण के समय सर में तेल लगाना, पानी पीना, मल- मूत्र त्याग, बाल मे कंघी, ब्रश आदि कार्य नहीं करना चाहिए। उज्जैन के पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया कि घर मे रखे अनाज या खाने को ग्रहण से बचाने के लिए दूर्वा या तुलसी के पत्ते का प्रयोग करना चाहिए। स्कन्द पुराण के अनुसार ग्रहण के समय दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है। देवी भागवत के अनुसार सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक मे वास करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है। ग्रहण समाप्त होने के बाद तुरंत स्नान कर लेना चाहिए। इसके साथ ही ब्राह्मण को अनाज या रुपया दान मे देना चाहिए। यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि उपरोक्त बातों का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है लेकिन धर्म के अनुसार इन बातों का जिक्र किया जाता है। भविष्यपुराण, नारदपुराण आदि कई पुराणों मे चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के समय अपनाने वाली हिदायतो के बारे मे बताया गया है।
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♦ सूर्य ग्रहण:
जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है तब सूर्य कुछ समय के लिए चंद्रमा के पीछे छुप जाता है। इसी स्थिति को वैज्ञानिक भाषा मे सूर्य ग्रहण कहते है।ग्रहण को हिन्दू धर्म मे शुभ नहीं माना जाता है।सूर्य ग्रहण के दिन बन रहे योग का विशेष प्रभाव दुनिया भर मे पड़ेगा। जीवन की गति और चाल केवल गृह ही चलते है। ऐसे मे गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के समय विशेष सावधानी रखने की अवश्यकता होती है।
बच्चे का जन्म यदि ग्रहण काल मे हुआ है तो उसका प्रभाव उसके जीवन पर अवश्य पड़ेगा, जैसा कि हम देखते है कि ग्रहण के समय ज्वार आता है व पशु-पक्षी पर होने वाले प्रभाव को देखते हुए ग्रहण फल अवश्य मिलता है। ग्रहण के वक्त जन्म लेने वाले बच्चे पर तत्काल असर नहीं होता है। ग्रहों का प्रभाव उसके जीवन मे युवावस्था मे ही पड़ेगा। इन ग्रहण को जो लोग नहीं मानते है, वे बाद मे पछताते हैं। ग्रहण का प्रभाव पशु-पक्षी पर हो सकता है तो मानव पर क्यों नहीं? ग्रहण का सीधा प्रभाव गर्भ मे पल रहे शिशु पर पड़ता है।
♦ ग्रहण के समय गर्भवती महिलाएं बरते कुछ सावधानियां :
→  गर्भवती महिलाओं को भगवान का ध्यान करना चाहिए। ग्रहण के वक्त पृथ्वी पर पड़ने वाली किरणों का असर बाहर ज्यादा होता है, न कि घर के अंदर। इसलिये बेहतर है गर्भवती घर के अंदर रहे। कोई भी धार्मिक ग्रंथ पढ़े।
→ कुछ भी खाना पीना नहीं चाहिए।ग्रहण के वक्त पानी पीने से गर्भवती को डीहाइड्रेशन हो जाता है। बच्चे की त्वचा सूख जाती है। ग्रहण के वक्त प्रकाश की किरणों मे विवर्तन होता है। इस कारण कई हजार सूक्ष्म जीवणु मरते है और कई हजार पैदा होते हैं। इसलिये पानी दूष‍ित हो सकता है।
→ ग्रहण को देखें नहीं।नग्न आंखों से ग्रहण नहीं देखना चाहिये। जी हां प्रकाश की किरणों मे होने वाले विवर्तन का प्रभाव आंखों पर पड़ सकता है। गर्भवती की आंखे अच्छी रहनी चाहिये।
→ शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के समय मल-मूत्र त्यागने से घर मे दरिद्रता आती है। इसलिए ग्रहण के समय मल मूत्र के त्याग से बचना चाहिए। इसलिए ग्रहण से पहले ऐसा भोजन नहीं करें कि ग्रहण के दौरान मल मूल करना पड़े।
→ ग्रहण के वक्त गर्भवती महिला को सोना नहीं चाहिये। बजाये उसके घर के अंदर ऊंचे स्वर मे मंत्रों का जाप किया जाना चाहिये। खुजली नहीं करनी चाहिए।
→ क्रोध और तनाव को स्वयं पर हावी न होने दें। प्रसन्न रहे। ग्रहण के समय किसी भी मंत्र का जाप लाभकारी होता है क्योंकि ग्रहण के वक्त पृथ्वी पर नकारात्मक ऊर्जा पड़ती है। मंत्रों के उच्चारण मे उठने वाली तरंगें घर के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती है। पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान अंधेरे मे अगर आप सुई का प्रयोग करेंगी, तो डोरा डालते वक्त आंखों पर स्ट्रेस पड़ेगा। गर्भावस्था मे किसी भी प्रकार का तनाव खराब होता है। ग्रहण के वक्त सुई का प्रयोग करने से होने वाले बच्चे के हृदय मे छिद्र हो सकता है।
→ किसी के ऊपर हाथ न उठाएं विशेषकर किसी बालक पर। झुकने वाले काम न करे।
→ योगासन अथवा व्यायाम नहीं करना चाहिए।ग्रहण के समय भोजन और तेल मालिश करने से व्यक्ति अगले जन्म में कुष्ठ रोग से पीड़‌ित हो सकता है।
→ चाकू से किसी भी वस्तु को काटना नहीं चाहिए।पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान कई स्थानों पर अंधेरा हो जाता है। धार-दार वस्तुएं गर्भवती महिला को हानि पहुंचा सकती है। इसीलिये इनका प्रयोग वर्जित है।
→ ताला अथवा कुड़ी नहीं लगानी चाहिए। नाड़ा नहीं बांधना चाहिए। ग्रहण के बाद स्नान कोई जरूरी नहीं, लेकिन अगर आप ग्रहण के वक्त बाहर रहे है, तो स्नान से विषाणुओं से दूर रह सकते हैं। वैसे भी गर्भ में पल रहा बच्चा हमेशा सेंसिटिव होता है।ग्रहण के बाद गर्भवती महिला को स्नान करना चाहिये। अन्यथा बच्चे को बीमारी लग सकती है।
→ शास्त्रो के अनुसार ग्रहण के समय मैथुन करने से व्यक्ति अगले जन्म मे सूअर की योनि में जन्म लेता है।
→ ग्रहण के समय किसी से धोखा या ठगी करने से अगले जन्म में सर्प की योनि मिलती है।
→ जीव-जंतु या किसी जीव जंतु को मारने से कीड़े-मकड़ों जैसी नीच योनियों में जन्म म‌िलता है।
उपरोक्त लिखी हिदायते कपोल कल्‍पनाएं नहीं है बल्कि जीवन का अटूट सच है जिसे गर्भवती स्त्रियों को स्वीकार करना चाहिए। ऐसा करने से स्वाभाविक रूप से स्वस्थ, सुन्दर और विचारवान संतान होगी। यह म‍त सोचिये कि गर्भवती महिलाएं अंधविश्वासी होती है, या इन बातों से डरती है। सच तो यह है कि वो अगर 9 महीने तक गर्भ मे पल रहे बच्चे की रक्षा कर सकती है, तो दो-चार घंटे के ग्रहण कौन सी बड़ी बात है।

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♦ धर्म के अनुसार सूर्य ग्रहण:
मत्स्य पुराण में सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण की कथा का संबंध राहु-केतु और उनके अमृत पाने की कथा से है। कथा के अनुसार जब मोहनी रूप धारण कर विष्णु जी देवताओं को अमृत और असुरों को वारुणी (एक प्रकार की शराब) बांट रहे थे तब एक दैत्य स्वरभानु रूप बदलकर देवताओं के बीच जा बैठा। वह सूर्य और चन्द्रमा के बीच बैठा था। जैसे ही वह अमृत पीने लगा सूर्य और चन्द्रमा ने उसे पहचान लिया और विष्णु जी को बता दिया।
विष्णु जी ने तत्काल उस राक्षस का सर धण से अलग कर दिया। राक्षस का सर राहु कहलाया और धण केतू। कहा जाता है कि जैसे राहु का सर अलग हुआ वह चन्द्रमा और सूर्य को लीलने के लिए दौड़ने लगा लेकिन विष्णुजी ने ऐसा नहीं होने दिया। उस दिन से माना जाता है कि जब भी सूर्य और चन्द्रमा निकट आते हैं तब उन्हें ग्रहण लग जाता है।
♦ सूर्य ग्रहण के समय क्या न करे: 
घर मे रखे अनाज या खाने को ग्रहण से बचाने के लिए दूर्वा या तुलसी के पत्ते का प्रयोग करना चाहिए। ग्रहण समाप्त होने के बाद तुरंत स्नान कर लेना चाहिए। इसके साथ ही ब्राह्मण को अनाज या रुपया दान मे देना चाहिए। ग्रहण के समय भोजन नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि गर्भवती स्त्री को ग्रहण नहीं देखना चाहिए। भगवान शिव को छोड़ अन्य सभी देवताओं के मंदिर ग्रहण काल में बंद कर दिए जाते है।
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♦ ग्रहण के वक्त क्या करे क्या न करे-
सूर्यग्रहण हो या चंद्रग्रहण, सूतक लगने के बाद से और सूतक समाप्त होने तक भोजन नहीं करना चाहिये। ग्रहण के वक्त पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए। ग्रहण के वक्त बाल नहीं कटवाने चाहिये। ग्रहण के सोने से रोग पकड़ता है किसी कीमत पर नहीं सोना चाहिए। ग्रहण के वक्त संभोग, मैथुन, आदि नहीं करना चाहिये। ग्रहण के वक्त दान करना चाहिये। इससे घर में समृद्ध‍ि आती है। कोइ भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिये और नया कार्य शुरु नहीं करना चाहिये। अगर संभव हो सके तो पके हुए भोजन को ग्रहण के वक्त ढक कर रखें, साथ ही उसमें तुलसी की पत्ती डाल दें। ग्रहण के वक्त किसी भी मंत्र का जाप एवं अपने ईष्ट देव की पूजा करना लाभकारी होता है। ग्रहण के वक्त पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये। ग्रहण के समय मूत्र एवं मल – त्‍यागने से घर मे दरिद्रता आती है। शौच करने से पेट में क्रीमी रोग पकड़ सकता है।
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♦ ग्रहण के समय तीर्थ स्थलों मे जल स्नान का महत्व :
स्नान के लिये प्रयोग किये जाने वाले जलों में समुद्र का जल स्नान के लिये सबसे श्रेष्ठ कहा गया है। ग्रहण मे समुद्र नदी के जल या तीर्थों की नदी में स्नान करने से पुन्य फल की प्राप्ति होती है। किसी कारण वश अगर नदी का जल स्नान करने के लिये न मिल पाये तो तालाब का जल प्रयोग किया जा सकता है.वह भी न मिले तो झरने क जल लेना चाहिए। इसके जल श्रेष्ठता मे इसके बाद भूमि में स्थित जल को स्नान के लिये लिया जा सकता है।
by Pandit Dayanand Shastri.
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