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जानिए की कब, कैसे और क्यों करे मंगला गोरी व्रत ???

श्रावण मास मे श्रावण सोमवार के दूसरे दिन यानी मंगलवार के दिन ‘मंगला गौरी व्रत’ मनाया जाता है। श्रावण माह के हर मंगलवार को मनने वाले इस व्रत को मंगला गौरी व्रत (पार्वतीजी) नाम से ही जाना जाता है। धार्मिक पुराणो के अनुसार इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओ को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अत: इस दिन माता मंगला गौरी का पूजन करके मंगला गौरी की कथा सुनना फलादायी होता है।

ऐसा माना जाता है कि श्रावण मास मे मंगलवार को आने वाले सभी व्रत-उपवास मनुष्य के सुख-सौभाग्य मे वृद्धि करता है । अपने पति व संतान की लंबी उम्र एवं सुखी जीवन की कामना के लिए महिलाएं खास तौर पर इस व्रत को करती है सौभाग्य से जुडे़ होने की वजह से नवविवाहित दुल्हनें भी आदरपूर्वक एवं आत्मीयता से इस व्रत को करती है।

जिन युवतियो और महिलाओ की कुंडली मे वैवाहिक जीवन मे कम‍ी‍ महसूस होती है अथवा शादी के बाद पति से अलग होने यातलाक हो जाने जैसे अशुभ योग निर्मित हो रहे हो, तो उन महिलाओ के लिए मंगलागौरी व्रत विशेष रूप से फलदायी है। अत: ऐसी महिलाओ को सोलह सोमवार के साथ-साथ मंगला गौरी का व्रत अवश्य रखना चाहिए।

इस वर्ष 2016 के श्रवण मास का  मंगला गौरी का  व्रत 9 अगस्त 2016  (षष्टी, तुला राशि और चित्र नक्षत्र मे) मंगलवार से शुरू होकर, दूसरा 16 अगस्त 2016 (त्रयोदशी,मकर राशि,उत्तराषाढा नक्षत्र मे) को इसका समापन होगा। ज्ञात हो कि एक बार यह व्रत प्रारंभ करने के पश्चात इस व्रत को लगातार पांच वर्षों तक किया जाता है। तत्पश्चात इस व्रत का विधि-विधान से उद्यापन कर देना चाहिए।

शास्त्रो के अनुसार जो नवविवाहित स्त्रियां सावन मास मे मंगलवार के दिन व्रत रखकर मंगला गौरी की पूजा करती है उनके पति पर आने वाला संकट टल जाता है और वह लंबे समय तक दांपत्य जीवन का आनंद प्राप्त करती है। आज यही शुभ व्रत है। इस व्रत से दोष की शांति कर सकते है और दांपत्य जीवन को खुशहाल बना सकते है। मंगला गौरी व्रत श्रावण मास मे पडने वाले सभी मंगलवार को रखा जाता है।  श्रावण मास में आने वाले सभी व्रत-उपवास व्यक्ति के सुख- सौभाग्य मे वृ्द्धि करते है। सौभाग्य से जुडे होने के कारण इस व्रत को विवाहित महिलाएं और नवविवाहित महिलाएं करती है। इस उपवास को करने का उद्धेश्य अपने पति व संतान के लम्बें व सुखी जीवन की कामना करना है। 

 इस व्रत मे मंगलवार के दिन शिव की पत्नी गौरी अर्थात् पार्वती  की पूजा की जाती है। इसी कारण इसे मंगलागौरी-व्रत कहते है। यह व्रत विवाह पश्चात् प्रत्येक विवाहिता द्वारा पाँच वर्षों तक करना शुभफलदायक माना गया है। इस व्रत को विवाह के प्रथम श्रावण में पिता के घर (पीहर) में तथा शेष चार वर्ष पति के घर (ससुराल) में करने का विधान है।

प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त मे उठकर तथा नित्यकर्मो से निवृत हो नये वस्त्र धारणकर घर के ईशानकोण (पूर्व एवं उत्तर दिशा के बीच का कोण) में पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुखकर शुद्ध आसन ग्रहण कर निम्न संकल्प करना चाहिए – ‘मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये।’ उक्त प्रकार संकल्प कर शुद्ध आसन पर भगवती गौरी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए तथा उनके सम्मुख सोलह बत्तियों वाला घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

तत्पश्चात् स्वस्तिवाचन एवं गणेश-पूजन कर सोलह-सोलह प्रकार के पुष्प, मालाएँ, दूर्वादल, वृक्ष के पत्ते, धतूरे के पत्ते, अनाज, सुपारी, पान, इलाइची, धनिया तथा जीरा आदि भगवती गौरी को समर्पित करे। ताँबे के पात्र में जल, अक्षत एवं पुष्प रखकर माँ गौरी को अघ्र्य दे प्रणाम करे तथा सौभाग्य-सूचक वस्तुएँ एक बाँस की टोकरी में रखकर श्रेष्ठ ब्राह्मण को दान करे। पूजा के अन्त मे सोलहमुखी दीपक से भगवती गौरी की आरती कर उक्त प्रतिमा को किसी पवित्र तालाब, सरोवर या कूएँ में विसर्जित करना चाहिए। ऐसा करने वाली व्रती स्त्री को अखण्‍ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार उक्त व्रत करते हुए पाँचवे वर्ष इसका उद्यापन करना चाहिए अन्यथा यह
व्रत निष्फल हो जाता है। चार वर्ष के सोलह मंगलवारों के पश्चात् पाँचवे वर्ष के किसी भी मंगलवार को उद्यापन किया जा सकता है। उद्यापन मे गौरी पूजा के पश्चात् श्रेष्ठ ब्राह्मण द्वारा हवन करवाना चाहिए तथा सोलह ब्राह्मणो को उनकी पत्नी सहित भोजन कराकर सौभाग्यपिटारी एवं दक्षिणा प्रदान करे। अन्त मे अपनी सासजी को सोलह लड्डुओं का वायना देकर उनके चरण स्पर्श कर अक्षयसौभाग्य का आर्शीबाद प्राप्त करना चाहिए।

इस व्रत को प्रत्येक विवाहिता को करना आवश्‍यक माना गया है। इस व्रत को करने से पति से कभी भी वियोग नहीं होता तथा पति-पत्नी दोनों को ही दीर्घ आयु व
सर्वसुख की प्राप्ति होती है। पति-पत्‍नी दोनों का प्रेम अक्षय, अटल व चिर-‍स्‍थाई बना रहता है।

» जानिए पुरूष क्या करे मंगला गोरी व्रत मे ??

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस व्रत से मंगलिक योग का कुप्रभाव भी काम होता है।पुरूषो को इस दिन मंगलवार का व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए। इससे उनकी कुण्डली में मौजूद मंगल का अशुभ प्रभाव कम होता है और दांपत्य जीवन मे खुशहाली आती है।

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विवाह के पांच वर्ष तक प्रत्येक श्रावण मास मे मंगला गोरी यह व्रत करना चाहिए। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-

♦ सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर यह संकल्प लें-

मै पुत्र, पौत्र, सौभाग्य वृद्धि एवं श्री मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए मंगला गौरी व्रत करने का संकल्प लेती हूं। इसके बाद मां मंगला गौरी(पार्वतीजी) का चित्र या प्रतिमा एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। चित्र के सामने आटे से बना एक घी का दीपक जलाएं, जिसमें सोलह बत्तियां हो।

♦ इसके बाद यह मंत्र बोले-

 “कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
 नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्।। “

अब माता मंगला गौरी का षोडशोपचार पूजन करे। पूजन के बाद माता को सोलह माला, लड्डू, फल, पान, इलाइची, लौंग, सुपारी, सुहाग का सामान व मिठाई चढ़ाएं। उसके बाद मंगला गौरी की कथा सुने।

» इस प्रकार करे पूजन : 

यह मंत्र बोलते हुए माता मंगला गौरी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है। माता के पूजन के पश्चात उनको (सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए) 16 मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग क‍ी सामग्री, 16 चुडि़यां तथा मिठाई चढ़ाई जाती है। इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज धान्य (जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि होना चाहिए। पूजन के बाद मंगला गौरी की कथा सुनी जाती है।

» मां मंगला गौरी कथा  :

पुराने समय की बात है। एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी खूबसूरत थी और उनके पास बहुत सारी धन-दौलत थी। लेकिन उनको कोई संतान नहीं थी, इस वजह से पति-पत्नी दोनो ही हमेशा दुखी रहते थे। फिर ईश्वर की कृपा से उनको पुत्र प्राप्ति हुई, लेकिन वह अल्पायु था। उसे यह श्राप मिला हुआ था कि सोलह वर्ष की उम्र मे सर्प दंश के कारण उसकी मौत हो जाएगी।

ईश्वरीय संयोग से उसकी शादी सोलह वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई, जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी। परिणामस्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था, जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती। इसी कारण धरमपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त होती है।

यह मंगला गौरी व्रत नियमानुसार करने से प्रत्येक मनुष्य के वैवाहिक सुख मे बढ़ोतरी होकर पुत्र-पौत्रादि भी अपना जीवन सुखपूर्वक गुजारते है। ऐसी है इस मंगल गोरी व्रत की महिमा ।

» कैसे करे मंगला गौरी विधि :

♦मंगला गौरी उपवास रखने के लिये सुबह स्नान आदि कर व्रत का प्रारम्भ किया जाता है।

♦  एक चौकी पर सफेद लाल कपडा बिछाना चाहिये ।

♦ सफेद कपडे पर चावल से नौ ग्रह बनाते है, तथा लाल कपडे पर षोडश माताएं गेंहू से बनाते है।

♦ चौकी के एक तरफ चावल और फूल रखकर गणेश जी की स्थापना की जाती है।

♦  दूसरी और गेंहू रख कर कलश स्थापित करते है।

♦  कलश मे जल रखते है।

♦ आटे से चौमुखी दीपक बनाकर कपडे से बनी 16-16 तार कि चार बतियां जलाई जाती है।

♦ सबसे पहले श्री गणेश जी का पूजन किया जाता है।

♦पूजन मे श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लोंग, पान,चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, —मेवा और दक्षिणा चढाते है।

♦ इसके पश्चात कलश का पूजन भी श्री गणेश जी की पूजा के समान ही किया जाता है।

♦फिर नौ ग्रहों तथा सोलह माताओं की पूजा की जाती है. चढाई गई सभी सामग्री ब्राह्माण को दे दी जाती है ।

♦मंगला गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी व काजल लगाते है. श्रंगार की सोलह वस्तुओं से माता को सजाया जाता है ।

♦ सोलह प्रकार के फूल- पत्ते माला चढाते है, फिर मेवे, सुपारी, लौग, मेंहदी, शीशा, कंघी व चूडियां चढाते है ।

♦ अंत मे मंगला गौरी व्रत की कथा सुनी जाती है ।

♦ कथा सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को सोलह लड्डु देती है । इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती है ।अंतिम व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर मे  विर्सिजित करदिया जाता है ।

» मंगला गोरी व्रत के उद्यापन की  विधि  : 

श्रावण माह के मंगलवारो का व्रत करने के बाद उसका उद्यापन करना चाहिए ।उद्यापन मे खाना वर्जित है। मेहंदी लगाकर पूजा करनी चाहिए । पूजा चार ब्राह्मणो  से करनी चाहिए । एक चौकी के चार कोनो पर केले के चार थम्ब लगाकर मण्डप पर एक ओढ़नी बांधनी चाहिए । साड़ी, नथ व सुहाग की सभी वस्तुएँ रखनी चाहिएँ ।हवन के उपरांत कथा सुनकर आरती करनी चाहिए । चाँदी के बर्तन मे आटे के सोलह लड्डू, रूपया व साड़ी सासुजी को देकर उनके पाँव छूने  चाहिएँ । पूजा कराने वाले पंडितो को भी धोती ब अंगोछा देना चाहिए । अगले दिन सोलह ब्राह्मणों को जोड़े सहित भोजन करवाकर धोती, अंगोछा तथा ब्राह्मणियों को, सुहाग-पिटारी देनी चाहिए। सुहाग पिटारी मे सुहाग का समान व साड़ी होती है । इतना सब करने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए ।

» मंगला गौरी(मंगल) व्रत और ज्योतिष : 

ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कई प्रकार के दोष बताए गए है जैसे कालसर्प योग, पितृदोष, नाड़ीदोष, गणदोष, चाण्डालदोष, ग्रहणयोग, मंगलदोष या मांगलिक दोष आदि। इनमे मंगल दोष एक ऐसा दोष है जिसकी वजह से व्यक्ति को विवाह संबंधी परेशानियो, रक्त संबंधी बीमारियों और भूमि-भवन के सुख मे कमियां रहती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नौ ग्रह बताए गए है जो कुंडली मे अलग-अलग स्थितियो के अनुसार हमारा जीवन निर्धारित करते है।  70% लोग मंगल दोष से प्रभावित या पीड़ित मिलेंगे। बिना सोचे समझे या जाने ज्योतिष के फंडे न लगाये सिर्फ लैपटॉप लेके सॉफ्टवेयर से कुंडली बना लेने से राशी भाव और गृह देख लेने मात्र से कोई ज्योतिषी नहीं हो जाता, उसके लिये गहरे ज्ञान की आवश्यकता भी होती है ।  हमे जो भी सुख-दुख, खुशियां और सफलताएं या असफलताएं प्राप्त होती है, वह सभी ग्रहों की स्थिति के अनुसार मिलती है। इन नौ ग्रहों का सेनापति है मंगल ग्रह।मंगल ग्रह से ही संबंधित होते है मंगल दोष। मंगल दोष ही व्यक्ति को मंगली बनाता है।

जिन युवतियो और महिलाओं की कुंडली मे  वैवाहिक जीवन में कम‍ी‍ महसूस होती है, अथवा शादी के बाद पति से अलग होने या तलाक हो जाने जैसे अशुभ योग निर्मित हो रहे हो, तो उन महिलाओं के लिए मंगला गौरी व्रत विशेष रूप से फलदायी है। अत: ऐसी महिलाओं को सोलह सोमवार के साथ-साथ मंगला गौरी का व्रत अवश्य रखना चाहिए।

» पाप ग्रह है मंगल :

मंगल ग्रह को पाप ग्रह माना जाता है। ज्योतिष मे मंगल को अनुशासन प्रिय, घोर स्वाभिमानी, अत्यधिक कठोर माना गया है। सामान्यत: कठोरता दुख देने वाली ही होती है। मंगल की कठोरता के कारण ही इसे पाप ग्रह माना जाता है। मंगलदेव भूमि पुत्र है और यह परम मातृ भक्त है। इसी वजह से माता का सम्मान करने वाले सभी पुत्रों को विशेष फल प्रदान करते है। मंगल बुरे कार्य करने वाले लोगों को बहुत बुरे फल प्रदान करता है।

» जानिए मंगल के प्रभाव:

मंगल से प्रभावित कुंडली को दोषपूर्ण माना जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली मे मंगल अशुभ फल देने वाला होता है उसका जीवन परेशानियों में व्यतीत होता है। अशुभ मंगल के प्रभाव की वजह से व्यक्ति को रक्त संबंधी बीमारियां होती है। साथ ही, मंगल के कारण संतान से दुख मिलता है, वैवाहिक जीवन परेशानियो भरा होता है, साहस नहीं होता, हमेशा तनाव बना रहता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली मे मंगल ज्यादा अशुभ प्रभाव देने वाला है तो वह बहुत कठिनाई से जीवन गुजरता है। मंगल उत्तेजित स्वभाव देता है, वह व्यक्ति हर कार्य उत्तेजना में करता है और अधिकांश समय असफलता ही प्राप्त करता है।  मंगल ग्रह दोष से मिलने वाली रोग, पीड़ा और बाधा दूर करने के लिए मंगलवार का व्रत बहुत ही प्रभावकारी माना जाता है,  कितु दैनिक जीवन की आपाधापी मे चाहकर भी अनेक लोग धार्मिक उपायो को अपनाने में असमर्थ हो जाते हैं। इसलिए यहां मंगलवार के लिए ऐसे उपाय बताए जा रहे हैं, जिनको आप दिनचर्या के दौरान अपनाकर मंगल दोष शांति कर सकते है –

अगर आपकी कुण्डली मे मंगल उच्च का और शुभ हो तो मंगलवार के दिन हनुमान मंदिर मे बताशे चढ़ाएं और बहते जल या नदी में बहा दे। मंगल दोष के बुरे असर से बचाव होगा ।

अगर कुण्डली मे मंगल दोष का निवारण ग्रहो के मेल से नहीं होता है तो व्रत और अनुष्ठान द्वारा इसका उपचार करना चाहिए। मंगला गौरी और वट सावित्री का व्रतसौभाग्य प्रदान करने वाला है । अगर जाने अनजाने मंगली कन्या का विवाह इस दोष से रहित वर से होता है तो दोष निवारण हेतु इस व्रत का अनुष्ठान करना लाभदायी होता है ।

जिस कन्या की कुण्डली मे मंगल दोष होता है वह अगर विवाह से पूर्व गुप्त रूप से घट से अथवा पीपल के वृक्ष से विवाह करले फिर मंगल दोष से रहित वर से शादी करे तो दोष नहीं लगता है। प्राण प्रतिष्ठित विष्णु प्रतिमा से विवाह के पश्चात अगर कन्या विवाह करती है तब भी इस दोष का परिहार हो जाता है । 

मंगलवार के दिन व्रत रखकर सिन्दूर से हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से मंगली दोष शांत होता है । कार्तिकेय जी की पूजा से भी इस दोष में लाभ मिलता है ।  महामृत्युजय मंत्र का जप सर्व बाधा का नाश करने वाला है ।इस मंत्र से मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक जीवन में मंगल दोष का प्रभाव कम होता है । लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल अमंगल दूर होता है। जहां तक हो मांगलिक से मांगलिक का संबंध करे।

ऐसे मे अन्य कई कुयोग है। जैसे वैधव्य विषागना आदि दोषों को दूर रखे। यदिऐसी स्थिति हो तो ‘पीपल’ विवाह, कुंभ विवाह, सालिगराम विवाह तथा मंगल यंत्र कापूजन आदि कराके कन्या का संबंध अच्छे ग्रह योग वाले वर के साथ करे। मंगल यंत्र विशेष परिस्थिति में ही प्रयोग करे। देरी से विवाह, संतान उत्पन्न की समस्या, तलाक, दाम्पत्य सुख में कमी एवं कोर्ट केस इत्या‍दि में ही इसे प्रयोग करें। छोटे कार्य के लिए नहीं।

» विशेष सावधानी :

विशेषकर जो मांगलिक है उन्हें इसकी पूजा अवश्य करनी चाहिए। चाहे मांगलिक दोष भंग आपकी कुंडली में क्यों न हो गया हो फिर भी मंगल पूजन यंत्र मांगलिको को सर्वत्र जय, सुख, विजय और आनंद देता है। मंगलवार का दिन हनुमान जी की आराधना का विशेष दिन माना जाता है। इसके साथ ही ज्योतिष के अनुसार ये दिन मंगल ग्रह के निमित्त पूजा करने का विधान बताया गया है। मंगल देव की खास पूजा उन लोगों को करनी चाहिए जिनकी कुंडली में मंगल दोष होता है।  यदि आपकी जन्म कुंडली में मंगल दोष है तो निश्चित ही आपको बहुत सारी परेशानियां घेरे रहती होगी। समय पर विवाह नहीं होता, धन के संबंध में समस्याएं चलती रहती है, घर-जमीन-जायदाद को लेकर तनाव झेलना पड़ता है। मंगल भूमि पुत्र है और भूमि से संबंधित कार्य करने वालों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। आप प्रापर्टी के संबंध में सौदे या व्यवसाय करते है और अच्छा लाभ कमाना चाहते है तो मंगल देवता को खुश रखना बहुत जरूरी है।

♦ मंगली कन्याये गौरी पूजन तथा श्रीमद्भागवत के 18 वें अध्याय के नवें श्लोक का जप अवश्य  करे ।  प्रत्येक मंगलवार को मंगल स्नान करे ।  विवाह के समय कुंडली मिलान अवश्य करे ।

by Pandit Dayanand Shastri.

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