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इन वास्तु दोष का रखेंगे ध्यान तो बिजनेस/ व्यापार मे नहीं होगा घाटा…

यदि आप सफल बिजनेसमैन बनना चाहते है तो इसमे सालो लग सकते है। वहीं आपकी एक छोटी सी गलती से बिजनेस को बड़ा घाटा हो सकता है। कई बार वास्तुदोष भी इसका कारण होता है वास्तुविद अनुसार वास्तु शास्त्र के सिद्धांत सिर्फ घर पर ही नहीं बल्कि ऑफिस व दुकान पर भी लागू होते है। यदि दुकान या ऑफिस मे वास्तु दोष हो तो व्यापार-व्यवसाय मे सफलता नहीं मिलती। किस दिशा मे बैठकर आप लेन-देन आदि कार्य करते है, इसका प्रभाव भी व्यापार मे पड़ता है। दुनिया मे बहुत सारे लोग ऐसे है जो वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों को मानते है और उसी हिसाब से अपना घर और कारोबार शुरू करते हैं। लोग घर और दुकानों के नक्शे वास्तुशास्त्र के अनुसार बनाते है।
वास्तु शास्त्र प्रकृति के साथ सामंजस्य एवं समरसता रखकर भवन निर्माण के सिद्धांतो का प्रतिपादन करता है। ये सिद्धांत मनुष्य जीवन से गहरे जुड़े है।
♦अथर्ववेद मे कहा गया है-
 ” पन्चवाहि वहत्यग्रमेशां प्रष्टयो युक्ता अनु सवहन्त।
   अयातमस्य दस्ये नयातं पर नेदियोवर दवीय ॥ 10 /8 ॥ “
सृष्टिकर्ता परमेश्वर पृथ्वी, जल, तेज (अग्नि), प्रकाश, वायु व आकाश को रचकर, उन्हे संतुलित रखकर संसार को नियमपूर्वक चलाते हैं। मननशील विद्वान लोग उन्हे अपने भीतर जानकर संतुलित हो प्रबल प्रशस्त रहते है। इन्हीं पांच संतुलित तत्वों से निवास गृह व कार्य गृह आदि का वातावरण तथा वास्तु शुद्ध व संतुलित होता है, तब प्राणी की प्रगति होती है।
♦ ऋग्वेद मे कहा गया है-
” ये आस्ते पश्त चरति यश्च पश्यति नो जनः। तेषां सं हन्मो अक्षणि यथेदं हर्म्थ तथा। प्रोस्ठेशया वहनेशया नारीर्यास्तल्पशीवरीः। स्त्रिायो या : पुण्यगन्धास्ता सर्वाः स्वायपा मसि ।। “
हे गृहस्थ जनो । गृह निर्माण इस प्रकार का हो कि सूर्य का प्रकाश सब दिशाओ से आए तथा सब प्रकार से ऋतु अनुकूल हो, ताकि परिवार स्वस्थ रहे। राह चलता राहगीर भी अंदर न झांक पाए, न ही गृह मे वास करने वाले बाहर वालों को देख पाएं। ऐसे उत्तम गृह मे गृहिणी की निज संतान उत्तम ही उत्तम होती है। वास्तु शास्त्र तथा वास्तु कला का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार वेद और उपवेद हैं। भारतीय वाड्.मय मे आधिभौतिक वास्तुकला (आर्किटेक्चर) तथा वास्तु-शास्त्र का जितना उच्चकोटि का विस्तृत विवरण ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद मे उपलब्ध है, उतना अन्य किसी साहित्य मे नहीं।
वास्तु शास्त्र मे इन्हीं पॉंच महाभूतो का अनुपात मे तालमेल बैठाकर प्रयोग कर जीवन मे चेतना का विकास संभव है।
(1) क्षिति/धरती/पृथ्वी
(2) जल
(3) पावक
(4) गगन
(5) समीरा अर्थात् , पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश।
चुंबकीय उत्तर क्षेत्र कुबेर का स्थान माना जाता है। जो कि धन वृद्धि के लिए शुभ है। यदि कोइ व्यापारिक वार्ता, परामर्श, लेन-देन या कोई बड़ा सौदा करे तो मुख उत्तर की ओर रखे। इससे व्यापार मे काफी लाभ होता है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है कि इस ओर चुंबकीय तरंगे विद्यमान रहती हैं जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएं सक्रिय रहती हैं और शुद्ध वायु के कारण भी अधिक ऑक्सीजन मिलती है जो मस्तिष्क को सक्रिय करके स्मरण शक्ति बढ़ाती हैं। 
सक्रियता और स्मरण शक्ति व्यापारिक उन्नति और कार्यों को सफल करते है। व्यापारियो के लिए चाहिए कि वे जहां तक हो सके व्यापार आदि मे उत्तर दिशा की ओर मुख रखे तथा कैश बॉक्स और महत्वपूर्ण कागज चैक-बुक आदि दाहिनी ओर रखे। इन उपायों से धन लाभ तो होता ही है साथ ही समाज मे मान-प्रतिष्ठा भी बढ़ती है।
वास्तुशास्त्र मे पूर्व,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण तथा अग्रेय,नैऋत्य,वायव्य एवं ईशान्य-इन आठों ही दिशाओं-उपदिशाओं का महत्व है। वास्तुशास्त्र के आधार पर किसी को प्लॉट,बंगला,मकान या बड़ी इमारत बनानी हो या रहने के लिए जाना हो तो सर्वप्रथम उस जगह की दिशाओं को विचार करना आवश्यक है। प्लॉट,बंगला,इमारत या इमारत के अंदर के ब्लॉक का प्रवेशद्वार किस दिशा मे है- इसका विचार करना चाहिए। पूर्व दिशा आमतौर पर सूर्योदयवाली मानी जाती है किंतु केवल सूर्योदय की दिशा को पूर्व दिशा न मानकर दिशाबोधक यंत्र के माध्यम से ही दिशा निश्चित करनी चाहिए। पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द घूमती रहने से उदित सूर्य की पूर्व दिशा मे थोड़ा अंतर हो सकता है। किंतु चुंबकीय गुणोवाले दिशाबोधक यंत्र के उपयोग से पूर्व,पश्चिम,उत्तर, दक्षिण के संबंध मे अचूक अनुमान लगाया जा सकता है।
♦ दुकान या ऑफिस या कोई भी व्यापारिक संस्थान पूर्व दिशा मे है तो यह बहुत उत्तम है |
♦ यदि  पश्चिम दिशा मे है तो व्यवसाय मे कभी तेजी और कभी मंदी रहेगी |
♦ उत्तरमुखी दुकान या ऑफिस या कोई भी व्यापारिक संस्थान से धन-धान्य की वृद्धि होती है |  मान सम्मान बढ़ता है  |
♦ दक्षिण  दिशा मे दुकान या ऑफिस या कोई भी व्यापारिक संस्थान हो तो जातक की दशा अगर ख़राब हो तो व्यापार मे बाधाएं आती है | लेकिन अगर जातक की कुंडली मे राहु बलिष्ट या शुभ हो तो दक्षिण दिशा मे दुकान या ऑफिस या कोई भी व्यापारिक संस्थान अत्यंत लाभ देता है |
♦ अगर आपकी दुकान या ऑफिस या  व्यापारिक संस्थान मे  वास्तु दोष हो अर्थात दुकान की दीवारे तिरछी हो, एक छोटी और एक बड़ी दीवार हो तो मालिक को अशांति बनी रहेगी, व्यापार नहीं चलेगा | इसके लिए वास्तुवि से परामर्श करके विधि पूर्वक श्रीयंत्र की स्थापना करनी चाहिए |
♦ दुकान या ऑफिस के प्रवेश द्वार पर कोई अवरोध नहीं होना चाहिए, यदि है तो  समतल होना चाहिए | ढलान वाला अवरोध है तो लक्ष्मी स्थिर नहीं रहेगी |
♦ दुकान या ऑफिस या किसी  भी व्यापारिक संस्थान का मुहूर्त स्थिर लग्न मे करना चाहिए | ज्योतिषाचार्य से चन्द्र और नक्षत्र आदि का विचार करके मुहूर्त निकलवाना चाहिए |
♦ शुभ मुहूर्त मे सबसे पहले अपने कुलदेवता, स्थान देवता, इष्ट देवता का ध्यान करते हुए विघ्न नाशक भगवन गणपति की स्थापना करनी चाहिए|
♦ गौमुखी दुकान धन और लाभ की दृष्टि से उत्तम होती है |
♦ किसी बीम के नीचे ऑफिस या दुकान नहीं होनी चाहिए, यह जातक के लिए प्रतिकूल परिस्थिति पैदा करेगा और चलते काम मे रूकावट देगा, अगर संभव नहीं है तो बीम के दोनो ओर  हरे रंग के गणपति लगाये |
♦ कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री (बिल्डर) के लिए वास्तु टिप्स बिल्डिंग की वेस्ट या ईस्ट डायरेक्शन मे अपनी साइट ऑफिस बनाएं प्लॉट के नॉर्थ-ईस्ट दिशा मे रॉ-मैटेरियल ना रखे।
♦ दक्षिण-पश्चिम मे अधिक खुला स्थान घर के पुरूष सदस्यों के लिए अशुभ होता है, उद्योग धंधों मे यह वित्तीय हानि और भागीदारों मे झगड़े का कारण बनता है।
♦घर या कारखाने का उत्तर-पूर्व (ईशान) भाग बंद होने पर ईश्वर के आशीर्वाद का प्रवाह उन स्थानों तक नहीं पहुंच पाता। इसके कारण परिवार मे तनाव, झगड़े आदि पनपते हैं और परिजनों की उन्नति विशेषकर गृह स्वामी के बच्चों की उन्नति अवरूद्ध हो जाती है। ईशान मे शौचालय या अग्नि स्थान होना वित्तीय हानि का प्रमुख कारण है ।
♦ व्यापार मे आने वाली बाधाओं और किसी प्रकार के विवाद को निपटाने के लिए घर मे क्रिस्टल बॉल एवं पवन घंटियां लटकाएं।

by Pandit Dayanand Shastri

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