शारदीय नवरात्री मे कैसे करे माँ की आराधना?

भारतीय समाज मे नवरात्रो का और विशेष रूप से हिन्दू समुदाय मे विशेष महत्व है। ‘नवरात्र’ को विश्व की आदि शक्ति दुर्गा की पूजा का पावन पर्व माना गया है। शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से शुरू होकर नवमी तक चलते है और शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की प्रतिमाएं बनाकर प्रतिपदा से नवमी तक उनकी बड़ी निष्ठा से पूजा की जाती है व व्रत रखा जाता है तथा दशमी के दिन इन प्रतिमाओं को गंगा या अन्य पवित्र नदियों मे विसर्जित कर दिया जाता है। नवरात्र नवशक्तियों से युक्त हैं और हर शक्ति का अपना-अपना अलग महत्व है।
इन  नवरात्र मे कन्या या कुमारी पूजन किया जाता है. कुमारी पूजन मे दस वर्ष तक की कन्याओं का विधान है. नवरात्रि के पावन अवसर पर अष्टमी तथा नवमी के दिन कुमारी कन्याओं का पूजन किया जाता है । नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व मे माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है।
नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनो मे लोग नियमित रूप से पूजा पाठ और व्रत का पालन करते हैं । दुर्गा पूजा के नौ दिन तक देवी दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक किर्या पौराणिक कथाओं मे शक्ति की अराधना का महत्व व्यक्त किया गया है। इसी आधार पर आज भी माँ दुर्गा जी की पूजा संपूर्ण भारत वर्ष मे बहुत हर्षोउल्लास के साथ की जाती है। वर्ष मे दो बार की जाने वाली दुर्गा पूजा एक चैत्र माह मे और दूसरा आश्विन माह मे की जाती है।
चैत्र नवरात्र पूजन का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है। शुक्ल पक्षकी प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है। व्रत का संकल्प लेने के पश्चात मिटटी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है। इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है। घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है तथा “दुर्गा सप्तशती” का पाठ किया जाता है। पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए। दुर्गा पूजा के साथ इन दिनों मे तंत्र और मंत्र के कार्य भी किये जाते है। बिना मंत्र के कोई भी साधाना अपूर्ण मानी जाती है।
हर व्यक्ति को सुख -शान्ति पाने के लिये किसी न किसी ग्रह की उपासना करनी ही चाहिए। माता के इन नौ दिनो मे ग्रहों की शान्ति करना विशेष लाभ देता है। इन दिनों मे मंत्र जाप करने से मनोकामना शीघ्र पूरी होती है। नवरात्रे के पहले दिन माता दुर्गा के कलश की स्थापना कर पूजा प्रारम्भ की जाती है। नवरात्र मे देवी की साधना और अध्यात्म का अद्भुत संगम होता है। देवी दुर्गा की स्तुति , कलश स्थापना, सुमधुर घंटियों की आवाज, धूप-बत्तियों की सुगंध- नौ दिनों तक चलने वाला आस्था और विश्वास का अद्भुत त्यौहार है। नवरात्री का पर्व वर्ष मे दो बार मनाया जाता है। एक चैत्र माह मे, तो दूसरा आश्विन माह मे। आश्विन महीने की नवरात्र मे रामलीला, रामायण, भागवत पाठ, अखंड कीर्तन जैसे सामूहिक धार्मिक अनुष्ठान होते है। यही वजह है कि नवरात्र के दौरान हर कोई एक नए उत्साह और उमंग से भरा दिखाई पड़ता है। देवी दुर्गा की पवित्र भक्ति से भक्तों को सही राह पर चलने की प्रेरणा मिलती है। इन नौ दिनों मे मानव कल्याण मे रत रहकर, देवी के नौ रुपों की पूजा की जाय तो देवी का आशीर्वाद मिलता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
तंत्र-मंत्र मे रुचि रखने वाले व्यक्तियो के लिये यह समय ओर भी अधिक उपयुक्त रहता है। गृहस्थ व्यक्ति भी इन दिनो मे माता की पूजा आराधना कर अपनी आन्तरिक शक्तियो को जाग्रत करते है। इन दिनो मे साधकों के साधन का फल व्यर्थ नहीं जाता है। मां अपने भक्तों को उनकी साधना के अनुसार फल देती है. इन दिनों मे दान पुण्य का भी बहुत महत्व कहा गया है। नवरात्रोंका स्वास्थ्य की दृष्ट से भी बड़ा महत्व है। पित्त को और शरीर को शांत करने वाली सब्जियां जा रही  होती है तथा शरीर को एक बदलाव के दौर से गुजरना पड़ता है। इसलिए इन नवरात्रों मे रखे गए व्रत और दूध व फलाहार का बहुत महत्व है। जो लोग सही रुप से व्रत रखते है, उन्हे मौसम मे बदलाव के कारण साधारणतया, सर्दी, खांसी व कफ और पित्त की समस्या नहीं होती।
।।शास्त्र -वचन ।।
स्त्रीषु नर्मविवाहे च वृत्तयर्थे प्राणसंकटे ।
गोब्राह्मणार्थे हिंसायां नानृतं स्याज्जुगुप्सितम् ।।
अर्थ
-नौ स्थानों पर असत्य निन्दनीय नहीं है ।1-स्त्रियों के प्रसन्न करने के लिए 2-हा-परिहास मे 3-विवाह मे 4-कन्या की प्रशंसा मे 5-आजीविका की रक्षा के लिए 6-प्राणसंकट उपस्थित होने पर 7-गौ रक्षार्थ 8-ब्राह्मण के हित के लिए 9-किसी को मृत्यु से वचाने के लिए।

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♦ इस नवरात्री मे माँ भगवती की पूजा करके उन्हें प्रसन्न करके सुख सम्पदा ऐश्वर्य की प्राप्ति की जा सकती है। इसका उल्लेख दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्त्रोत के श्लोक संख्या 18,19,20 मे किया गया है।
♦ माँ के भक्त, श्री दुर्गा अष्टोत्तरशत नाम को भोज पत्र मे लिख कर ताबीज़ मे भी धारण कर सकते हैं ।
♦ प्रथम श्लोक मे दिए सती से लेकर श्लोक संख्या 15 तक लिखे।
♦ लिखने की स्याही की सामग्री स्तोत्र के अंत मे ही वर्णित है।
शंकरजी पार्वतीजी से कहते हैं- कमलानने! अब मै अष्टोत्तरशत (108) नाम कावर्णन करता हूँ, सुनो; जिसके प्रसाद (पाठ या श्रवण) मात्र से परम साध्वी भगवतीदुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं॥1॥सती (दक्ष की बेटी), साध्वी (आशावादी), भवप्रीता (भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली), भवानी (ब्रह्मांड की निवास), भवमोचनी (संसारबंधनों से मुक्त करने वाली), आर्या, दुर्गा, जया, आद्य (शुरुआत की वास्तविकता), त्रिनेत्र (तीन आँखों वाली), शूलधारिणी, पिनाकधारिणी (शिव का त्रिशूल धारण करने वाली), चित्रा (सुरम्य), चण्डघण्टा (प्रचण्ड स्वर से घण्टानाद करने वाली), महातपा: (भारी तपस्या करने वाली), मन: (मनन-शक्ति), बुद्धि: (बोधशक्ति), अहंकारी (अहंताका आश्रय), चित्तरूपा (वह जो सोच की अवस्था मे है), चिता, चिति: (चेतना), सर्वमन्त्रमयी, सत्ता (सत्-स्वरूपा, जो सब से ऊपर है), सत्यानन्दस्वरूपिणी (अनन्त आनंद का रुप), अनन्ता (जिनके स्वरूप का कहीं अन्त नहीं), भाविनी (सबको उत्पन्न करने वाली, ख़ूबसूरत औरत), भाव्या (भावना एवं ध्यान करने योग्य), भव्या (कल्याणरूपा, भव्यता के साथ), अभव्या (जिससे बढकर भव्य कुछ नहीं), सदागति (हमेशा गति मे, मोक्ष दान), शाम्भवी (शिवप्रिया, शंभू की पत्नी), देवमाता, चिन्ता, रत्‍‌नप्रिया (गहने से प्यार), सर्वविद्या (ज्ञान का निवास), दक्षकन्या (दक्ष की बेटी), दक्षयज्ञविनाशिनी,अपर्णा (तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली), अनेकवर्णा (अनेक रंगों वाली), पाटला (लाल रंग वाली), पाटलावती (गुलाब के फूल या लाल परिधान या फूल धारण करने वाली), पट्टाम्बरपरीधाना (रेशमी वस्त्र पहनने वाली), कलमञ्जररञ्जिनी (मधुर ध्वनि करने वाले मञ्जीर/पायल को धारण करके प्रसन्न रहने वाली), अमेयविक्रमा (असीम पराक्रमवाली), क्रूरा (दैत्यों के प्रति कठोर), सुन्दरी, सुरसुन्दरी, वनदुर्गा, मातङ्गी, मतङ्गमुनिपूजिता, ब्राह्मी, माहेश्वरी, इंद्री, कौमारी, वैष्णवी, चामुण्डा, वाराही, लक्ष्मी:, पुरुषाकृति: (वह जोपुस्र्ष का रूप ले ले), विमला (आनन्द प्रदान करने वाली), उत्कर्षिणी, ज्ञाना, क्रिया, नित्या, बुद्धिदा, बहुला, बहुलप्रेमा, सर्ववाहनवाहना, निशुम्भशुम्भहननी, महिषासुरमर्दिनि, मधुकैटभहंत्री, चण्डमुण्डविनाशिनि, सर्वासुरविनाशा, सर्वदानवघातिनी, सर्वशास्त्रमयी, सत्या, सर्वास्त्रधारिणी, अनेकशस्त्रहस्ता, अनेकास्त्रधारिणी, कुमारी, एककन्या, कैशोरी, युवती, यति, अप्रौढा (जो कभी पुराना ना हो), प्रौढा (जो पुराना है), वृद्धमाता, बलप्रदा, महोदरी, मुक्तकेशी, घोररूपा, महाबला, अग्निज्वाला, रौद्रमुखी, कालरात्रि:, तपस्विनी, नारायणी, भद्रकाली, विष्णुमाया, जलोदरी, शिवदूती, करली, अनन्ता (विनाशरहिता), परमेश्वरी, कात्यायनी, सावित्री, प्रत्यक्षा, ब्रह्मवादिनी ॥2-15॥देवी पार्वती! जो प्रतिदिन दुर्गाजी के इस अष्टोत्तरशतनाम का पाठ करता है, उसके लिये तीनों लोकों मे कुछ भी असाध्य नहीं है ॥16॥ वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोडा, हाथी, धर्म आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्त मे सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है ॥17॥ कुमारी का पूजन और देवी सुरेश्वरी का ध्यान करके पराभक्ति के साथ उनका पूजन करे, फिर अष्टोत्तरशत नाम का पाठ आरम्भ करे ॥18॥ देवि! जो ऐसा करता है, उसे सब श्रेष्ठ देवताओं से भी सिद्धि प्राप्त होती है। राजा उसके दास हो जाते हैं। वह राज्यलक्ष्मी को प्राप्त कर लेता है ॥19॥ गोरोचन, लाक्षा, कुङ्कुम, सिन्दूर, कपूर, घी (अथवा दूध), चीनी और मधु- इन वस्तुओं को एकत्र करके इनसे विधिपूर्वक यन्त्र लिखकर जो विधिज्ञ पुरुष सदा उस यन्त्र को धारण करता है, वह शिव के तुल्य (मोक्षरूप) हो जाता है ॥20॥ भौमवती अमावास्या की आधी रात मे, जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्र पर हों, उस समय इस स्तोत्र को लिखकर जो इसका पाठ करता है, वह सम्पत्तिशाली होता है ॥21॥
ये स्वयं महादेव के मुखकमल से वर्णित महासिद्ध प्रयोग है अतः इसे करने मे संशय का कोई स्थान नहीं है।
♦ साधक को नवरात्र मे क्या करना चाहिए ?
♦यदि किसी कारण विशेष के लिए पूजा कर रहे हो तो स्वयं को श्रृंगार, मौजमजा, काम से दूर करें रखे। निश्चित समय मे पूजा पाठ करे तथा निश्चित संख्या मे जप करे।
♦ जप अवश्य करे। जप के समय मुंह पूर्व या दक्षिण दिशा मे हो।
♦ पूजा के लिए लाल फूल, रोली, चंदन, फल दूर्वा, तुलसीदल व कोई प्रसाद अवश्य ले।
♦ नवरात्र के प्रथम दिन देवी का आवाह्न करें और नियमित पूजा करे।
♦ दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रतिदिन करें और इसका नियम समझ कर करे।

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♦ माँ भगवती ऐसे होगी प्रसन्न—-माँ की कृपा प्राप्ति के सरल उपाय : नवरात्रि विशेष—2016
नवरात्रि मे माँ दुर्गा की पूजा विशेष फलदायी है। नवरात्रि ही एक ऐसा पर्व है जिसमे महाकाली, महालक्ष्मी और माँ सरस्वती की साधना करके जीवन को सार्थक किया जा सकता है। ऐसी माँ दुर्गा की कृपा प्राप्ति के लिए कुछ सरल उपाय नीचे दिए जा रहे है।
♦ माँ दुर्गा को तुलसी दल और दूर्वा चढ़ाना निषिद्ध है।
♦ अपने घर के पूजा स्थान मे भगवती दुर्गा, भगवती लक्ष्मी और माँ सरस्वती के चित्रों की स्थापना करके उनको फूलों से सजाकर पूजन करे।
♦ नौ दिनों तक माता का व्रत रखें। अगर शक्ति न हो तो पहले, चौथे और आठवें दिन का उपवास अवश्य करे। माँ भगवती की कृपा जरूर प्राप्त होगी।
♦ नौ दिनों तक घर मे माँ दुर्गा के नाम की ज्योत अवश्‍य जलाएँ।
♦ अधिक से अधिक नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ का जाप अवश्‍य करे।
♦ इन दिनो मे दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्‍य करे।
♦ पूजन मे हमेशा लाल रंग के आसन का उपयोग करना उत्तम होता है। आसन लाल रंग का और ऊनी होना चाहिए।
♦ लाल रंग का आसन न होने पर कंबल की आसन इतनी मात्रा मे बिछाकर उस पर लाल रंग का दूसरा कपड़ा डालकर उस पर बैठकर पूजन करना चाहिए।
♦ पूजा पूरी होने के पश्‍चात आसन को प्रणाम करके लपेटकर सुरक्षित जगह पर रख
दीजिए।
♦ पूजा के समय लाल वस्त्र पहनना शुभ होता है। लाल रंग का तिलक भी जरूर लगाएँ। लाल कपड़ों से आपको एक विशेष ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
♦ माँ को प्रात: काल के समय शहद मिला दूध अर्पित करें। पूजन के पास इसे ग्रहण करने से आत्मा व शरीर को बल प्राप्ति होती है। यह एक उत्तम उपाय है।
♦ आखिरी दिन घर मे रखीं पुस्तके, वाद्य यंत्रो, कलम आदि की पूजा अवश्य करे।
♦ अष्‍टमी व नवमी के दिन कन्या पूजन करे।
♦ उपरोक्त नियमों का पालन कर नौ दुर्गा को प्रसन्न करे।

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♦ माँ दुर्गा के नौ नैवेद्य–नौ दिन का विशेष प्रसाद:
♦ प्रथम नवरात्रि के दिन माँ के चरणों मे गाय का शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है। तथा शरीर निरोगी रहता है।
♦दूसरे नवरात्रि के दिन माँ को शक्कर का भोग लगाएँ व घर मे सभी सदस्यों को दें। इससे आयु वृद्धि होती है।
♦तृतीय नवरात्रि के दिन दूध या दूध से बनी मिठाई खीर का भोग माँ को लगाकर ब्राह्मण को दान करें। इससे दुखों की मुक्ति होकर परम आनंद की प्राप्ति होती
है।
♦माँ दुर्गा को चौथी नवरात्रि के दिन मालपुए का भोग लगाएँ। और मंदिर के ब्राह्मण को दान दें। जिससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय शक्ति बढ़ती है।
♦ नवरात्रि के पाँचवें दिन माँ को केले का नैवैद्य चढ़ाने से शरीर स्वस्थ रहता है।
♦ छठवीं नवरात्रि के दिन माँ को शहद का भोग लगाएँ। जिससे आपके आकर्षण शक्त्ति मे वृद्धि होगी।
♦ सातवें नवरात्रि पर माँ को गुड़ का नैवेद्य चढ़ाने व उसे ब्राह्मण को दान करने से शोक से मुक्ति मिलती है एवं आकस्मिक आने वाले संकटों से रक्षा भी होती है।
♦ नवरात्रि के आठवें दिन माता रानी को नारियल का भोग लगाएँ व नारियल का दान कर दे। इससे संतान संबंधी परेशानियो से छुटकारा मिलता है।
♦ नवरात्रि की नवमी के दिन तिल का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान दे। इससे मृत्यु भय से राहत मिलेगी। साथ ही अनहोनी होने की‍ घटनाओं से बचाव भी होगा।

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♦ नवदुर्गा के आसान सिद्ध मंत्र –नवरात्रि विशेष :
दुर्गा सप्तशती मे कुछ ऐसे सिद्ध मंत्र है, जिनके द्वारा हम अपनी मनोकामना की पूर्ति कर सकते है।
कैसे करे जाप :- नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन घटस्थापना के बाद संकल्प लेकर प्रातः स्नान करके दुर्गा की मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या षोड्षोपचार से गंध, पुष्प, धूप दीपक नैवेद्य निवेदित कर पूजा करें। मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष, तुलसी या चंदन की माला से मंत्र का जाप एक माला से पाँच माला तक पूर्ण कर अपना मनोरथ कहें। पूरी नवरात्रि जाप करने से मनोवांच्छित कामना अवश्य पूरी होती है।
उपरोक्त सारे मंत्र विधिनुसार करने पर मनुष्‍य अपने पापो और कष्‍टो को दूर करके माता के आशीर्वाद का पात्र बन जाता है। नवरात्रि मे संयमपूर्वक की गई प्रार्थना और भक्ति माता स्वीकार करती है और साथ ही अपने भक्तों के कष्‍टों का निवारण करते हुए उन्हे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाती है।
♦सर्वकल्याण के लिए :
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥
♦ आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति के लिए :
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि मे परमं सुखम्‌।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥
 ♦ बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिए :
सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥
♦ सुलक्षणा पत्नी प्राप्ति के ‍‍‍लिए :
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्ग संसारसागस्य कुलोद्‍भवाम्।।
♦ दरिद्रता नाश के लिए :
दुर्गेस्मृता हरसि भतिमशेशजन्तो: स्वस्थैं: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दरिद्रयदुखभयहारिणी कात्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता।।
♦ शत्रु नाश के लिए :
ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्‍टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वाम् कीलय बुद्धिम्विनाशाय ह्रीं ॐ स्वाहा।।
♦ सर्वविघ्ननाशक मंत्र :
सर्वबाधा प्रशमनं त्रेलोक्यस्यखिलेशवरी।
एवमेय त्वया कार्य मस्माद्वैरि विनाशनम्‌॥
♦ ऐश्वर्य प्राप्ति एवं भय मुक्ति मंत्र : 
ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः।
शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥
♦विपत्तिनाशक मंत्र :
शरणागतर्दिनार्त परित्राण पारायणे।
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥
♦ स्वप्न मे कार्य-सिद्धि के लिए : 
दुर्गे देवी नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।

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♦ भक्ति भाव से नवरात्रि मनाएँ…नवरात्रि के पवित्र दिनो का पूजन-विधान :
वैदिक गंथों मे वर्णन है कि इस वसुधा को बचाएँ रखने के लिए युगों से देव व दानवो मे ठनी रही। देवता जो कि परोपकारी, कल्याणकारी, धर्म व भक्तों के रक्षक है। वहीं दानव अर्थात्‌ राक्षस इसके विपरीत हैं। इसी क्रम मे जब रक्तबीज, महिषासुर जैसे दैत्यों ने अपनी ताकत के अभिमान मे अत्याचार कर धरती को पीड़ित करने लगे तो देवगणों ने एक अद्भुत शक्ति का सृजन कर उसे विविध प्रकार के अमोघ अस्त्र प्रदान किए।
जो आदिशक्ति माँ दुर्गा के नाम से संपूर्ण ब्रह्मांड मे व्याप्त हुईं। भक्तो की रक्षा व देव कार्य अर्थात्‌ कल्याण के लिए भगवती दुर्गा ने नौ दिनों मे नौ रूपों जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा, स्वधा को प्रकट किया। जिन्होंने नौ दिनों तक महाभयानक युद्ध कर शुंभ-निशुंभ, रक्तबीज आदि अनेकों दैत्यों का वध कर दिया। उन्हीं देवियों की आराधना नौ दिनों तक विशेष पवित्रता से की जाती है। नौ देवियों मे प्रथम श्री शैलपुत्री, द्वितीय श्री ब्रह्मचारिणी, तृतीय श्री चंद्रघंटा, चतुर्थ श्री कुष्मांडा, पंचम श्री स्कंदमाता, षष्ठम श्री कात्यायनी, सप्तम श्री कालरात्रि, अष्टम श्री महागौरी, नवम श्री सिद्धिदात्री की पूजन व हवनादि यज्ञ क्रियाओं का आयोजन किया जाता है।
नवरात्रो मे रंगो का विशेष महत्व है, रंग प्रत्येक व्यक्ति को बड़ी तीव्रता से प्रभावित करते है। इसलिए पहले नवरात्रि मे सफेद व लाल रंग का प्रयोग व कपड़े शुभ माने गए है। दूसरे मे केशरिया, पीच व हल्का पीला रंग, तीसरे मे लाल, चौथे मे नीला-सफेद व केशरिया रंग, पाँचवे मे हरा, लाल, सफेद, छठे मे लाल-सफेद, सातवें मे नीला-लाल-सफेद, आठवें मे लाल-केशरिया-पीला-सफेद-गुलाबी, तथा नौवें दिन लाल, सफेद रंग बहुत अच्छे माने जाते है। पूजन के पूर्व जौ बोने का विशेष फल होता है। पाठ करते समय बीच मे बोलना या फिर बंद करना अच्छा नहीं है। ऐसा करना ही पड़े तो पाठ का आरम्भ पुनः करें। पाठ मध्यम स्वर व सुस्पष्ट, शुद्ध चित्त होकर करें। पाठ संख्या का दशांश हवनादि करने से इच्छित फल प्राप्त होता है। दूर्वा (हरी घास) माँ को नहीं चढ़ाई जाती है। नवरात्रों मे पहले, अंतिम और पूरे नौ दिनों का व्रत अपनी सामर्थ्य व क्षमता के अनुसार रखा जा सकता है।
नवरात्रों के व्रत का पारण (व्रत खोलना) दशमी मे करना अच्छा माना गया है यदि नवमी की वृद्धि हो तो पहली नवमी को उपवास करने के पश्चात्‌ दूसरे दसवें दिन पारण करने का विधान शास्त्रों मे मिलता है। नौ कन्याओ का पूजन कर उन्हें श्रद्धा के साथ भोजन व दक्षिणा देना अत्यंत श्रेष्ठ होता है। इस प्रकार भक्त अपना ऐश्वर्य बढ़ाने हेतु सर्वशक्ति रूपा माँ दुर्गा की अर्चना कर सकते है।
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♦ नवग्रहों की पीड़ा दूर करे दुर्गा :
शक्ति एवं भक्ति के साथ सांसारिक सुखों को देने के लिए वर्तमान समय मे यदि कोई देवता है। तो वह एक मात्र देवी दुर्गा ही हैं। सामान्यतया समस्त देवी-देवता ही पूजा का अच्छा परिणाम देते है। किन्तु कलियुग मे दुर्गा एवं गणेश ही पूर्ण एवं तत्काल फल देने वाले हैं। कहा भी है- ‘कलौ चण्डी विनायकौ।’
नवग्रहों की पीड़ा एवं दैवी आपदाओं से मुक्ति का एक मात्र साधन देवी की आराधना ही है। वर्तमान समय मे कालसर्प एवं मांगलिक दोष के अलावा कुछ दोष ऐसे भी है। जिनकी शान्ति सम्भवतः अन्य किसी साधना अथवा पूजा से कठिन है। जैसे अवतंष योग। जब कुंडली मे नीच शनि, निर्बल गुरु एवं मंगल से किसी तरह का संयोग बनता है।तब व्यवसाय एवं नौकरी दोनों ही प्रभावित होते हैं। इसी प्रकार जब कुंडली मे राहु एवं चन्द्रमा अपोक्लिम अथवा पणफर भाव मे लग्नेश अथवा नवमेश के साथ अस्तगत अथवा निर्बल होते हैं। तब वक्रदाय योग होता है। विवाह का न होना अथवा विवाह होकर भी टूट जाना अथवा तलाक आदि की स्थिति उत्पन्न होती है।
बुध अथवा सूर्य के साथ गुरु का छठे, आठवे अथवा बारहवे भाव मे होकर उच्चगत मंगल से दृष्ट होना रुदाग्र योग बनाता है। जिससे बच्चे पैदा न होना, अथवा बच्चा होकर मर जाना आदि पीड़ा होती है। ऐसी स्थिति मे दुर्गा तंत्र मे आए वर्णन के अनुसार देवी का अनुष्ठान शत-प्रतिशत परिणाम देने वाला होता है यद्यपि इसका वर्णन शक्ति संगम तंत्र, देवी भागवत, तंत्र रहस्य तथा दक्षिण भारत का प्रधान ग्रंथ ‘वलयक्कम’ मे भी बहुत अच्छी तरह से किया गया है। जैसे वृषभ राशि वालों को यदि कालसर्प की पीड़ा हो तो कंचनलता के पाँच पत्ते लेकर उन पर लाल चंदन का लेप करें। अपने सिर के एक बाल को धीरे से उखाड़ कर एक पत्ते पर रख कर उसे शेष पाँचों पत्तो से उलटा कर ढँक दे।
पाँच सेर गाय का दूध लेकर उसमे तिन्ने के चावल का खीर बनाएँ। खीर को पाँच भाग मे बाँट केले के पत्ते पर रख ले। शेष बचे खीर को अलग बर्तन मे रख ले ध्यान रहे इस कार्य मे या तो मात्र पत्तों का प्रयोग करे, अथवा ताँबे का बर्तन प्रयोग मे लावें। अन्य कोई धातु प्रयुक्त नहीं हो सकती है। तथा उन पर दुर्गा देवी के नवार्ण मंत्र का 133 बार पाठ करते हुए 133 बार लौंग के फूलयुक्त दूध की हल्की पतली धार के साथ अभिषेक करें। 27वें दिन परिणाम सामने होगा।
तांत्रिक ग्रन्थों मे यह बताया गया है कि नवदुर्गा नवग्रहों के लिए ही प्रवर्तित हुईं हैं—
‘नौरत्नचण्डीखेटाश्च जाता निधिनाह्ढवाप्तोह्ढवगुण्ठ देव्या।’
अर्थात् नौ रत्न, नौ ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति, नौ निधि की प्राप्ति, नौ दुर्गा के अनुष्ठान से सर्वथा सम्भव है। भगवान राम ने भी इसके प्रभाव से प्रभावित होकर अपनी दश अथवा आठ नहीं बल्कि नवधा भक्ति का ही उपदेश दिया है।
ध्यान रहे आज के वैज्ञानिक भी अपने सम्पूर्ण खोज के बाद इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रौन इन तीन तत्वों के प्रत्येक के अल्फा,बीटा तथा गामा तीन-तीन किरणों के भेद से 3-3 अर्थात 9 किरणों को ही प्राप्त किया है। किन्तु ग्रह व्यवस्था, तांत्रिक ग्रन्थों मे इसका क्रम निम्न प्रकार बताया गया है। सूर्यकृत पीड़ा की शान्ति के लिए कात्यायनी, चन्द्रमा के लिए चन्द्रघण्टा, मंगल के लिए शैलपुत्री, बुध के लिए स्कन्दमाता, गुरु के लिए ब्रह्मचारिणी, शुक्र के लिए महागौरी, शनि के लिए कालरात्रि, राहु के लिए कूष्माण्डा तथा केतु के लिए सिद्धिदात्री। अर्थात् जिस ग्रह की पीड़ा, कष्ट हो उससे संबंधित दुर्गा के रूप की पूजा विधि-विधान से करने पर अवश्य ही शान्ति प्राप्त होती है।
विक्रान्ता, आयुष्मा, अतिलोम, घृष्णा, मांदिगोठ, विषेंधरी आदि भयंकर कुयोगों की शान्ति यदि संभव है तो एकमात्र दुर्गा की पूजा ही समर्थ है। वास्तव मे आदि काल से ही मनुष्य, देवी-देवता अथवा किसी भी प्राणी पर यदि कोई संकट पड़ा है तो उसके लिए सभी ने दुर्गा माता की ही अराधना की है। और माता दुर्गा ने ही सबका उद्धार किया है। इसमे कोई संदेह नहीं कि जादू टोना, रोग, भय, पिशाच्च, बेताल तथा डाकिनी आदि से मुक्ति प्राप्ति दुर्गा की तांत्रिक पूजा-पद्धति सर्वथा ही सफल है। दुर्गा के अनुष्ठान की तांत्रिक विधि का विधिवत अनुपालन हमारे भारत मे कम किन्तु इटली के सार्सिडिया, आस्ट्रेलिया के वैलिंग्टन, दक्षिणी अमेरिका के चिली एवं वॉशिंगटन डीसी, दक्षिणी अमेरिका के चिली तथा चीन मे यांग टीसी क्यांग नदी के तटवर्ती प्रान्तों मे ज्यादा देखने को मिल सकती हैं।

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♦ नौ दुर्गा आराधना का महत्व :
शक्ति उपासना के महत्व के बारे मे कहा जाता है कि जगत्‌ की उत्पत्ति, पालन एवं लय तीनों व्यवस्थाएँ जिस शक्ति के आधीन सम्पादित होती है वही पराम्वा भगवती आदि शक्ति है, यें कारी बन कर सृष्टि का सृजन करने से इन्हें सृष्टिरूपा बीज कहा जाता है। ‘ह्रीं कारी’ देवी को प्रतिपालि का एवं ‘क्लीं कारी’ काम रूपा शक्ति जगत का लय कर अपने आश्रय मे ले लेती हैं। यही तीन शक्तियाँ महाकाली, महालक्ष्मी महासरस्वती कहलाती है। इन्हीं के अनन्त रूप है लेकिन प्रधान नौ रूपों मे नवदुर्गा बन कर आदि शक्ति सम्पूर्ण पृथ्वी लोक पर अपनी करूणा की वर्षा करती है, अपने भक्त और साधकों मे अपनी ही शक्ति का संचार करते हुए, करूणा एवं परोपकार के द्वारा संसार के प्राणियों का हित करती है।
प्रथम नवरात्रि को माँ की शैल पुत्री रूप मे आराधना की जाती है। वस्तुतः नौ दुर्गा के रूप माता पार्वती के हैं। दक्ष प्रजापति के अहंकार को समाप्त कर प्रजापति क्रम मे परिवर्तन लाने एवं अपने सती स्वरूप का संवरण कर पार्वती अवतार क्रम मे नौ दुर्गा की नौ रूपमूर्तियों की उपासना है नवरात्रि उपासना। यद्यपि शक्ति अवतार को दक्ष यज्ञ मे अपने योग बल से सम्पन्न करने से पूर्ण भगवती सती जी ने भगवान शंकर के समक्ष अपनी दस महाविधाओं को प्रकट किया तथा उनके सती जी के दग्ध छाया छाया देह के अंग-प्रत्यंगो से अनेक शक्ति पीठों मे आदि शक्ति प्रतिष्ठित हो कर पूजी जाने लगी पार्वती रूपा भगवती के प्रथम स्वरूप शैल पुत्री की आराधना से साधक की योग यात्रा की पहली सीढ़ी बिना बाधाओं के पारहो जाती है। योगीजन प्रथम नवरात्रि की साधना मे अपने मन को मूलाधार चक्र मे स्थित शक्ति केंद्र की जागृति मे तल्लीन कर देते है।
नवरात्रि आराधना, तन मन और इन्द्रिय संयम साधना की उपासना है, उपवास से तन संतुलित होता है। तन के सन्तुलित होने पर योग साधना से इंद्रियाँ संयमित होती है। इन्द्रियो के संयमित होने पर मन अपनी आराध्या माँ के चरणों मे स्थिर हो जाता है। वस्तुतः जिसने अपने मन को स्थिर कर लिया वह संसार चक्र से छूट जाता है। संसार मे रहते हुए उसके सामने कोई भी सांसारिक विध्न-बाधाएँ टिक नहीं सकती। वह भगवती दुर्गा के सिंह की तरह बन जाता है, ऐसे साधक भक्त एवं योगी महापुरूष का दर्शन मात्र से सिद्धियाँ मिलने लगती है। परन्तु सावधान रहना चाहिए की सांसारिक उपलब्धि रूपी सिद्धियाँ संसार मे भटका देती है। अतः उपासक एवं साधकों को यह भी सावधानी रखनी होती है कि उनका लक्ष केवल माँ दुर्गा के श्री चरणों मे समर्पण है और कुछ नहीं।
by Pandit Dayanand Shastri.