जानिए हस्तरेखा से (ओर कुंडली) से निसंतान को संतान तक—-

जानिए हस्तरेखा से (ओर कुंडली) से निसंतान को संतान तक—-
यदि किसी व्यक्ति को संतान प्राप्ति में समस्या आ रही हो, तो ऐसे व्यक्ति इस लेख में लिखे गये सरल उपायों को अपना कर संतान की प्राप्ति अति ही सहजता के साथ कर सकते हैं। किंतु उपायों को अति सावधानी से व श्रद्धा के साथ करना अति आवश्यक होता है। उपाय निम्नवत हैं:
1. संतान प्राप्ति के लिए पति-पत्नी दोनों को रामेश्वरम् की यात्रा करनी चाहिए तथा वहां सर्प-पूजन करवाना चाहिए। इस कार्य को करने से संतान-दोष समाप्त होता है।
2. स्त्री में कमी के कारण संतान होने में बाधा आ रही हो, तो लाल गाय व बछड़े की सेवा करनी चाहिए। लाल या भूरा कुत्ता पालना भी शुभ रहता है।
3. यदि विवाह के दस या बारह वर्ष बाद भी संतान न हो, तो मदार की जड़ को शुक्रवार को उखाड़ लें। उसे कमर में बांधने से स्त्री अवश्य ही गर्भवती हो जाएगी।
4. जब गर्भ धारण हो गया हो, तो चांदी की एक बांसुरी बनाकर राधा-कृष्ण के मंदिर में पति-पत्नी दोनों गुरुवार के दिन चढ़ायें तो गर्भपात का भय/खतरा नहीं होता।
5. यदि बार-बार गर्भपात होता है, तो शुक्रवार के दिन एक गोमती चक्र लाल वस्त्र में सिलकर गर्भवती महिला के कमर पर बांध दें। गर्भपात नहीं होगा।
6. जिन स्त्रियों के सिर्फ कन्या ही होती है, उन्हें शुक्र मुक्ता पहना दी जाये, तो एक वर्ष के अंदर ही पुत्र-रत्न की प्राप्ति होगी।
7. यदि बच्चे न होते हों या होते ही मर जाते हों, तो मंगलवार के दिन मिट्टी की हांडी में शहद भरकर श्मशान में दबायें।
8. पीपल की जटा शुक्रवार को काट कर सुखा लें, सूखने के बाद चूर्ण बना लें। उसको प्रदर रोग वाली स्त्री प्रतिदिन एक चम्मच दही के साथ सेवन करें। सातवें दिन तक मासिक धर्म, श्वेत प्रदर तथा कमर दर्द ठीक हो जाएगा।
9. संतान प्राप्ति के लिए इनमें से किसी भी मंत्र का नियमित रूप से एक माला प्रतिदिन पाठ करें।
1. ओऽम् नमो भगवते जगत्प्रसूतये नमः।
2. ओऽम क्लीं गोपाल वेषघाटाय वासुदेवाय हूं फट् स्वाहा।
3. ओऽम नमः शक्तिरूपाय मम् गृहे पुत्रं कुरू कुरू स्वाहा।
4. ओऽम् हीं श्रीं क्लीं ग्लौं।
5. देवकी सुत गोविन्द वासुदेवाय जगत्पते। देहिं ये तनयं कृबज त्यामहं शरणंगत।
प्रिय पाठकों/मित्रों, ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की इनमें से आप जिस मंत्र का भी चयन करें उस पर पूर्ण श्रद्धा व आस्था रखें। विश्वासपूर्वक किये गये कार्यों से सफलता शीघ्र मिलती है। मंत्र पाठ नियमित रूप से करें।
कृष्ण के बाल रूप का चित्र लगाएं। लड्डू गोपाल का चित्र या मूर्ति लगाना लाभदायक होता है। क्रम संख्या 4 व 5 पर दिए गये मंत्र शीघ्र फलदायक हैं। इन्हें संतान गोपाल मंत्र भी कहा जाता है।
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इच्छित संतान प्राप्ति के सुगम उपाय –
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 यदि किसी दंपति की संतान संबंधी कोई समस्या है जैसे गर्भ न ठहरना, गर्भपात हो जाना, मृत बच्चे का जन्म होना, संतान का बीमार रहना, मंदबुद्धि बच्चे का जन्म आदि तो घरेलू उपाय कर स्वस्थ, बुद्धिमान तथा योग्य संतान प्राप्त कर सकते हैं। यहां प्रस्तुत हैं इन्हीं समस्याओं के निदान के अनेकानेक उपाय…
संतान प्राप्ति की कामना मनु महाराज द्वारा वर्णित तीन नैसर्गिक इच्छाओं में से एक है। निःसंतान रहना एक भयंकर अभिशाप है। यह पूर्व जन्म में किए गए कर्मों के फल है या फल का भोग है। संतान हो किंतु दुष्ट और कुल -कीर्तिनाशक हो तो यह स्थिति और अधिक कष्टदायक होती है। जिनके संतान नहीं होती है भारत में उनकी तीन श्रेणियां मानी जाती हैं।
1. जन्मवंध्या 2. काक वंध्या 3. मृतवत्सा।
काक वंध्या वह होती है जिसके केवल एक संतान होती है।
2. मृतवत्सा के संतान तो होती है पर जीवित नहीं रहती।
3. जन्मवंध्या के संतान होती ही नहीं। यहां तीनों श्रेणियों की स्त्रियों की इस अभिशाप से मुक्ति के कुछ टोटके दिए जा रहे हैं जिनका निष्ठापूर्वक प्रयोग करने से लाभ मिल सकता है।
जन्मवंध्या: रासना नामक एक जड़ी को रविवार के दिन जड़ डंठल और पत्ते सहित उखाड़ लाएं। इसे 11 वर्ष से कम आयु अर्थात कुमारी कन्या के हाथ से एक रंग की गाय के दूध् में पिसवा कर रख लें। ऋतु काल में मासिक धर्म के दिनों में इसे चार तोले के हिसाब से एक सप्ताह पीने से संतान उत्पन्न होती है। ध्यान रहे यह प्रयोग तीन चार बार दोहराना पड़ सकता है।
एक रुद्राक्ष और एक तोला सुगंध रासना को कुमारी कन्या के हाथ से एक रंग की गाय के दूध में पिसवा कर पीएं। ‘¬ ददन्महागणपते रक्षा-मृत मत्सुत देहि’ इस मंत्र से औषधि को 21 बार अभिमंत्रित कर ले।
काकवंध्या: काक वंध्या वह कहलाती है जिसके एक ही बार संतान हो। यदि ऐसी स्त्रियां संतान की इच्छा रखती हों तो ये प्रयोग करें।
रवि पुष्य योग में दिन को असगंध की जड़ उखाड़ लाएं और भैंस के दूध के साथ पीस कर दो तोला रोज खाएं।
विष्णुकांता की जड़ रविपुष्य के दिन ला कर पूर्वोक्त प्रकार से भैंस के दूध के साथ पीस पर भैंस के ही दूध के मक्खन के साथ सात दिन तक खाने से संतान प्राप्त होती है। यह प्रयोग ऋतुकाल में ही करें।
मृतवत्सा: मृतवत्सा वह होती है जिसके संतान होती तो अवश्य है परंतु जीवित नहीं रहती। इसमें गाय का घी काम में लिया जाना चाहिए। खास कर उसका जिसका बछड़ा जीवित हो।
मजीठ, मुरहठी, कूट, त्रिफला, मिश्री, खरैंटी, महामेदा, ककोली, क्षीर काकोली, असगंध की जड़, अजमोद, हल्दी, दारु हल्दी, हिंगु टुटकी, नीलकमल, कमोद, दाख, सफेद चंदन और लाल चंदन ये सब वस्तुएं चार-चार तोला लेकर कूट-छानकर एक किलो घी में मिलाकर उपलों पर मंदी आंच पर पकानी चाहिए। जब केवल घी की मात्रा के बराबर रह जाए तो छान कर रख लेना चाहिए। इसका प्रयोग पति-पत्नी दोनों करें तो पुत्र उत्पन्न होगा जो स्वस्थ तथा सुंदर होगा। जब तक इन वस्तुओं का सेवन किया जाए तब तक हल्का भोजन करना चाहिए। भगवान के प्रति पूर्ण आस्था रखते हुए दिन में सोने, तामसिक पदार्थों के सेवन, भय, चिंता, क्रोध आदि तथा तेज सर्दी और गर्मी से बचना चाहिए। कुछ और प्रयोग भी हैं जो इस प्रकार हैं।
ऋतु काल में नए नागकेसर के बारीक चूर्ण को गाय के घी के साथ मिला कर खाने से भी संतान प्राप्त होती है।
जटामांसी (एक जड़ी का नाम) को चावल के पानी के साथ पीने से संतान प्राप्त होती है।
मंगलवार को कुम्हार के घर जाएं और कुम्हार से प्रार्थना पूर्वक मिट्टी के बर्तन काटने वाला डोरा ले आएं। उसे किसी गिलास में जल भर कर उसमें डाल दें। कुछ समय पश्चात डोरे को निकाल लें और वह पानी पति-पत्नी दोनों पी लें। यह क्रिया मंगलवार को ही करें। अगर संभव हो तो पति-पत्नी रमण करें। गर्भ की स्थिति बनते ही डोरे को हनुमान जी के चरणों में रख दें। बार-बार गर्भपात होने पर
मुलहठी, आंवला और सतावर को भली भांति पीस कर कपड़ाछान कर लें और इसका सेवन रविवार से प्रारंभ करें। गाय के दूध के साथ लगभग 6 ग्राम प्रतिदिन लें।
मंगलवार को लाल कपड़े में थोड़ा सा नमक बांध लें। इसके बाद हनुमान के मंदिर जाएं और पोटली को हनुमान जी के पैरों से स्पर्श कराएं। वापस आकर पोटली को गर्भिणी के पेट से बांध दें गर्भपात बंद हो जाएगा। पुत्र प्राप्ति हेतु
विजोरे की जड़ को दूध में पका कर घी में मिला कर पीएं। ऋतुकाल में इस प्रयोग को प्रारंभ कर सम संख्या वाले दिनों में समागम करने से पुत्र प्राप्त होता है।
पुत्राभिलाषियों को अपने घर में स्वर्ण अथवा चांदी से निर्मित सूर्य-यंत्र की स्थापना करनी चाहिए। यंत्र के पूर्वाभिमुख बैठकर दीपक जलाकर यं त्रऔर सूर्य देव को प्रणाम करते हुए सूर्य मंत्र का 108 बार नित्य श्रद्धा से जप करना चाहिए। दीपक में चारों ओर बातियां (बत्तियां) होनी चाहिए। घृत का चतुर्मुखी दीपक जप-काल में प्रज्वलित रहना चाहिए।
षष्ठी देवी का एक वर्ष तक पूजन अर्चन करने से पुत्र-संतान की प्राप्ति होती है। ऊँ ह्रीं षष्ठी देव्यै स्वाहा मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जप करते हुए षष्ठी देवी चालीसा, षष्ठी देवी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। कथा भी पढ़नी सुननी चाहिए।
श्रावण शुक्ल एकादशी का पुत्रदा एकादशी व्रत पुत्र सुख देता है। व्रत संपूर्ण विधि से करें।
स्त्रियां पुत्रदायक मंगल व्रत कर सकती हैं जिसे बैशाख या अगहन मास में प्रारंभ करना चाहिए। व्रत वर्ष भर प्रत्येक मंगल को करें और नित्य मंगल की स्तुति करें।
जिसको पुत्र प्राप्त नहीं हो रहा है वह स्त्री रविवार को प्रातः काल उठकर सिर धोकर खुले बाल फैलाकर उगते सूर्य को अघ्र्य दे और उनसे श्रेष्ठ पुत्र प्राप्ति की प्रार्थना करे। इस प्रकार 16 रविवार तक करे तो सफलता निश्चित प्राप्त होती है।
जिस स्त्री को पुत्र नहीं हो रहा हो वह अपने घर में 21 तोले का प्राण प्रतिष्ठित चैतन्य पारद शिवलिंग स्थापित कराए और प्रत्येक सोमवार को सिर धोकर पीठ पर बाल फैलाकर ‘ऊँ नमः शिवायः’ मंत्र से उस पारद शिवलिंग पर धीरे-धीरे जल चढ़ाए और 7 बार उस जल का चरणामृत ले। इस प्रकार 16 सोमवार करे तो पुत्र प्राप्ति के लिए शंकर से की जाने वाली प्रार्थना अवश्य फलित होती है।
पति को चाहिए कि वह पत्नी को कम से कम 4 ( रत्ती का शुद्ध पुखराज स्वर्ण अंगूठी में गुरु पुष्य नक्षत्र में जड़वाकर तथा गुरु मंत्रों से अभिमंत्रित करवाकर शुभ मुहूर्त में पत्नी को धारण करवाए। इससे पुत्र प्राप्ति की संभावना बढ़ती है।
प्राण प्रतिठित संतानगोपाल यंत्र प्राप्त कर उसे एक थाली में पीले पुष्प की पंखुड़ियां डालकर स्थापित करें। यंत्र का पूजन पुष्प, कुंकुंम अक्षत से करें, दीपक लगाकर (यंत्र के दोनों ओर घी के दीपक लगाएं) निम्न मंत्र का पुत्र जीवा माला से एक माला जप नित्य करें। निरंतर 21 दिन तक करें तो सफलता प्राप्त होती है। ।।‘‘ऊँ हरिवंशाय पुत्रान् देहि देहि नमः।।’’ 21 दिन पश्चात यंत्र और माला बहते जल में प्रवाहित करे दें।
रक्त गुणा की जड़ को शुभ योग में प्राप्त कर तांबे की ताबीज में रखकर भुजा या कमर में धारण करने वाली स्त्री को पुत्र की प्राप्ति होती है।
एक बेदाग नीबू का पूरा रस निचोड़ लें। इसमें थोड़ा सा नमक स्वाद के अनुसार मिला लें। अब इस द्रव को लड्डू गोपाल के आगे थोड़ी देर के लिए रख दें। रात को सोने से पूर्व स्त्री इस द्रव को पी ले और पति-पत्नी अपने धर्म का पालन करें तो अवश्य पुत्र ही होगा। ध्यान रहे यह क्रिया केवल एक बार ही करनी है, बार-बार नहीं।
यदि संतान न हो रही हो तो मंगलवार को मिट्टी के बर्तन में शुद्ध शहद भर कर ढक्कन लगा कर श्मशान में गाड़ दें।
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ ला कर पास रखें, संतान अवश्य होगी।
वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में बोरिंग के पानी टैंक या कुएं का उत्तर-पश्चिम कोण में होना भी संतान उत्पत्ति में बाधक माना गया है। उपाय के लिए पांचमुखी हनुमान जी का चित्र ऐसे लगाएं कि वह पानी को देखें।
असगंध का भैंस के दूध के साथ सात दिन तक लें। यह उपाय पुष्य नक्षत्र में रविवार को शुरू करें। इससे पुत्र उत्पन्न होता है।
गोखरू, लाल मखाने, शतावर, कौंच के बीज, नाग बला और खरौंटी समान भाग में पीस कर रख लें। इस चूर्ण को रात्रि में पांच ग्राम दूध के साथ लें।
रविवार पुष्य योग के दिन (पुष्य नक्षत्र) सफेद आक की जड़ गले में बांधने से भी गर्भ की रक्षा होती है। इसके लिए धागा लाल ही प्रयोग करें।
‘‘ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा‘‘- यह जप यंत्र है। वांछित यंत्र स्वर्ण अथवा चांदी के अतिरिक्त स्वर्ण पालिश वाला यंत्र भी समान रूप से लाभकारी होता है। निःसंतान दंपतियों को सूर्य का स्तवन भी करना चाहिए जैसे सूर्याष्टक, सूर्यमंडलाष्टकम् आदि। इन स्तोत्रों का निरंतर श्रद्धा भक्ति पूर्वक पाठ जातक को तु.रंत सुखानुभूति देता है। स्वरुचि के अनुसार सूर्य देवता की अन्य किसी भी स्तुति का पाठ कर सकते हैं। (पति पत्नी दोनों अथवा कोई भी एक)
किसी योग्य ज्योतिष के परामर्शानुसार अथवा कुलगुरु, पुरोहित से सलाह लेकर संतान गोपाल मंत्र का जप स्वयं करें अथवा योग्य, अनुभवी कर्मकांडी ब्राह्मण से विधि विधान के साथ करावें। मंत्रानुष्ठान एक लाख मंत्र जप शास्त्र सम्मत माना गया है। इसमें निश्चित समय, निश्चित स्थान, निश्चित आसन और निश्चित संख्या में प्रतिदिन जप करने का विधान है।
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गर्भधारण करके के लिए तथा बांझपन दूर करने के लिए कुछ अच्‍छे उपाय । 
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 आज के आधुनिक युग में गर्भधारण संबंधी बहुत सी परेशानियां हैं। बांझपन इसमें कोढ़ में खाज का काम करती है। मैं पिछले कुछ वर्षों से देख रही हूं कि अधिकांश महिलाओं को गर्भधारण में बहुत परेशानी आ रही है। हमारा खानपान और आधुनिक जीवन शैली हम पर ही भारी पड़ रही है। हर महिला का सपना होता है कि वह शादी के बाद जल्‍दी से जल्‍दी मां बने और उसके आंगन में बच्‍चों की किलकारियां गूंजें। पर यदि सब कुछ कुछ सामान्‍य नहीं है तो फिर बहुत परेशानी होती है। डॉक्‍टरों के यहां रोज रोज चक्‍कर लगाने से ही फुर्सत नहीं मिलती। आपकी कुछ मुश्किलों को मैं कर सकूं इसलिए कुछ अच्‍छे नुस्‍खे आपकी सेवा में प्रस्‍तुत कर रही हूं।
========बांझपन की दशा में=============
१ * सेमर की जड़ पीसकर ढाई सौ ग्राम पानी में पकाएं और फिर इसे छान लें। मासिक धर्म के बाद चार दिन तक इसका सेवन करें।
२ * ५० ग्राम गुलकंद में २० ग्राम सौंफ मिलाकर चबाकर खाएं और ऊपर से एक ग्‍लास दूध नियमित रूप से पिएं। इससे आपको बांझपन से मुक्ति मिल सकती है।
३ * गुप्‍तांगों की साफ सफाई पर विशेष ध्‍यान दें। खाने में जौ, मूंग, घी, करेला, शालि चावल, परवल, मूली, तिल का तेल, सहिजन आदि जरूर शामिल करें।
४ * पलाश का एक पत्‍ता गाय के दूध में औटाएं और उसे छानकर पिएं। मासिक धर्म के बाद से पीना शुरू करें और ७ दिनों तक प्रयोग करें।
५ * पीपल के सूखे फलों का चूर्णं बनाकर रख लें। मासिक धर्म के बाद ५ – १० ग्राम चूर्णं खाकर ऊपर से कच्‍चा दूध पिएं। यह प्रयोग नियमित रूप से १४ दिन तक करें।
६ * मासिक धर्म के बाद से एक सप्‍ताह तक २ ग्राम नागकेसर के चूर्णं को दूध के साथ सेवन करें। आपको फाएदा होगा।
७ * ५ ग्राम त्रिफलाधृत सुबह शाम सेवन करने से गर्भाशय की शुद्धि होती है। जिससे महिला गर्भधारण करने के योग्‍य हो जाती है।
========गर्भधारण हेतू कुछ उपाय=========
१ * तीन ग्राम गोरोचन, १० ग्राम असगंध, १० ग्राम गजपीपरी तीनों को बारीक पीसकर चूर्णं बनाएं। फिर पीरिएड के चौथे दिन से निरंतर पांच दिनों तक इसे दूध के साथ पिएं।
२ * महिलाओं को शतावरी चूर्णं घी – दूध में मिलाकर खिलाने से गर्भाशय की सारी विकृतियां दूर हो जाएंगीं और वे गर्भधारण के योग्‍य होगी।
३ * १० ग्राम पीपल की ताज़ी कोंपल जटा जौकुट करके ५०० मि.ली. दूध में पकाएं। जब वह मात्र २०० मि.ली. बचे तो उतारकर छान लें। फिर इसमें चीनी और शहद मिलाकर पीरिएड होने के ५वें या ६ठे दिन से खाना शुरू कर दें। यह बहुत अच्‍छी औषधि मानी जाती है |
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शीघ्र पतन निवारक सरल चिकित्सा
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संभोगरत पुरुष का वीर्य उसकी इच्छा के विरुद्ध शीघ्र स्खलित हो जाने को शीघ्र पतन या जल्दी छूट की व्याधि कहा जाता है। पुरुष अपने वीर्य के छूटने के आवेग को नियंत्रित नहीं रख पाता है। ऐसे पुरुष स्त्री को संतुष्ट नहीं कर पाते है। 
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यह स्थिति हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी जरूर आती है। ४० वर्ष से कम उम्र के पुरुषों मे यह रोग अधिकतर पाया जाता है। संभोग क्रिया के समय लिंग का कडा या कठोर नहीं पडना बहुत गंभीर दोष है क्योंकि सुस्त और ढीले लिंग से संभोग क्रिया संपन्न करना बेहद मुश्किल का काम है। संभोग में कितने समय तक वीर्य पात नहीं होना चाहिये, इसका कोई वेज्ञानिक मापदंड नही है। लेकिन शीघ्रपतन की सबसे खराब स्थिति में लिंग प्रविष्ट करते ही वीर्य छूट जाता है। 
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कुछ पुरुष तो यौनि में लिंग भी प्रविष्ट नहीं कर पाते और वीर्य स्खलन हो जाता है। शीघ्र पतन रोगी संभोग के दौरान चाह कर भी वीर्य छूटना नहीं रोक सकता है। सेक्स में लगने वाला समय प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थिति के अनुसार लंबा या छोटा हो सकता है।
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संभोग शुरू करने पर ६० सेकंड्स याने एक मिनिट से कम समय में पुरुष खारीज हो जाता है तो यह शीघ्र पतन का रोग माना जाता है। शीघ्र पतन रोगी को हम नपुंसक की श्रेणी में नहीं रख सकते हैं, क्योंकि अधिकांश शीघ्र पतन रोगी सेक्स के जरिये स्त्री को गर्भवती करने में सफ़ल होते हैं। फ़िर भी शीघ्र पतन रोगी अपने पार्टनर को संभोग से संतुष्ट नही कर पाता है। गृहस्थि जीवन मे आनंद का अभाव पसरने लगता है।
शीघ्र पतन के लक्षण-
१) शीघ्र पतन रोगी का लिंग बहुत जल्दी उत्तेजना में आजाता है और लिंग में पर्याप्त कठोरता न आने के बावजूद वीर्यपात हो जाता है। लिंग में कडापन नहीं आने से कभी -कभी तो लिंग यौनि में प्रविष्ट करने में भी मुश्किल होती है।
२) रोगी व्यक्ति अश्लील चित्र देखते हैं या नदी तालाब मे नहाती कम वस्त्र स्त्रियों को देखता है तो उत्तेजना होकर वीर्य निकल जाता है।
३) संभोग के दौरान स्त्री चरम उत्तेजना पर नहीं पहुंच पाती और स्त्री के खारीज होने के पहिले ही मर्द खारीज हो जाता है। पुरुष का लिंग एकदम सुस्त पड जाता है। स्त्री मन मसोस कर रह जाती है।
४) शीघ्र पतन रोगी का वीर्य पतला पड जाता है।
५) पेशाब या शौच निवृत्त होते वक्त जोर लगाने से वीर्य की बूंदे निकल जाती है।
इस विषम स्थिति से निजात पाने के लिये मैं कुछ उपचारों का उल्लेख कर रहा हूं जिनके समुचित प्रयोग से पुरुष भरपूर सेक्स का आनंद लेने के काबिल हो जाता है–
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१) तालमखाना के बीज ५० ग्राम लेकर अदरक के रस में आधा घंटे भिगोएं,फ़िर सुखाएं। आपको ऐसा तीन बार करना है। अब इनका चूर्ण बनालें। अब इस चूर्ण को २०० ग्राम शहद में अच्छी तरह मिश्रण करके शीशी में भर ले शीघ्र पतन की दवा तैयार है। १० ग्राम औषधि सुबह-शाम गाय के दूध के साथ लेने से जल्दी छूट होने की व्याधि में लाभ होता है।
२) सतावर का चूर्ण ३ ग्राम मीठे दूध( मिश्री मिला दूध) के साथ लेते रहने से शीघ्र पतन रोग नष्ट होता है।
३) तुलसी के पांच पत्ते और ३ ग्राम बीज(तुलसी के) नागर वेल के पान में रखकर चबाकर खाएं । शीघ्र पतन की अच्छा उपचार है।
४) असगंध और सतावर चूर्ण ३-३ ग्राम दूध के साथ सुबह -शाम लेते रहने से शीघ्र पतन रोग काबू में आ जाता ह।
५) शिलाजीत इस रोग की महान औषधि मानी गई है। विश्वसनीय निर्माता का ही शिलाजित खरीदें। वर्ना धोखा हो सकता है।
६) गाजर का रस २०० मिलि में लहसुन के रस की १० बूंदे डालकर पीना स्तंभन बढाने वाला होता है।
उडद की दाल २० ग्राम पानी में ३ घंटे भिगोएं फ़िर पीसलें इसमें घी और शहद १०-१० ग्राम मिश्रित कर चाट लें और ऊपर से एक गिलास मिश्री मिला दूध पी जाएं। संभोग शक्ति वर्धक उपचार है।
7) शीघ्र पतन की समस्या से निजात पाने के लिये एक बहुत ही कारगर उपचार लिख देता हूं,जरूर लाभ उठावें–
देशी घी २०० ग्राम,शहद १०० ग्राम ,मुलहठी १०० ग्राम और बंग भस्म २० ग्राम लेकर भली प्रकार मिश्रण बनाएं। यह दवा एक चम्मच सुबह और एक चम्मच शाम को लेते रहने से कई पुरुष लाभान्वित हुए हैं।
८) पांव के तलवे पर दस मिनट तक ठंडे जल की धार लगाने से शीघ्र पतन में लाभ होता है।
९) ७ नग बादाम,३ नग काली मिर्च और ३ ग्राम मिश्री मिलाकर चूर्ण करलें गरम दूध के साथ पीते रहने से जल्दी छूट नहीं होगी।
१० ) रात को सोते वक्त पेडू और जननेंद्रिय पर मिट्टी की पटी लगाना चाहिये। कुछ ही दिन में फ़र्क नजर आयेगा।
११) शीघ्र पतन रोगी को कब्ज रहती हो तो सुबह -शाम कुन कुने पानी से एनीमा करना चाहिये। इससे कब्ज भी ठीक होगी और शरीर के दूषित पदार्थ बाहर निकलेंगे।
१२) शीघ्र पतन रोगी को २४ घंटे में ४ लिटर पानी पीने की आदत डालना चाहिये।
१३) नीली बोतल का सूर्य तप्त जल २५ मिलि की मात्रा मे दिन में आठ बार पीने से शीघ्र पतन रोग नष्ट होता है|
१४) शीघ्र पतन की समस्या निवारण के लिये दो सेक्स सत्र के बीच की अवधि कम रखें। ज्यादा दिन बाद सेक्स करेंगे तो वीर्य पात जल्दी होगा।
१५) हस्तमैथुन की आदत हो तो तुरंत त्याग दें। अश्लील चित्र ,फ़िल्म न देखें
१६) तालमखाना २०० ग्राम,सफ़ेद मूसली १०० ग्राम, गोखरू २५० ग्राम और मिश्री ६०० ग्राम लेकर चूर्ण बनालें। एक चम्मच सुबह -शाम लेते रहने से लिंग पुष्ट होगा और जल्दी छूट से छुटकारा मिलेगा।
१७) संभोग के एक सत्र (सेशन) में करीब ४०० से ५०० केलोरी उर्जा खर्च होती है इसलिये संभोग के दौरान तुरंत उर्जा प्रप्त करने के लिये ग्लुकोस,दूध,जुस आदि का उपयोग करना उचित है। इस अवधि में हल्की फ़ुल्की बात चीत करते रहने से संभोग का समय बढाया जा सकता है।
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गर्भ धारण करने के लिए :: Remedies to conceive
अगर आपको किसी कारणवश गर्भ धारण नहीं हो रहा हो तो मंगलवार के दिन कुम्हार के घर आएं और उसमें प्रार्थना कर मिट्टी के बर्तन वाला डोरा ले आएं। उसे किसी गिलास में जल भरकर दाल दें। कुछ समय पश्चात डोरे को निकाल लें और वह पानी पति-पत्नी दोनों पी लें। यह क्रिया केवल मंगलवार को ही करनी है अगर संभव हो तो उस दिन पति-पत्नी अवश्य ही रमण करें। गर्भ की स्थिति बनते ही उस डोरे को हनुमानजी के चरणों में रख दें।
दांपत्य सुख हेतु यदि चाहते हुए वैवाहिक सुख नहीं मिल पा रहा है, हमेशा पति-पत्नि में किसी बात को लेकर अनबन रहती हो तो किसी भी शुक्रवार के दिन यह उपाय करें। मिट्टी का पात्र ले जिसमें सवा किलो मशरूम आ जाएं। मशरूम डालकर अपने सामने रख दें। पति-पत्नि दोनों ही महामृत्युंजय मंत्र की तीन माला जाप करें। तत्पश्चात इस पात्र को मां भगवती के श्री चरणों में चुपचाप रखकर आ जाए। ऐसा करने से मां भगवती की कृपा से आपका दांपत्य जीवन सदा सुखी रहेगा।
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पुत्र प्राप्ति—
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 वासुदेव यज्ञ अर्थात कृष्ण यज्ञ प्रमुख रूप से पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है। मनु ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यह यज्ञ किया था, जिससे उन्हें दस पुत्र हुए। ऐसा उल्लेख भागवत में आया है। इस यज्ञ का विधान अतिप्राचीन है। पुत्र प्राप्ति हेतु वासुदेव यज्ञ इस प्रकार करना चाहिए।
शास्त्रों के मतानुसार कृष्णयज्ञ को विधिपूर्वक सम्पन्न करने के लिए जरूरी है कि यज्ञकर्ता उपवास और प्रायश्चित कर्म करें।
इसके बाद यज्ञकर्ता अपनी धर्मपत्नी सहित बंधु-बांधव, इष्ट-मित्रों के साथ सूर्यार्घ्य देकर शंख ध्वनि के साथ यज्ञमंडप के पश्चिम द्वार से प्रवेश करे।
तत्पश्चात्‌ आचार्य दिग्‌रक्षण, मण्डपप्रोक्षण, वास्तुपूजन, मंडपपूजन, न्यासपूर्वक प्रधानपूजन, योगिनीपूजन, क्षेत्रपालपूजन, अरणिमंथन, पंचभूसंस्कार सहित अग्निस्थापन, कुशकण्डिका, ग्रहपूजन, आधार-आज्यभागत्याग, ग्रह हवन, न्यास तथा प्रधान देवता का पुरुषसूक्त के मंत्रों से पंडित या आचार्य द्वारा हवन कराएं।
मण्डप पूजन तथा प्रधान देवता की आहुति पूर्णाहुतिपर्यंत प्रत्येक दिन करें।
प्रधानाहुति पूर्ण होने के बाद गोदुग्ध से निर्मित खीर द्वारा पुरुष सूक्त से और कृष्णसहस्रनामावली से आचार्य हवनकर्म संपन्न कराएं। इसके उपरांत ही आवाहित देवताओं ( जिन देवताओं का आह्वान किया है) का वैदिक मंत्र से या उनके नाम मंत्र से हवन कराएं। उपरान्त अग्निपूजन स्विष्टकृत, नवाहुति, दशदिक्‌पालादिबलि, पूर्णाहुति तथा वसोर्धाराकर्म संपन्न कराएं।
इसके पश्चात ही त्र्यायुष तथा पूर्ण पात्र दान कर्म यथोचित्‌ रूप से कराएं। उपरोक्त कर्मों की समाप्ति के पश्चात शैयादान, प्रधानपीठ तथा मंडपदान का संकल्प कर्ता से कराएं। इन कर्मों को करने के पश्चात आचार्य यज्ञकर्ता से भूयसी दक्षिणा तथा कर्मांगोदानादिकर्म संकल्पपूर्वक कराएं। शास्त्रोक्त विधि से अभिषेक, अवभृथस्नान करके कर्ता कृष्णयज्ञ में उपस्थित सभी ब्राह्मणों को दक्षिणा प्रदान करें।
उपरोक्त वैदिक कर्मों की समाप्ति के पश्चात देवविसर्जन करके कर्ता अपने इष्ट-मित्रों, संबंधियों एवं परिवार के लोगों के साथ ब्राह्मण भोजन कराएं।
कृष्णयज्ञ- भगवान विष्णु के अवतार, सोलह कलाओं से पूर्ण भगवान श्रीकृष्ण का यह याग पांच, सात, आठ या नौ दिन में संपन्न होता है। कृष्णयज्ञ में पुरुषसूक्त के सोलह मंत्रों से व कृष्ण सहस्रनामावली द्वारा हवन होता है। विष्णुयज्ञ के सदृश इसमें भी सोलह हजार आहुति होती है। इस यज्ञ में हवन सामग्री ग्यारह मन कही गई है। इस यज्ञ को सम्पन्न कराने के लिए सोलह या इक्कीस विद्वानों का आचार्य सहित वरण होता है।
कृष्णयज्ञ का मुहूर्त- चैत्र में अथवा फाल्गुन में या ज्येष्ठ मास में अथवा वैशाख मास में या फिर माघ मास में कृष्णयज्ञ किया जा सकता है। इन मासों में किया गया कृष्णयज्ञ शुभकारी होता है।
शुक्ल पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, त्रयोदशी तथा द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का यह यज्ञ त्रैवर्णिक कर सकते हैं।
पुत्र प्राप्ति का सरल मंत्र
आज भी कुछ परंपरावादी लोग यह मानते हैं कि वंश मात्र लड़कों से ही चलता है। जबकि पुत्रियां चारों दिशाओं में अपनी विजय पताका लहरा रही है। पुत्र प्राप्ति के लिए लोग कई प्रकार के तंत्र-मंत्र-यंत्र और टोटके अपनाते हैं जो गलत भी हो सकते हैं। यहां पेश है पुत्र प्राप्ति के लिए अत्यंत सरल उपाय।
पुत्र प्राप्ति का सरल मंत्र 
श्री गणपति की मूर्ति पर संतान प्राप्ति की इच्छुक महिला प्रतिदिन स्नानादि से निवृत होकर एक माह तक बिल्ब फल चढ़ाकर ‘ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नम:’ मंत्र की 11 माला प्रतिदिन जपने से संतान प्राप्ति होती है।
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गर्भधान संस्कार-
दाम्पत्य जीवन का सबसे बड़ा उदेश्य यही है की श्रेष्ठ गुणो वाली ,शरीर से स्वस्थ, चरित्रवान, संस्कारी संतान को उत्पन्न करना जो आगे चल कर अपने व अपने परिवार के साथ साथ समाज का कल्याण भी कर सके | यूँ तो प्राकृतिक रूप से उचित समय पर सम्भोग करने से संतान का होना स्वाभाविक है पर कुछ दम्पति आज भी संतान उत्पन्न करने से पहले उस पर विचार करते है | कुछ तो डॉक्टर की सलाह ले कर कार्य करते है | जो कि आज के समय में जरुरी भी है पर साथ में गर्भ धारण से पूर्ण इस बात पर भी विचार करे जो गर्भधारण संस्कार में भी होती है | जिसमे गर्भधारण करने से पूर्व समय स्थान के अनुसार तिथि महूर्त का भी विशेष महत्व है वैसे तो कई मंत्रो का भी गर्भ धारण से पूर्व करना जरूरी होता है पर अक्सर देखा जाता है कि कोई कम ही ध्यान देता है इन बातो पर सर्व प्रथम तो माता पिता को अपनी होने वाली संतान के लिए मानसिक व शारीरिक रूप से तैयारी करनी पड़ती है, क्योकिं आने वाली संतान उनकी ही आत्मा का प्रतिरूप होती है | इस लिए ही पुत्री को आत्मजा व पुत्र को आत्मज कहते है सुश्रुत सहिंता के अनुसार और वेसे भी स्त्री व पुरुष जैसा आहार व्यवहार और अपनी इच्छा में संयुक्त होकर परसपर समागम करते है उनकी संतान भी उसी स्वभाव की उत्पन्न होती है |
आपने अक्सर देखा होगा की गर्भ धारण करने के बाद स्त्री के कमरे में सुबह उठते ही उसकी आँखो के सामने सुन्दर शिशु का चित्र लगा देते है जो उसके मन भाव से उसी प्रकार की संतान चाहने का रूप होता है | यह सही है पर अपने कुल के या किसी महापुरुष का चित्र भी उसके आवभाव का बच्चे पर प्रभाव छोड़ता है जो बच्चे को अपनी माँ के मन से पैदा हुए विचारो से प्राप्त होता है |
पुत्र व पुत्री की प्राप्ति के लिए हमारे ग्रंथों में बहुत कुछ दिया है धर्म परायण के अनुसार पति पत्नी को गर्भ धारण करने से पूर्व अपने व दुसरो के हित के लिए व उस संतान के लिए जो अभी मन में है बीज नही बना उसके लिए अपने गुरु व बड़ो आदि का आशिर्वाद लेकर प्रार्थना करनी चाहिए | रात्रि के तीसरे पहर गर्भ धारण करने से संतान हरिभक्त व धर्म परायण होती है | इसके लिए वर्जित समय भी है जो काफी कुछ जानकारी यहाँ भी बता देते है कि योग्य संतान के लिए वर्जित समय जैसे धर्म के समय, गन्दगी या मालिनता वाला स्थान, सुबह या सांय के समय, चिंता क्रोध व बुरे विचारो के साथ, श्राध या प्रदोष काल में किसी दुसरे के घर, मंदिर, धर्मशाला, शमशानघाट, नदी किनारे, समुद्र के मध्य गति से दौड़ते किसी वाहन के मध्य, घर में शोक या काफी शोर के मध्य इन सब बातो व समय, स्थान को (वर्जित ) ध्यान में रख कर ही गर्भ धारण करना चाहिये | गर्भ धारण संस्कार करने से पहले महिला को चाहिये की ऋतुकाल में रजोदर्शन के बाद स्नान कर पूर्वकाल रहित चौथे दिन या सम दिन में महॅूर्त विचार कर देवी देवताओं का पूजन कर सौभाग्यशाली व संतानवान स्त्रिओं से फल, नारियल आदि लेकर आमवस्या की अधिष्ट देवी व सरस्वती के मंत्र पाठ पुजा प्रार्थना कर व बाकी देवी-देवता, ग्रह, नक्षत्र, देवताओं को अपने गर्भ को पुष्ट करने हेतु प्रार्थना कर पुनः ब्राहम्णो को दान व भोजन का सेवन करवा कर सुंदर व गुणवान संतान के लिए आशिर्वाद लेना चाहिये |
हमारे पुराने आयुर्वेद ग्रन्थों में पुत्र-पुत्री प्राप्ति हेतु दिन-रात, शुक्ल पक्ष-कृष्ण पक्ष तथा माहवारी के दिन से सोलहवें दिन तक का महत्व बताया गया है | धर्म ग्रन्थों में भी इस बारे में जानकारी मिलती है | यदि आप संतान प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं |
चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है |
पांचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी |
छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा |
सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी |
आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है |
नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है |
दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है |
ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है |
बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है |
तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है |
चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है |
पन्द्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है |
सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है |
व्यास मुनि ने इन्हीं सूत्रों के आधार पर पर अम्बिका, अम्बालिका तथा दासी के नियोग (समागम) किया जिससे धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर का जन्म हुआ | महर्षि मनु तथा व्यास मुनि के उपरोक्त सूत्रों की पुष्टि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपनी पुस्तक संस्कार विधि में स्पष्ट रूप से कर दी है | प्राचीनकाल के महान चिकित्सक वाग्भट तथा भावमिश्र ने महर्षि मनु के उपरोक्त कथन की पुष्टि पूर्णरूप से की है | लगभग दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा है कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है |
प्राचीन संस्कृत पुस्तक सर्वोदय में लिखा है कि गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा |
वैदिक शास्त्र अनुसार जो स्त्री गर्भ ठहरने के पहले तथा बाद कैल्शियमयुक्त, सातविक भोज्य पदार्थ तथा औषधि का इस्तेमाल करती है उसे अक्सर चरित्रवान संतान तथा जो मेग्निशियमयुक्त भोज्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडा आदि तामसिक भोज्य पदार्थ का इस्तेमाल करती है, उसे चरित्रहीन संतान पैदा होती है |
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संतान की प्राप्ति हेतु एक अनुष्ठान यह अनुष्ठान 90 दिनों में पूरा किया जाता है। केवल नब्बे दिनों में सवा लाख मंत्रों का जाप पति-पत्नी दोनों को परस्पर मिलकर करना है। ‘‘सर्व प्रथम संतान गोपाल यंत्र’’ तांबा अथवा रजत पत्र पर गुरु पुष्य नक्षत्र में बनवाकर किसी कर्मकांडी पंडित को बुलाकर यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा अवश्य कराएं। करने वाला अच्छा विद्व ान पंडित होना चाहिए तथा कर्मकांडी ब्राह्मण हो। किसी गुरुवार से यह प्रयोग प्रारंभ करा दें तथा स्थान, आसन, जल का स्रोत, गंगाजल से पृथ्वी आसन आदि को पवित्र करना चाहिए। पूजा के समय मुंह पूर्व दिशा की ओर रहना चाहिए। आसन पीले रंग का होना चाहिए तथा पहनने के कपड़े भी पीले रंग का होना चाहिए। पूजा में फूल भी पीले ही रंग का होना चाहिए। वस्त्र दोनों के शुद्ध पवित्र हों व यंत्र की पूजा दोनों में से एक करें। मंत्र – ऊँ क्लीं देवकी सूत गोविन्द वासुदेव जगतपति। देहि में तनय कृष्ण, त्वाम अहम शरणं गतः श्री उच्चै। थाली में केसर हल्दी से अष्टदल बनायें। पीला पुष्प या केसर या हल्दी से रंगे थोड़े पीले चावल चढ़ाना चाहिए। अष्टदल पर यंत्र को विराजमान करें और थाली को चैकी या पटरे पर रखें तब पूजा शुरू करें। पूजा मूल मंत्र से ही करना चाहिए। पुत्र प्राप्ति हेतु कुछ विशेष मंत्रों का जाप 1. ऊँ विचाराय नमो नमः। 2. ऊँ संतानाप नमो नमः। 3. ऊँ गोदाय नमो नमः। 4. ऊँ संतानाप नमः 5. ऊँ शुभम् नमः नमः। 6. ऊँ सुखाय नमो नमः। 7. ऊँ हरये नमः। 8. ऊँ शिशुया नमः। 9. ऊँ स्वाश्य नमः। 10. ऊँ कौति नमः नमः। इन दस मंत्रों में से किसी एक मंत्र का लाॅटरी द्वारा चयन करके एक-एक माला का जाप प्रातः, मध्याह्न एवं सायंकाल में करें। सर्प विष को उतारने का उपाय ऐसी अनेक जड़ी बूटियां हैं जिनके सेवन से रोगी ठीक हो जाते हैं। लेकिन यदि अधिक जहरीला सांप ने काटा है तो उसको अस्पताल में ही दिखाना चाहिए समय अधिक नष्ट होने पर मरीज मर सकता है। – जैसे बांस बसौड़ा को सफेद मूसली सूत के धागे में बांध लें तथा इसको दाहिने हाथ में बांधकर हमेशा साथ रखेंगे तो सर्प का विष नहीं चढ़ता है।
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नपुंसकता (Impotence)
परिचय—
जीवन को सफल बनाने के लिए सेक्स ही सबसे सरल साधन है। स्त्री-पुरुष विवाह के बाद सेक्स संबंध बनाकर अपने प्रेम को बहुत अधिक ताकतवर तथा आनंददायक बना लेते हैं। लेकिन कई बार ऐसा वक्त भी आता है कि उनके सफल जीवन में सेक्स करने की क्षमता न होने के कारण आनंद नहीं मिल पाता है। कई पुरुष एक बार के सेक्स में असफल हो जाने के कारण अपने आप को नपुंसक मानकर वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं और वे अपने मन में नपुंसकता का डर पैदा करके बुरी तरह से बेचैन और तनाव से भर जाते हैं।मेडिकल के अंदर नपुंसकता को इंपोटेंसी भी कह सकते हैं। इस रोग में व्यक्ति मन के अंदर सेक्स के बारे में गलत विचार बनाए रखने की वजह से अपनी स्त्री को पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर पाता है। इस समय में युवा पुरुष सबसे ज्यादा इंपोटेंसी जैसे रोग से ही पीड़ित हैं। दूसरी तरह की नपुंसकता को इनफर्टिलिटी यानि नपुंसकता कहा जा सकता है। इसके अंदर पुरुष अपनी स्त्री को संभोग क्रिया करके उनको संतुष्ट तो कर देगें मगर उन पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की मात्रा कम होने की वजह से या बिल्कुल भी न होने की वजह से वे संतान पैदा नहीं कर सकते हैं या वे संतान पैदा करने में नाकाम रहते हैं। 
 
नपुंसकता का उपचार (Impotence Treatment)—
1. अफीमसफेद संखिया तथा शुद्ध अफीम- इन दोनों को 15-15 ग्राम की मात्रा में लेकर 5 लीटर गाय के दूध के अंदर अच्छी तरह से मिलाकर इसके अंदर दही का जामन देकर इसे जमाने के लिए रख दें। सुबह होने के पश्चात इस दही को अच्छी तरह से बिलोकर इसका मक्खन निकाल लें।इसके बाद इस निकाले हुए शुद्ध घी को एक चावल के दाने के बराबर लेकर पान के साथ खाने से तथा लिंग के अग्र भाग (टोपी) को छोड़कर लिंग पर लगाने से नपुंसकता समाप्त हो जाती है।
2. पीपल की छालः-पीपल की छाल, जड़ व कोपलें तथा फल- इन चारों को आधा लीटर गाय के दूध में अच्छी तरह से पका कर इस दूध को छान लें। इसके बाद इस दूध में 25 ग्राम देशी खांड या पीसी हुई मिश्री तथा 15 ग्राम शुद्ध शहद को मिलाकर लगभग 3 से 4 महिनों तक इस दूध को रोगी को पिलाए, इस दूध को पीने से सेक्स करने की ताकत बहुत अधिक बढ़ जाती है और लिंग के होने वाले अन्य रोग भी समाप्त हो जाएंगे। 
3. सफेद प्याजः-सफेद प्याज के 10 ग्राम रस को 5 ग्राम शुद्ध शहद के अंदर मिलाकर सुबह और शाम दोनों समय रोजाना खाते रहने से रक्त के दोष के कारण उत्पन्न नपुंसकता समाप्त हो जाती है। 
4. मुलहटीः-मुलहटी के चूर्ण के अंदर शुद्ध घी और शहद को समान मात्रा में मिलाकर खाने से और उसके ऊपर से चीनी मिला हुआ मीठा दूध पीने से शुक्राणुओं की कमी से आई नपुंसकता खत्म हो जाती है। 
5. जायफलः-जायफल, केशर और जावित्री- इन तीनों को 1 से 2 ग्राम की मात्रा में लेकर 15 ग्राम मीठे बादाम के तेल में खूब बारीक कूट-पीसकर लिंग पर लेप करने से तथा पान में रखकर खाने से अप्राकृतिक ढ़ग से किया हुआ मैथुन से पैदा हुई नपुंसकता समाप्त हो जाती है। लिंग के अंदर बहुत ही अधिक ताकत आती है।अगर पुरुष के अंदर नपुंसकता मानसिक है और उसके अंदर शारीरिक रूप से किसी भी तरह की कोई कमी के न होते हुए भी उस पुरुष को यह हीन भावना आ जाती है कि वह यह सोचता है कि मैं कोई काम कर काम कर पाऊंगा या नहीं, या किसी तरह का कोई डर, मन के अंदर किसी प्रकार का कोई संकोच, अकेले रहने की कमी, अपने मित्रों के साथ सम्मान या नफरत के देखना, सेक्स के प्रति कमजोरी होने से लिंग (शिश्न) में किसी भी तरह की कोई उत्तेजना न होना। लिंग के अंदर पूर्ण रूप से तनाव न हो पाने के कारण कई बार पुरुष अपने आप को सेक्स करने के काबिल नहीं समझता है। अगर उसके ये विकार (कारण) समाप्त कर दिए जाए तो उसे सेक्स क्रिया करने में रुचि अपने आप ही पैदा हो जाएगी तथा अगर नपुंसकता के रोग को अपने जीवन साथी का साथ मिल जाए, आंनद्दित वातावरण और संभोग क्रिया करने में सफल होने का पक्का विश्वास उत्पन्न हो जाए तो वह पुरुष सेक्स करने में सफल हो जाएगा।
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गरुड पुराण के अनुसार योग्य संतान पाने का सही समय—
सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनकी संतान उत्तम गुणों से पूर्ण हो और उसमें वह सभी गुण हों जो आगे जाकर उस संतान के उज्जवल भविष्य के लिए जरूरी होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्यवश हर माता-पिता का ये सपना पूरा नहीं हो पाता। गरूड पुराण में उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु ने बहुत सी गोपनीय बातें बताई हैं। इस पुराण में ये भी लिखा है कि पति को किस समय पत्नी से दूर रहना चाहिए और उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए किस समय गर्भाधान करना चाहिए।
ऋतुकाल में चार दिन तक स्त्री का त्याग करें क्योंकि चौथे दिन स्त्रियां स्नानकर शुद्ध होती हैं और सात दिन में पितृदेव व व्रतार्चन (पूजन आदि करने) योग्य होती है। सात दिन के मध्य में जो गर्भाधान होता है व अच्छा नहीं माना जाता।
गरूड पुराण के अनुसार आठ रात के बाद पत्नी मिलन से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। युग्म दिन ( जैसे- अष्टमी, दशमी, द्वादशी आदि) में पुत्र व अयुग्म (नवमी, एकादशी, त्रयोदशी आदि) में कन्या उत्पन्न होती है इसलिए सात दिन छोड़कर गर्भाधान करें।
सोलह रात तक स्त्रियों का सामान्यत: ऋतुकाल रहता है, उसमें भी चौदहवीं रात में जो गर्भाधान होता है, उससे गुणवान, भाग्यवान, धर्मज्ञ व बुद्धिमान संतान की प्राप्ति होती है। वह रात्रि अभागे पुरुषों को कभी नहीं मिलती।
संतान चाहने वाले पुरूष को पान, फूल, चंदन और पवित्र वस्त्र धारण कर धर्म का स्मरण करते हुए पत्नी के पास जाना चाहिए। गर्भाधान के समय जैसी मनुष्य के मन की प्रवृत्ति होती है, वैसे ही स्वभाव का जीव पत्नी के गर्भ में प्रवेश करता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार क्या सोचता है शिशु गर्भ में
गरुड़ पुराण में गर्भ में शिशु की स्थापना से लेकर उसके बाहर आने तक वो क्या क्या करता है क्या क्या सोचता है इसके बारे में भी विस्तारपूर्वक बता रखा है। जो इस प्रकार है
एक रात्रि का जीव कोद (सुक्ष्म कण), पांच रात्रि का जीव बुद्बुद् (बुलबुले) के समान तथा दस दिन का जीवन बदरीफल(बेर) के समान होता है। इसके बाद वह एक मांस के पिण्ड का आकार लेता हुआ अंडे के समान हो जाता है।
एक महीने में मस्तक, दूसरे महीने में हाथ आदि अंगों की रचना होती है। तीसरे महीने में नाखून, रोम, हड्डी, लिंग, नाक, कान, मुंह आदि अंग बन जाते हैं। चौथे महीने में त्वचा, मांस, रक्त, मेद, मज्जा का निर्माण होता है। पांचवे महीने में शिशु को भूख-प्यास लगने लगती है। छठे महीने में शिशु गर्भ की झिल्ली से ढंककर माता के गर्भ में घुमने लगता है।
माता द्वारा खाए गए अन्न आदि से बढ़ता हुआ वह शिशु विष्ठा, मूत्र आदि का स्थान तथा जहां अनेक जीवों की उत्पत्ति होती है, ऐसे स्थान पर सोता है। वहां कृमि जीव के काटने से उसके सभी अंग कष्ट पाते हैं।
इसके बाद शिशु का मस्तक नीचे की ओर तथा पैर ऊपर की ओर हो जाते हैं, वह इधर-उधर हिल नहीं सकता। यहां शिशु सात धातुओं से बंधा हुआ भयभीत होकर हाथ जोड़ ईश्वर की(जिसने उसे गर्भ में स्थापित किया है) स्तुति करने लगता है।
सांतवे महीने में उसे ज्ञान प्राप्ति होती है और वह सोचता है- मैं इस गर्भ से बाहर जाऊँगा तो ईश्वर को भूल जाऊँगा। ऐसा सोचकर वह दु:खी होता है और इधर-उधर घुमने लगता है। सातवे महीने में शिशु अत्यंत दु:ख से वैराग्ययुक्त हो ईश्वर की स्तुति इस प्रकार करता है- लक्ष्मी के पति, जगदाधार, संसार को पालने वाले और जो तेरी शरण आए उनका पालन करने वाले भगवान विष्णु का मैं शरणागत होता हूं।
गर्भस्थ शिशु भगवान विष्णु का स्मरण करता हुआ सोचता है कि हे भगवन्। तुम्हारी माया से मैं मोहित देहादि में और यह मेरे ऐसा अभिमान कर जन्म मरण को प्राप्त होता हूं। मैंने परिवार के लिए शुभ काम किए, वे लोग तो खा-पीकर चले गए। मैं अकेला दु:ख भोग रहा हूं। हे भगवन्। इस योनि से अलग हो तुम्हारे चरणों का स्मरण कर फिर ऐसे उपाय करूंगा, जिससे मैं मुक्ति को प्राप्त कर सकूं।
फिर गर्भस्थ शिशु सोचता है मैं इस गर्भ से अलग होने की इच्छा करता हूं, हे भगवन्। मुझे कब बाहर निकालोगे। सभी पर दया करने वाले ईश्वर ने मुझे ये ज्ञान दिया है, उस ईश्वर की मैं शरण में जाता हूं, इसलिए मेरा पुन: जन्म-मरण होना उचित नहीं है।
गरूड पुराण के अनुसार फिर माता के गर्भ में पल रहा शिशु भगवान से कहता है कि मैं इस गर्भ से अलग होने की इच्छा नहीं करता क्योंकि बाहर जाने से पापकर्म करने पड़ते हैं, जिससे नरकादि प्राप्त होते हैं। इस कारण बड़े दु:ख से व्याप्त हूँ फिर भी दु:ख रहित हो आपके चरण का आश्रय लेकर मैं आत्मा का संसार से उद्धार करूंगा।
इस प्रकार गर्भ में बुद्धि विचार कर शिशु दस महीने तक स्तुति करता हुआ नीचे मुख से प्रसूति के समय वायु से तत्काल बाहर निकलता है। प्रसूति की हवा से उसी समय शिशु श्वास लेने लगता है तथा अब उसे किसी बात का ज्ञान भी नहीं रहता। गर्भ से अलग होकर वह ज्ञान रहित हो जाता है, इसी कारण जन्म के समय वह रोता है।
गरूड पुराण के अनुसार जिस प्रकार बुद्धि गर्भ में, रोगादि में, श्मशान में, पुराण आदि सुनने में रहती है, वैसी बुद्धि सदा रहे तब इस संसार के बंधन से कौन हीं छूट सकता। जिस समय शिशु कर्म योग द्वारा गर्भ से बाहर आता है उस समय भगवान विष्णु की माया से वह मोहित हो जाता है।
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मां बनने के लिए सही समय क्या है ???
बच्चे के जन्म की सही उम्र ??
 
मां बनना किसी महिला के‍ जीवन का काफी अहम पड़ाव माना जाता है। लेकिन, आखिर किस आयु-वर्ग में मां बनना किसी महिला और उसके होने वाले बच्‍चे के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए सही रहेगा, इस बारे में अधिकतर महिलायें अनजान होती हैं। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर मां बनने की सही उम्र क्‍या है तथा कम या अधिक उम्र में मां बनने के क्‍या नफे-नुकसान हैं।
क्‍या होती है गर्भधारण की सही उम्र
मां बनना शायद हर महिला का स्‍वप्‍न होता है। लेकिन बच्चा सही समय और उम्र में पैदा किया जाए यह बेहद जरूरी है। विशेषज्ञों के मुताबिक बच्चे को जन्म देने की सही उम्र 20 से 35 वर्ष के बीच होती है। इससे पूर्व या बाद में गर्भधारण करने पर गर्भस्थ शिशु में विकृति की आशंका ज्यादा होती है। ये विकृतियां क्रोमोसोम (गुणसूत्रों) या जीन में हुई किसी गड़बड़ी के कारण आ सकती हैं। इसलिए अधिक उम्र में गर्भ धारण करने से बचना चाहिए।
 
क्यों न करें कम या ज्यादा उम्र में गर्भधारण ??
 
जो महिलाएं 35 की उम्र के बाद या 18 साल की उम्र से पहले गर्भधारण करती हैं उनके बच्चों में मानसिक कमजोरी आ सकती है। साथ ही ऐसे बच्चे सामान्य पैदा हुए बच्चों की तुलना में शारीरिक और मानसिक तौर पर कमजोर भी होते हैं। यूं तो गर्भधारण की सही उम्र का कोई सटीक अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, लेकिन कम से कम 30 की उम्र से पहले गर्भधारण कर लेना चाहिए। क्‍योंकि 35 की उम्र के बाद गर्भधारण करने के अवसर भी कम हो जाते हैं।
 
कम उम्र में मां बनने के जोखिम..???
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष 18 वर्ष से कम उम्र की करीब 73 लाख लड़कियां मां बनती हैं। जिसकी वजह से मां और बच्चा दोनों के स्वास्थ्य के लिए कई चुनौतियां पैदा हो जाती हैं। इन 73 लाख में से भी तकरीबन 20 लाख लड़कियां वे होती हैं जिनकी उम्र 14 वर्ष या उससे भी कम होती है। ऐसी लड़कियों को भविष्य में कई स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती हैं जिसके सामाजिक कुपरिणाम भी होते हैं और इन लड़कियों की मौत होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
क्या कहती है मेडिकल सांइस
मेडिकल सांइस के मुताबिक महिलाओं का शरीर 20 साल की उम्र शुरुआत से बच्चे को जन्म देने के लिए पूरी तरह तैयार रहता है। पर आधुनिक जीवनशैली अब विज्ञान के इस मत को झुठलाती जा रही है। सोच में आए इस बदलाव में काफी हद तक आधुनिक तकनीक का भी योगदान रहा है। आईवीएफ जैसे फर्टिलिटी ट्रीटमेंट्स अधिक उम्र में भी महिलाओं को मां बनने का अवसर प्रदान कर रहे हैं।
 
अधिक उम्र में गर्भधारण के जोखिम—
वे महिलाएं जो 35 वर्ष की आयु के बाद गर्भधारण करती है, उनमें गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। अधिक उम्र में प्रजनन शक्ति खो जाने के अलावा भी उच्‍च रक्‍तचाप और मधुमेह जैसी अन्य कई परेशानियां हो सकती हैं। जिससे आने वाले बच्‍चे को कई खतरे होते हैं।